– ज्ञानेन्द्र रावत*
आज कोरोना नामक वैश्विक महामारी से देश संक्रमणकाल से जूझ रहा है। हालात इसके जीते-जागते सबूत हैं। समूची दुनिया में अभी तक यह महामारी तकरीब एक लाख से अधिक लोगों की जान ले चुका है। 16 लाख से अधिक लोग इसके संक्रमण के शिकार हैं। वह बात दीगर है कि अभी तक क्वारांटाइन में रखे गए तकरीब 3 लाख 75 हजार लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं।
कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में इटली सबसे उंचे पायदान पर है। उसके बाद अमेरिका का स्थान है। अमेरिका जैसे देश का न्यूयार्क शहर इसका हाॅटस्पाॅट बना हुआ है। हमारे देश में भले इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा 242 और संक्रमितों का 7 हजार 600 को पार कर चुका है। 652 ठीक भी हुए हैं। लेकिन देश में संक्रमितों की तादाद में तेजी से हो रही बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय है। उस दशा में और जबकि दुनिया में कोरोना से होने वाली मौतों में 40 से कम उम्र के नौजवानों की तादाद ज्यादा है। यह खतरनाक संकेत है।
देश में महाराष्ट्र् ऐसा राज्य है जहां कोरोना संक्रमितों की तादाद 1500 का आंकड़ा पार कर चुकी है। वहां अबतक 110 मौतें हो चुकी हैं। राज्य की राजधानी मुंबई कोरोना का सबसे ज्यादा शिकार है। दूसरा स्थान दिल्ली, तीसरा तमिलनाडु और चैथा तेलंगाना का है। महाराष्ट्र् सरकार इस महामारी से निपटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। अकेले मुंबई में 1500 टैस्ट रोजाना किये जा रहे हैं। दिन-ब-दिन इसमें और तेजी लाई जा रही है। साउथ वर्ली और धारावी के कुछ इलाकों सहित कुछ क्षेत्र हाॅटस्पाॅट बना दिये गए हैं। यहां संक्रमितों के इलाज में लगे कुछ डाक्टर सहित 26 नर्सें कोरोना की शिकार हैं। यहां महामारी के विस्तार में सउदी अरब आदि देशों से आये लोगों, एशिया के सबसे बड़े स्लम धारावी, तब्लीगी जमात के लोगो की धारावी में मौजूदगी, प्रशासन की लापरवाही, आम जनता का कोरोना से बचाव के निर्देशों का न मानना सबसे बड़ा कारण है। इसको मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर ने खुद स्वीकारा है। धारावी ऐसा स्लम है जिसकी आबादी 15 लाख से ज्यादा है जहां तकरीब 41 फीसदी लोग रहते हैं। इसमें 7 फीसदी से अधिक एक ही परिवार के सात-सात लोग एक कमरे में रहते हैं। ऐसे में सोशल डिस्टैंसिंग का सवाल ही नहीं उठता। यह पूरा का पूरा इलाका सील कर दिया गया है। फिर भी मस्जिदों से और छिपे हुए तब्लीगी जमात से जुड़े संक्रमितों का आये-दिन पकड़ में आना बड़ी मुसीबत बन गया है। चिंता तो यही है कि यदि धारावी नियंत्रित नहीं हुआ, तब मुंबई कैसे बच पायेगी?
