– डॉ. राजेंद्र सिंह*
कोरोना-19 (सार्स क्राइसिस -2) की रचना
वायरस सार्स क्राइसिस -1 से सार्स क्राइसिस -2 बिल्कुल अलग है। इसका जैनेटिक मटेरियल जो प्रोटीन और लिपिड कवर के अंदर होता है। जब यह मानव शरीर से बाहर रहता है, तो वह निर्जीव होता है। यह जब मानवीय शरीर की कोशिकाओं पर आक्रमण करता है, तो उनके मेटाबोलिज्म को हाईजेक कर अपने को सजीव बना लेता है और फिर अपने जैसे ही असंख्य वायरस का निर्माण करके अपनी तादाद बढ़ाता रहता है। इसलिए इसको मानव शरीर से बाहर रहने पर, जीव कहना ठीक नही है बल्कि यह एक निर्जीव पदार्थ के जैविक रसायन से बनता है। इसकी विशिष्टता है कि यह अपने जैसी करोड़ों वायरसों को बनवा लेता है। यह सीधा और सरल है। फेफड़ों के संवेदनशील क्षेत्र जहाँ पर जहरीली गैसों को प्राण वायु में बदलने वाली झिल्ली होती है, वहाँ जब यह प्रवेश कर जाता है। तब मानवीय कोशिकाएँ मिलकर हल्ला बोलने से झिल्ली में सूजन आज जाती है। प्राण वायु बनना रूक जाता है। श्वास क्रिया बंद होने लगती है।
“देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर” यह कोरोना वायरस ( सार्स क्राइसिस -2,कोविड – 19) पृथ्वी पर जीव बनने से पहले का, प्रारंभिक चरण का वायरस है। इसके इतिहास को समझने के लिए हमें जानना होगा कि 2002 में जब चाईना में सार्स क्राइसिस -1 पहली बार प्रभावी हुआ था। वहां से सबसे पहले कनाडा और अमेरिका पहुँचा था। कनाडा के उस काल में स्वास्थ्य मंत्रालय के अध्यक्ष एवं माउंट सिनाई अस्पताल के संचालक डॉ. डोन लो ने निर्णय किया था कि, इसे कनाडा से बाहर नही जाने देगें। उस समय कोरोना वायरस नं-1 को सार्स क्राइसिस -1 नाम से जाना जाता था। उन्होंने वायरस को अपने देश से बाहर नही निकलने दिया था।
18 वर्ष पहले चीन से आकर कनाडा में प्रभावी हुआ। सार्स क्राइसिस -1, को डोन लो ने अपने देश से बाहर नही निकलने दिया था। उनके प्रयासों से सार्स क्राइसिस -1 में ही सीमित हो गया था। उस समय कनाडा ने दिखा दिया कि ऐसी परिस्थिति को कैसे काबू करना है। अब भारत का आयुर्वेद दिखा सकता है?
