बिहार विधान सभा चुनाव 2020
विकास चुनावी मुद्दा तो बनेगा लेकिन केंद में होगी जाति ही
– प्रशांत सिन्हा
बिहार में विधान सभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। सारे दल के नेता जातिवाद को हवा देंगे। विकास को चुनावी मुद्दा तो ये नेता बनाएंगे लेकिन केंद में जाति होगी। अब बिहार की जनता को तय करना है कि प्रदेश को क्या देना चाहती है जातिवाद या विकास ? क्या जातिवाद के लिए राजनेता ही जिम्मेवार हैं ? आम जनता नहीं ? अगर सच पूछा जाए तो आम जनता भी उतना ही कसूरवार है जितने राजनेता क्योंकि जनता हमेशा वैसी सरकार बनाती है जिसमें जातीय गठजोड़ हो । वैसी सरकार केवल अपनी सरकार बचाने में लगी रहती है और कार्यकाल निकल जाता है। कोई विकास नहीं हो पाता।
पांच साल तक लगातार उस क्षेत्र के विधायक एवं नेताओं को कोसने में नहीं थकने वाली जनता सिर्फ जाति देखकर उसे माफ कर देती है कि एक बार और मौका दे कर देखते हैं यह जनता की लाचारी मानी जाएगी या बेवकूफी ? विकास के मुद्दे पर राजनीति करने के बजाए लोग जातीय महत्व देकर नालायक एवं अयोग्य नेता चुन लेते हैं उससे जनता को ही नुकसान होता है। आखिर चुनाव के वक़्त जनता की ऐसी हरकत हमे कैसी सरकार देती है सभी जानते हैं लेकिन ऐसा करने से क्या राज्य विकसित हो पाएगा?
कोई दो राय नहीं कि बिहार में जातिवाद पर ही चुनाव होते हैं। लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जातिवाद पर ही आधारित है। ऐसा नहीं है कि बिहार में सिर्फ लालू ही जातिवाद करते हैं, सारे राजनैतिक दल जातिवाद के दम पर अपना चुनावी समीकरण बनाते हैं।
गौर तलब है कि नीतीश कुमार ने भी जातिवाद को बढ़ावा दिया और दलित को महादलित बना कर बिहार में जातीय राजनीति कर दी लेकिन नीतीश कुमार की मंशा उन्हें दो टुकड़ों में बांट कर उनका विकास लक्ष्य माना जाता है।
बिहार की जनता को अब यह बखूबी मालूम है कि बिहार देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले विकास में पीछे रह गया है। इसके लिए जातिवाद कहीं न कहीं जिम्मेवार है। इसलिए शायद जातिवाद का मिथक टूट रहा है। वर्ष 2010 से ही की जनता ने जाति से सरकार चुनने की प्रथा को खत्म करने की कोशिश की है और जातीय बंधनों को तोड़कर राजनीति में नई परिभाषा को जन्म दिया जिसकी महक देश के अन्य प्रदेशों में महसूस की जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों तक बिहार की राजनीति में लालू यादव ” माय ” ( मुस्लिम + यादव ) समीकरण के बलबूते पर राजनीति की वहीं रामविलास पासवान को दलित नेता कहलाने का प्रयास हमेशा रहा पर जब जब गठबंधन में चुनाव लड़े पूरी तरह पराजित हुए।
15 वीं बिहार विधान सभा के नतीजे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जाति से सरकार नहीं चुनी जाएगी। लेकिन यह निश्चित नहीं है कि जातिवाद को हमेशा के लिए अलग रखा जा सकेगा क्योंकि लालू जैसे नेता को इसी जातिवाद का सहारा है। बताया जा रहा है कि चुनाव में जहां राजद अपनी हिस्से में आने वाली ज्यादातर सीटों पर मुस्लिम यादव उम्मीदवार खड़े करेगी वहीं उसके गठबंधन के साथी कांग्रेस ने भी अपने हिस्से में आने वाली सीटों पर ज्यादातर टिकट भूमिहार ब्राह्मण को देने का मन बना लिया है । भाजपा और उसके सहयोगी भी जातिवाद पर उतरे हुए हैं । सभाओं और रैलियों में भाजपा गठबंधन के नेताओं के चेहरे को दिखाकर और और उनके नाम बताकर जनता को समझाया जा रहा है कि असली यादव तो भाजपा गठबंधन में है। मतलब साफ है जाति से जाति को काटा जा रहा है।
जाति से परिवार चलता है सरकार नहीं। जनता की स्वस्थ एवं स्वच्छ सरकार चुनने के लिए लाचारी या बेवकूफी को दरकिनार करना होगा अन्यथा उनकी लाचारी या बेवकूफी राज्य को देश के पिछले पायदान पर ही रखेगा। राजनेताओं को कोसने से कुछ नहीं मिलेगा।
बिहार की जनता को जातिवाद से हटकर स्वच्छ छवि के समाजसेवी को अपना विधायक चुनने की ज़रुरत है । अगर इस चुनाव में बिहार की जनता ऐसा करती है तो पूरा विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि बिहार विकास के पथ पर दौड़ेगा।जब बिहार में विकास होगा तब देश में भी विकास होगा। ये सर्वविदित है कि बिहार से उठा हुआ आंदोलन की धमक पूरे देश में सुनाई देता है।
वाह। बधाई।
धन्यवाद।