विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
तमिलनाडु में रामनाथपुरम झील को वैगाई नदी से भरा जाता है। पर जब वैगाई नदी में जल ही नही बचा, तो झील कैसे भरेगी? कैसे यहां के लोगों को पानी मिलेगा? इसलिए यहां के जीवन, जीविका हेतु वर्तमान में वैगाई नदी पर हो रहे व्यापारिक शोषण, अतिक्रमण को रोकना होगा, तभी हमारे जीवन की विरासत बच पायेगी।
हमारे देश में आधुनिक तकनीक और इंजीनियरिंग विनाश कर रहे हैं । नदी के प्राकृतिक प्रवाह को काट कर , मानवनिर्मित बना रहे है। आज हमारे देश में विकास ने नाम पर नदियों, संप्रदायों या समुद्र हो, इन सभी का बहुत विनाश हो रहा है। यहां की सरकारें बहुत लापरवाही कर रही है। जिसके कारण हजारों साल पुरानी विरासत खत्म हो रही है। पहले यहां तालाबों की बड़ी विरासत थी, लेकिन आज उसकी जगह बिलायती बबूल के पेड़ खड़े हुए है। यह विनाश इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारी आधुनिक शिक्षा में भारतीय ज्ञान तंत्र को जोड़ने का काम नही हो रहा है।
यहां से आगे चलकर पालम गाँव वह स्थान है, जहां से वैगाई नदी समुद्र में प्रवेश करने के लिए तैयार होती है। उसके आगे अन्त्रगारै है जिस जगह का पौराणिक काल में बहुत महत्व है। यहां के स्थानीय लोगों ने बताया कि, यहां दक्षिण भारत में चोला, चेरा और पाण्डया वंश ने राज किया था। यहां 345 बीसी में पाण्डया वंश के राज्यकाल में यह जगह बहुत बड़े व्यापारिक केंद्र के रूप में जानी जाती थी। इजिप्ट, सोमेरियाव और अन्य देशों से जहाजों के माध्यम से आयात निर्यात होता था। इससे जुड़ कर वैगाई नदी के माध्यम से छोटी नावों में माल का आयात निर्यात होने लगा।
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हमारी विरासत बहुत समृद्ध थी, जो नदियां जल, जीवन देती थी, वो व्यापार भी देती थी। यह नदियां, जहां जीवन, जीविका और जमीर बसता था, अर्थात जल उपलब्ध कराने की केंद्र थी, वही नदियां आज व्यापारिक केंद्र बनकर बहुत प्रदूषित हो गई, अतिक्रमण और शोषण की शिकार हो गई है। यहीं से धनुषकोढ़ी होते हुए रामेश्वर मंदिर जाते हैं जहाँ पर शिव का मंदिर है। हिन्दु संस्कृति के अनुसार चार धाम में से एक धाम माना जाता है। यहाँ की शिवलिंग की स्थापना राम ने की थी।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।