विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
मदुरै में वंडियूर तालाब 600 एकड़ फैला हुआ होता था। यह तमिलनाडु की पुरातन विरासतों में से एक है। पूर्व में यह पानी से पूरा भरा हुआ होता था मगर आज इसमें न के बराबर पानी है अगर है तो सिर्फ गंदगी। वर्तमान में इस तालाब के कैचमेंट एरिया में ही होटल, पार्क, खेल मैदान, सब्जी मंडी, कई विभागों के भवन है और बाकी बची भूमि पर पर्यटन स्थल बना दिया है। यहां का सारा कचरा तालाब में फेंका जाता है। बहुत भयानक लापरवाही , आधुनिक विकास ने इस तालाब को कूड़ा घर बना दिया है। यह अतिक्रमण, शोषण का शिकार। यदि स्थानीय लोग अपनी विरासतें नही बचाएंगे, तो आपका भविष्य अंधकार में चला जायेगा। आपको इस आधुनिक विकास को रोक कर, फिर से इस तालाब को पुनर्जीवित करने के काम में लगना होगा। इस तालाब का स्वास्थ लोगों के स्वास्थ से जुड़ा है।
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तमिलनाडु के ही तेंगकशी जिले के कड़ई नल्लूर में आटाकुल्ली झील भी पहले साफ पानी से भरा हुआ होता था, अब बदहाली की जिंदगी जी रहा है। जैसा की संपूर्ण भारत में तालाबों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, उसी के मुताबिक यहां भी प्रभावशाली लोग अपने कर्म में लगे है। पहले इसमें शहर का गंदा पानी डाला जा रहा है और फिर उस गंदगी से छुटकारे के नाम पर इसको व्यवसायिक गतिविधियों के लिए पाट दिया जाएगा। यहां के कुछ जागरूक स्थानीय लोग इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं पर उन्हें इस प्रकार के झील को दूषित करने के कृत्य, जिससे हमारी बेकारी और बीमारी बढ़ती जा रही है, इसे रोकना होगा।
इस झील को बचाने का इन लोगों का जो संघर्ष है, ये ही संस्कारी समाज का निर्माण करते हैं इसलिए आज के परिदृश्य में सब अगर अगली पीढ़ी को स्वस्थ और खुशहाल देखने चाहते हैं, तो फिर सबको वापस प्रकृति के संस्कार देना सीखना होगा। हम अपने जीवन में प्लास्टिक, पॉलीथिन, कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करके प्रकृति को स्वस्थ रखने की कामना करते हैं, तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल कर रहे है, इसलिए हम सभी को लोगों को जल साक्षरता और जल के व्यवहार की शिक्षा ग्रहण करनी होगी। आपको एहसास होना चाहिए कि, भूमि का अस्तित्व प्रकृति से ही है। हम सभी को प्रकृति की ओर लौटना होगा।
इसी जिले से निकलने वाली दो छोटी नदियां जो ताम्रवाणी की सहायक नदी है, हेडसुलिस और कार्पा नदी के नाम से जानी जाती है। स्थानीय लोगो ने बताया कि यहाँ स्थित कृप्पनाधि डैम, जिसका निर्माण 1998 के लगभग हुआ, पूर्व योजना के अनुसार इसका आकार काफी बड़ा था मगर प्रभावशाली लोगों ने उसे छोटा करा दिया जिसकी वजह से इन नदियों को जल कम मिलाता है। अगर यह डैम बड़ा होता तो यहां के किसानों को संपूर्ण वर्ष भरपूर पानी मिल पाता। इस चर्चा के दौरान स्थानीय लोगो ने यहां व्याप्त अनेक खामियों और भी बताई।
आज हम विकास की अंधी दौड़ में हैं, उसका परिणाम यह है कि, हमारा जीवन भौतिकवाद की वजह से हम प्रकृति से दूर होते चले गए है। आज इंसान ने विकास की परिभाषा मात्र भौतिक संसाधनों से ही परिभाषित कर ली है। जबकि विकास का सही अर्थ, वह विकास, जहाँ प्रकृति भी विकास करे, जीव-जंतु भी विकास करें और मनुष्य सभी के हितों रक्षा करते हुए विकास करे। यही विकास की असली परिभाषा है। परंतु मनुष्य परिभाषित विकास का ही परिणाम जलवायु परिवर्तन है। हमें विकास की परिभाषा दुबारा से परिभाषित करनी होगी। समय रहते हुए आज का युवा प्रकृति के प्रति जाग्रत नहीं हुआ, तो ये प्रकृति आपको संभलने का समय नहीं देगी। इसलिए हमे प्रकृति के प्रति अपना व्यवहार और सोच बदलना होगा।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।