सप्ताहांत विशेष
– रमेश चंद शर्मा*
जब भी गांधी और गांधी विचार पर चर्चा होती है तो ‘हिन्द स्वराज्य’ को भावी आदर्श समाज रचना के गांधी के मूल ग्रंथ के रूप में देखा जाता है। उसी प्रकार ‘मंगल प्रभात’ मार्ग, साधन या लक्ष्य के लिए मूल ग्रंथ है। मंगल प्रभात को जिसमें एकादश व्रत के बारे में बताया गया है।
आमतौर पर उसे वैसी मान्यता प्राप्त नहीं हुई जैसी होनी चाहिए। उसे ज्यादातर परम्परागत दृष्टिकोण से ही देखा समझा माना जाता रहा है। व्रतों के बारे में धर्म ग्रंथों में भी खूब चर्चा हुई है। विभिन्न समुदायों में अनेक प्रकार से व्रतों का समावेश मिलता है। समय के साथ इनमें बदलाव भी देखने को मिलते हैं विशेषकर व्रतों के पालन-पोषण में। संयमित समग्र जीवन विकास में व्रतों की बहुत ही अहम्, महत्त्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन इस ओर समाज, व्यक्ति का वैसा ध्यान नहीं गया जैसा जाना अपेक्षित है। अधिकतर व्रत कर्मकांड में उलझकर रह गए।
गांधीजी ने सत्य एवं अहिंसा का जीवन के हर क्षेत्र में व्यापक और बड़े पैमाने पर जैसा प्रयोग किया वैसा इतिहास में कम ही देखने को मिलता है। तर्कसंगत ढंग से, तर्क की कसौटी पर कसकर इनका पालन-पोषण करने का मार्ग प्रशस्त किया। व्रत मात्र आध्यात्मिक साधना का ही नहीं बल्कि सामाजिक जीवन का भी अभिन्न अंग है, होना चाहिए। एक नए समाज रचना के लिए यह बहुत जरूरी है। सामाजिक जीवन में व्रतों की क्या आवश्यकता एवं अनिवार्यता है, उनका क्या महत्व है, इस पर चिंतन मनन, विचार मंथन करने की आवश्यकता है। इस पर व्यापक स्तर पर काम करना होगा। समाज के सही उत्थान के लिए यह जरूरी है।
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गांधीजी ने अपने जीवन तथा आश्रम में व्रतों के पालन पर जोर दिया। इसके लिए एकादश व्रत को दैनिक प्रार्थना का अंग बनाया।
“अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शरीर श्रम, अस्वाद, सर्वत्र भयवर्जन, सर्व धर्म समानत्व, स्वदेशी, स्पर्शभावना, विनम्र व्रत निष्ठा से ये एकादश सेव्य है।।”
यह ग्यारह व्रत मनुष्य के जीवन में संयम, सादगी, सरलता, सहजता, स्वाभिमान, स्पष्टता, आत्मविश्वास, सेवा, साधना के अभ्यास का अवसर प्रदान करेंगे। एक स्वावलंबी समाज की ओर ले जाएंगे। समाज में एकता, सदभावना, सौह्रार्द, साझापन, समझदारी, अपनापन पैदा करेंगे। जीव एवं प्रकृति के संबंधों को प्रगाढ़ करेंगे।
आओ मिलकर हम इनको जीवन में उतारें और इनके प्रचार प्रसार में अपना योगदान करें।
*लेखक विख्यात गांधी साधक हैं।