देश की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। नतीजतन लोगों को गुणवत्ता पूर्ण चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती। उस स्थिति में जबकि हमाारा देश छह लाख डाक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी से जूझ रहा है। अमेरिका के सेन्टर फाॅर डिसीज डायनामिक्स, इकोनोमिक्स एण्ड पाॅलिसी यानी सीडीडीईपी और दि हैल्थ वर्क फोर्स इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार हमारे यहां दस हजार लोगों पर एक डाक्टर है, जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार एक हजार पर एक डाक्टर होना चाहिए, एंटीबायोटिक दवाओं को उचित तरीके से देने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की कमी और एंटीबायोटिक नहीं मिलने से ज्यादा मौतें होना जगजाहिर है। फिर दुर्लभ बीमारियों के लिए यहां फंड नहीं है। नीति आयोग इस बात को कई बार कह चुका है कि केन्द्र सरकार को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 फीसदी चिकित्सा क्षेत्र में खर्च करना चाहिए लेकिन खर्च 1.15 फीसदी ही किया जा रहा है। गौरतलब है कि जीवन के अधिकार में स्वस्थ जीवन का अधिकार भी शामिल है लेकिन नई सदी और नए दौर में इस ओर ध्यान न दिया जाना बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चिंता का सबब यही है। वह बार-बार देशवासियों से लाॅकडाउन के दौर में संयम बरतने, घर में ही रहने, गली-मोहल्ले में नहीं जाने, सामाजिक दूरी बनाने और कोरोना के संक्रमण से बचाव के तरीकों का अमल करने का पुरजोर अनुरोध कर रहे हैं। सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र के प्रमुखों से उन्होंने अपने अनुयायियों-समर्थकों को समझाने, जागरूक करने और बचाव हेतु जारी दिशा-निर्देशों का पालन करने की अपील की है। उन्होंने देशवासियों से कहा है कि हम इस महामारी का मुकाबला समाज की सहभागिता, संयम और आत्मविश्वास से करने में समर्थ होंगे। पिछले दिनों में आपने अपनी उर्जा और साहस के बलबूते यह करके भी दिखाया है जिसका लोहा सारी दुनिया ने माना है। यह परीक्षा की घड़ी है। आगे भी आप उसी उत्साह से इस चुनौती का मुकाबला करेंगे। संकट की घड़ी में राहत पैकेज, गरीबों को राशन, भोजन और उनके खातों में सहायता राशि डाले जाने की व्यवस्था सरकार युद्ध स्तर पर कर रही है। कोरोना पीड़ितों के इलाज में डाक्टरों, नर्साें और स्वास्थ्य कर्मियों के अनथक परिश्रम की सर्वत्र सराहना-प्रशंसा हो रही है। यह गर्व का विषय है।
इसमें दो राय नहीं कि महामारी से बचाव की दिशा में राजधानी दिल्ली हो, उ0 प्र0 हो, म0 प्र0 हो या और किसी भी राज्य में युद्धस्तर पर प्रयास जारी हैं। उनमें संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को हाॅटस्पाॅट के रूप में चिन्हित कर सीज कर दिया गया है। उ0 प्र0 में 40 संवेदनशील घोषित जिलों में नौएडा सबसे बड़ा हाॅटस्पाॅट बनकर उभरा है। उसके बाद दिल्ली है जहां घनी आबादी वाले नबी करीम, चांदनी महल, सदर बाजार सहित बंगाली मार्केट और साउथ मोती बाग आदि 30 इलाके हाॅटस्पाॅट घोषित कर साल कर दिये गए हैं। दैनिक उपयोग की चीजों की आपूर्ति प्रशासन और पुलिसकर्मियों द्वारा की जा रही है। इस दौर में दुनिया में संक्रमितों और उनके इलाज में दिन-रात एक करने वाले डाक्टरों व उनके सहकर्मियों व चैबीसौ घंटे ड्यूटी देने वाले पुलिसर्मियों के जीवन की रक्षा के लिए की जाने वाला दुआओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। वहीं संक्रमितों की जांच हेतु 121 सरकारी और 51 निजी प्रयोगशालायें रात-दिन अपने काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं। सुरक्षाकर्मियों द्वारा जरूरी किट के अभाव के बावजूद लगातार सेवा करते रहना उनके देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे को ही दर्शाती है।
