विश्व जल दिवस पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
जल संरक्षण कीजिए, जल जीवन का सार ।
जल न रहे यदि जगत में, तो जीवन है बेकार।
हम सभी अक्सर सुनते हैं “जल ही जीवन है, जल के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है, बिन पानी सब सून, जल है तो कल है “। इसलिए कल को एवं जीवन को बचाने के लिए आज जल संकट की समस्या पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
पृथ्वी पर जीवन का आधार यहां मौजूद जल ही है। इसके अभाव में धरती एक रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगी। हम भाग्यशाली हैं कि इस ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो जल संपदा से परिपूर्ण है लेकिन हम इंसानों की नासमझी के कारण यह जल संपदा दिनों दिन न सिर्फ कम होती जा रही है बल्कि प्रदूषित भी होती जा रही है।
पानी बचाने के लिए जागरूकता और लोगों को इसके लिए उत्तरदायी भी बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को ” विश्व जल दिवस ” के रूप में मनाने का निश्चय किया। जिस पर सर्वप्रथम 1993 में पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व मे जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरूकता फैलाने का कार्य किया। 22 मार्च पानी बचाने के संकल्प का दिन, पानी के महत्व को जानने का दिन, पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन है।
पृथ्वी 70 % जल से ढकी हुई है लेकिन 97 % पृथ्वी का जल खारा है। 1.75 % ताजा जल बर्फ रूप मे है। 0.75 % जल जमीन मे है। 0.5 % सतह जल झीलों एवं नदियों में है। हम जीवन के सभी आयामों में इस ताजे जल का उपयोग करते हैं। पीने, सिंचाई एवं कृषि, बिजली उत्पादन और अन्य औद्योगिक उद्देश्यों के लिए 0.1 % से कम ताजा जल का उपयोग किया जाता है। हम 700 करोड़ लोग इस 1% ताजे जल को साझा करते हैं। लेकिन दुख की बात है कि मुख्य रुप से 80 % वैश्विक जल संसाधन मानव गतिविधियों के माध्यम से प्रदूषित होता है। प्रदूषित जल सीधे ताजा जल के स्रोत के साथ मिलता है। आंकड़े बताते हैं कि विश्व के क़रीब डेढ़ अरब लोगों को शुद्ध जल नही मिलता है। गंदे और दूषित पानी की वजह से दुनिया भर में प्रतिवर्ष करोड़ों लोगों की जान चली जाती है। गंदे पानी से पीलिया, डायरिया और हैजे आदि जानलेवा बीमारियां हो जाती है।
पृथ्वी ग्रह को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से जल को बचाना है। तीन प्रकार के जल की खपत होती हे। ग्रीन वाटर फुट प्रिंट (वर्षा जल की मात्रा), नीला पानी फुट प्रिंट (सतह की पानी और भू जल की मात्रा), ग्रे जल फुट प्रिंट ( प्रत्येक घर, तालाब और झील के पानी का संचयन करना) ।
पानी को जिस तरह बर्बाद किया जा रहा है उसे देखते हुए विश्व का हर देश चिंतित है। चिंतित है तभी संयुक्त राष्ट्र को विश्व जल दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ी।हर देश में पानी के लिए कर (टैक्स), बिल, और जल बर्बाद करने वालों पर सजा आदि का प्रावधान किया जा रहा है। विश्व की करीब सभी सरकारें इसके ऊपर कार्रवाई कर रही हैं। भारत मे भी प्रधान मंत्री मोदी ने जल जल संरक्षण को एक जन आंदोलन बनाने का सुझाव दिया है।
देश में जल के गहराते संकट को देखते हुए मोदी सरकार ने ” जल शक्ति मंत्रालय ” का गठन किया है। मोदी सरकार ने 2024 तक प्रत्येक घर को “नल से जल ” की आपूर्ति का लक्ष्य रखा है। बड़े और बहुआयामी प्रकृति के कार्यों के लिए सरकार की ओर देखने में बुराई नही है लेकिन उस मानसिकता का क्या करें जो सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ने की बनती जा रही है। क्या नागरिकों को अपने देश और समाज के प्रति और अपने प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है ? मुंबई, दिल्ली जैसे महानगर में गाड़ियों को धोने में लगभग 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है। वहीं दिल्ली , मुंबई और चेन्नई जेसे महानगरों में पाइप लाइनों के वाल्व मे खराब होने के कारण रोज क़रीब 30% पानी बेकार चला जाता है।
कहते हैं कि अति हर चीज की बुरी होती हे। आज विश्व में कई ऐसी जगह है जहां पीने के पानी के लिए लोग तरसते रहते हैं। भारत में कई ऐसी जगह है जहां महिलाएं पीने के पानी के लिए लोग रोज औसतन 4 मील पैदल चलती है। लोगों का मानना है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए छिड़ सकता है।
दैनिक जीवन की छोटी छोटी बातों पर गौर करें तो लोगों के द्वारा काफ़ी हद तक पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। आएं हम पानी को बचाने के लिए कुछ आसान उपाय देखें:
1. स्नान करते समय बाल्टी में जल लेकर शावर या टब में स्नान की तुलना बहुत जल बचाया जा सकता है। पुरुष वर्ग दाढ़ी बनाते समय यदि टोंटी बंद रखे तो बहुत जल बच सकता है। रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ़ करें तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है।
2. टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल मे रेत भरकर रख देने से हर बार ” एक लीटर जल ” बचाने का कारगर उपाय उत्तराखंड जल संस्थान ने बताया है। इस विधि की तेजी से प्रचार _प्रसार करके पूरे देश में लागू करके जल बचाया जा सकता है।
3. पहले गांवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मॉनसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियां और मेढक आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गांव के पीने, नहाने और पशुओं आदि के काम में आता था। दुर्भाग्य यह कि स्वार्थी मनुष्य ने तालाबों को पाट कर घर बना लिए ओर जल की आपूर्ति खुद ही बंद कर बैठा है। ज़रूरी है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।
4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गड्ढे बनाकर एकत्र किया जाए और पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए तो साफ़ पेय जल की बचत अवश्य की जा सकती है।
5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ” वर्षा जल ” का भंडार करने के लिए एक या दो टंकी बनाई जाए और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढक दिया जाए तो हर नगर में “जल संरक्षण” किया जा सकेगा।
6. घरों, मोहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, विद्यालयों, अस्पतालों, दुकानों, मंदिरों आदि में लगी नल की टोटियां खुली या टूटी रहती है तो अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है। इस बर्बादी को रोकने के लिए नगर पालिका एक्ट में टोटियों की चोरी को दंडात्मक अपराध बनाकर जागरूकता भी बढ़ानी होगी।
” जल संरक्षण” एवं उसका प्रबंधन आज के विश्व समाज की सर्वोपरि चिंता होनी चाहिए, चूंकि उदार प्रकृति हमें निरंतर वायु , जल, प्रकाश आदि का उपहार देकर उपकृत करती रही है, लेकिन स्वार्थी लोग सब कुछ भूलकर प्रकृति के नैसर्गिक संतुलन को ही बिगाड़ने पर तुला हुआ है। सभी को यही संदेश है “जल संरक्षण ” करें।