कोविड-19, सार्स क्राइसिस -2 के मामले में ऐसा नही हुआ और यह दुनिया भर में फैल रहा है। इसको जहाँ जितनी अनुकूलता मिली, उतनी तेजी से ही यह बढ़ता गया, क्योंकि यह प्राकृतिक अनुकूलन की पालना करना जानता है। इसने अपने आप को चालाकी से फैलाया। इस वायरस ने चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत को भी सिद्ध किया है।
भारत जो की प्राकृतिक आरोग्य रक्षण की पद्धति में विश्वास रखता है। प्रकृति के साथ अधिक सम्मान से जीता है। भगवान भरोसे, यह देश इसकी मार से कम चपेट में आएगा। यहां के लोगों की मृत्यु दर कम होगी लेकिन आर्थिक हानि और भौतिक संसाधनों की बर्बादी बहुत अधिक हुई है। भारत के सामने विकट परिस्थिति बनी है किन्तु राष्ट्रहित को देखते हुए भारत में जल्द से जल्द सकारात्मक विचारों के साथ आर्थिक व मानवीय हानि को रोकने का प्रयास आयुर्वेद द्वारा होना था। इस प्रयास में लाभ से अधिक शुभ का ख्याल रखना अच्छा होगा। आयुर्वेद एवं आयुष से कोरोना का इलाज अधिक कारगर हो सकता है। दूसरी पद्धति में भी इसका इलाज नही है। हम अपनी पद्धति में ही इसके इलाज की खोज करें।
हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ यदि दिसम्बर 2019 में ही इस वायरस के चरित्र के बारे में सरकारों को समझाकर, भारत में बाहर से आने वाले विदेशियों व स्वदेशियों को आने पर रोक लगा देते तो अच्छा होता। ऐसे में भारत में भी कोई डोन लो जैसा स्वास्थ्य विशेषज्ञ खडा होकर सरकार को समझाने में सफल होता। इसी रास्ते से हम इस संकट ये बच सकते थे। हमारे स्वास्थ्य सक्षम जीव वैज्ञानिकों को भी इस वायरस की मार को स्वंय समझकर भारत को इससे बचाना चाहिए था, सार्स क्राइसिस -1, सार्स क्राइसिस -2 दोनों ही चीन की उपज है। ये दोनों ही बहुत धोखेबाज है। इन पर हमारा अहिंसक आयुर्वेद ही सफल होगा।
भारत के किसान-मजदूर अपना पेट भरने के लिए शहरों से निकलकर वापस गाँव में आने लगे है। उन्हें आज भी कोरोना महामारी से बचने के लिए अपने गाँव की हरियाली, पानी, मिट्टी ज्यादा सुरक्षित दिख रही है। इसलिए इस लॉकडाउन से त्रस्त होकर लोग गाँवों की तरफ जैस-तैसे दौड़ रहे हैं। बहुत सारे लोग रास्ते में मर रहे है, फिर भी अपने गांव जाना उन्हें ज्यादा सुरक्षित दिख रहा है। भारतीय स्वास्थ्य रक्षण आयुष में सरकार को विश्वास रखकर, अपनी जनता को अपने घरों में पहुँचाने की जल्द से जल्द व्यवस्था करनी चाहिए। गाँव में जाने से पहले इनका स्वास्थ्य जांच व निरिक्षण अत्यंत आवश्यक है।
भारत देश में एक से एक बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भरमार है। यहाँ नरेन्द्रनाथ मल्होत्रा जैसे जैव रसायन और भारत सरकार के नीरी में वायरस पर काम करने वाले डॉ. कृष्णा खैरनार जैसे समर्पित वैज्ञानिकों की बहुत लम्बी सूची है। इन सबसे बात करके भारत के स्वास्थ्य रक्षण व प्रतिरक्षण शक्ति को समझकर, जल्द से जल्द भारत की मानवीय और आर्थिक हानि को रोकने का काम तेजी से होना चाहिए। इस पूरी समय दुनिया और भारत संकट में है। सभी राजनैतिक दलो को अपनी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर, कोरोना-2 से होने वाली मानवीय और आर्थिक हानि को रोकने के तत्काल/ संगठित होकर उपाय करना चाहिए।
2002 में सार्स क्राइसिस -1 के बुरे असर ने 8422 लोगों को संक्रमित किया था। जिसमें से 802 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इसकी मृत्यु दर 11 प्रतिशत के आसपास थी। अभी कोविड-19 कोरोना, से मृत्यु दर उस काल के वायरस के मुकाबले कम है। आज दिनांक 08 दिसंबर 2020 तक भारत में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 9703908 है, जिनमें से 140994 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और दुनिया में यह आंकडा 67940857 केस में से 1550303 लोगों की मृत्यु हो गई है। यह मृत्यु दर सार्स क्राइसिस -1 के मुकाबले कम है। भारत का प्राकृतिक अनुकूलन जीवन पद्धति का प्रभाव है। आज अवसर है कि पूरा भारत एक होकर कोरोना से होने वाली सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक व स्वास्थ्य हानि को रोकें।
*लेखक पूर्व आयुर्वेदाचार्य हैं तथा जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।