बीते दिनों में कोरोना के मामलों को और बढ़ाने में कुछ मुस्लिम धर्म गुरूओं, इमामों, की अहम् भूमिका है जो यह कहते नहीं थकते थे कि कोरोना से हमें कुछ नहीं होगा। ऐसे लोगों ने सरकार के निर्देशों की खुल्लमखुल्ला अवहेलना कर मस्जिदों में नमाज पढ़वाई। इसमें तब्लीगी जमात के मुखिया मौलाना साद ने प्रमुख भूमिका निबाही। गौरतलब है कि निजामुद्दीन स्थित मरकज में आये हजारों लोगों में सैकड़ों विदेशी थे। इन्हीं में से मलेशिया से आये लोगों से दूसरों में कोरोना का विस्तार हुआ। यहां से यह लोग कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के विभिन्न राज्यों में गए। नतीजतन देश के 21 राज्यों में इन्होंने कोरोना की सौगात बांटी। सबसे बड़ी चैंकाने वाली बात यह कि संक्रमितों में एक तिहाई मरकज से जुड़े लोग हैं। विडम्बना यह कि आज भी मस्जिदों में नमाज अदा की जा रही है। म0 प्र0 आदि राज्यों के उदाहरण सबूत हैं कि ऐसे मामले थम नहीं रहे। अभी भी जमात से जुड़े लोग छिपकर रह रहे हैं। उनके द्वारा दिल्ली के द्वारका में क्वाराइंटाइन सेन्टर में पेशाब से भरी बोतल फैंका जाना, नरेला में कमरे के आगे शौच किया जाना, गाजियाबाद में महिला स्वास्थ्य कर्मियों के सामने कपड़े उतारना, दीवारों पर थूकना, कानपुर में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बदसुलूकी क्या दर्शाती है। आखिर किस बात का बदला ले रहे हैं यह लोग। क्या कोरोना के कैरियर बनकर यह देशद्रोह का अपराध नहीं कर रहे। समझ नहीं आता जब मंदिर, गुरूद्वारे, चर्च बंद हैं, फिर मस्जिद बंद क्यों नहीं। ऐसे हालात में कम्युनिटी संक्रमण की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। उसका मुकाबला आसान नहीं होगा।
कोरोना से बचाव की दिशा में सरकारी निर्देशों की अवहेलना करने के मामलों में मुल्ला,मौलवी, इमाम और अकेली तब्लीगी जमात ही जिम्मेदार नहीं है। इसमें अन्य राजनीतिक दल और सत्ताधारी पार्टी भाजपा भी पीछे नहीं रही है। प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि कोई सोशल डिस्टेंसिंग की लक्ष्मण रेखा ना लांघे। लेकिन इसी बीच सैकड़ों लोगों के बीच असम के भाजपा विधायक माॅल का उद्घाटन कर रहे हैं, होशंगाबाद में अभी हाल में भाजपा में शामिल पूर्व विधायक हरदीप सिंह डंग भाजपा के सदस्यता अभियान हेतु जुलूस निकाल रहे हैं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदिुरप्पा रोक के बावजूद भव्य शादी समारोह में भागीदारी कर रहे हैं, म0 प्र0 में शिवराज सिंह चैहान की ताजपोशी,उ0 प्र0 में महासभा द्वारा रामलला का सिंहासन ग्रहण समारोह, कर्नाटक के भाजपा विधायक मासेल जयराम द्वारा जन्म दिन समारोह में सैकड़ों लोगों को बिरयानी की दावत देना, जब केरल, दिल्ली और ओडिसा में सरकारें राहत में जुटी थीं, उस समय म0 प्र0 में सरकार बनाने में नेता निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे थे, आदि आदि अनेकों उदाहरण क्या प्रधानमंत्री के निर्देशों के अनुपालन को दर्शाते हैं।
इतिहास सबूत है कि संकट के समय देश की एकजुटता और उससे संघर्ष करने की अदम्य क्षमता हमारे देश की विशिष्टता रही है। ऐसी हालत में जबकि यह समस्या दिनोंदिन भयावह होती जा रही है, लाॅक डाउन बढ़ाया जाना समय की मांग है। टाॅस्क फोर्स भी इसकी संस्तुति कर चुकी है। असलियत में यह अनुशासन पर्व है। उस हालत में जबकि गोवा, तेलंगाना, महाराष्ट्र्, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, और पुडुचेरी सहित अधिकांश राज्य लाॅकडाउन बढ़ाने के पक्षधर हंै। केन्द्र शासित चंडीगढ़ सहित पंजाब, राजस्थान, उड़ीसा ने तो इसकी घोषणा भी कर दी है। डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल का कहना है कि मौजूदा हालात में लाॅकडाॅउन हटाना आत्मघाती होगा। अगर ब्रुकिंस की पूर्व निदेशक शमिता राव की मानें तो उस दशा में जबकि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली जगजाहिर है और इस महामारी की कोई दवा ही नहीं है, लाॅकडाॅउन के सिवाय कोई चारा नहीं है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी विकास सरूप की मानें तो यदि लाॅकडाउन न होता तो 15 अप्रैल तक देश में कोरोना संक्रमितों की तादाद 8 लाख 20 हजार होती। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में लाॅकडाॅउन बढ़ाने के बाबत राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लिखित में देने के लिए कहा है ताकि शीघ्र विचार किया जा सके। आशा है शीघ्र ही इसकी घोषणा कर दी जायेगी।
इस मामले में अन्टारियो कनाडा की डा. पूजा चोपड़ा, बारबिक अस्पताल, अमेरिका के डा. दीपांकर बोस, कैलिफोर्निया के डा. मुनीष लूम्बा, रेडिक्स अस्पताल दिल्ली के डा. रवि मलिक और लंदन हैल्थ केयर साइंस सेन्टर के डा. राजीव आहूजा का कहना है कि इसका सबसे बड़ा इलाज बचाव है। इसलिए मनुष्य को सामाजिक गतिविधियां कुछ समय के लिए बंद करनी होंगी, उनपर अंकुश लगाना होगा। घर में ही रहें तो बहुत अच्छा होगा। बाहर जाने से बचना होगा। एक दूसरे के संपर्क में आने से बचें। थूकने से भी यह वायरस फैलता है। मुंह को ढंकें। खांसते समय रूमाल का इस्तेमाल करें। लगातार बार-बार हाथ धोएं। किसी चीज को छूने के बाद सैनिटाइजर या साबुन से अच्छी तरह हाथ धोवें। सबसे बड़ी बात बचाव की है और अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की है। इससे बचने का यही कारगर उपाय है।
इस समय हमारा देश बाहरी और घरेलू दोनों तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस उथल-पुथल का हमारी अर्थ व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उद्योग, निर्यात, पर्यटन व्यापार, उत्पादन, यातायात न होने से अर्थव्यवस्था पंगु हो गई है। इसका परिणाम बेरोजगारी और भुखमरी के रूप में सामने आयेगा। तकरीब 30 से 40 फीसदी नौकरियां खत्म होने की आशंका है। असंगठित क्षेत्र सबसं ज्यादा प्रभावित होगा। इसकी भरपायी अगले दो दशकों में हो पाना मुश्किल है। उस दशा में जबकि देश के 94 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र पर निर्भर हैं। कृषि क्षेत्र भी प्रभावित हुए नहीं रहेगा। श्रमिकों के अभाव से दो चार होना होगा। वर्तमान में खेत में फसल खड़ी है लेकिन मजदूर नदारद है। सूरत में हजारों मजदूर बेकारी और भुखमरी के चलते सड़कों पर हैं। नियोक्ता द्वारा छंटनी, तनख्वाह न देने के संकेत और कर्मचारी के अर्जित अवकाश को इस लाॅकडाॅउन के समय में समायोजित करने की सूचना से वैसे ही कर्मचारी बेचैन है। अब तो वह कह देगा कि पैसा ही नहीं है, कहां से दें। पैसे का अभाव अराजकता को जन्म देगा। जाहिर है आर्थिक मंदी से निपटना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। मौजूदा हालात ने इस क्षेत्र की समस्याओं को भयावह स्तर तक बढ़ाने का काम किया है। उन हालात में जबकि इस क्षेत्र की बिगड़ती सेहत के चलते वास्तविक विकास दर निचले स्तर पर है। बहरहाल, इस समय आइये इस वैश्विक आपदा का एकजुट होकर समूल नाश करें, यही सच्ची राष्ट्र् सेवा होगी।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार, पर्यावरणविद् एवं राष्ट्र्ीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हैं।