संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकारी दावों को झूठा साबित करने के लिए जारी किया प्रपत्र
गाजियाबाद: संयुक्त किसान मोर्चा ने आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर आरोप लगाया कि गाजियाबाद दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन के बेरियर नंबर-एक पर उनके लोग आकर पत्थरबाजी करते हैं। “मंगलवार को भी चौथी बार ऐसी घटना हुई। पुलिस एफआईआर दर्ज करने को तैयार नहीं होती,” मोर्चा के एक नेता और भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने आज प्रेस वार्ता में कहा। इन घटनाओं के मद्देनज़र मोर्चा ने अब पूर्व सैनिकों को आंदोलनकारी किसानों की सुरक्षा का जिम्मा सौंप दिया है। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन ने बताया कि आंदोलन के वालंटियर भी अब पूर्व सैनिकों के निर्देशन में काम करेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि उन्हें यहां शांतिपूर्वक आंदोलन करने दिया जाए। इस मौके पर किसान सभा के नेता डीपी सिंह ने कहा कि पूर्व सैनिक आंदोलन स्थल पर आने वाले असामाजिक तत्वों पर नजर रखेंगे और आंदोलनकारियों की सुविधा का भी ध्यान रखेंगे। पूर्व सैनिक जेपी मिश्रा ने बताया कि हम लोग किसान आंदोलन के साथ कोई साजिश कामयाब नहीं होने देंगे। यदि कोई ऐसा मंसूबा रखता है तो उसे त्याग दे।
भाकियू के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने कहा कि इस बार सत्र बुलाए जाने पर किसान संसद का घेराव भी करेंगे। “हमने संयुक्त मोर्चा में कल प्रस्ताव दिया था कि सत्र शुरू होते ही संसद का घेराव किया जाए। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पर फैसला ले लिया है। सत्र शुरू होते ही किसान संसद का घेराव करेंगे। प्रधानमंत्री जी को हम प्रेस के माध्यम से बता देना चाहते हैं कि उनके गुजरात में प्रेसवार्ता के बीच से किसान नेता को उठाकर गिरफ्तारी की जाती है, गुजरात मॉडल इस देश में नहीं चल पाएगा। यह देश किसानों का है, यह देश जवानों का है। इस देश को किसान और जवान ही चलाएगा। जो सत्ता के नशे में रहने वालों की कुर्सी खींचने में पूरी सक्षम हैं,” मलिक ने कहा।
किसान नेता आशीष मित्तल ने कहा कि सरकार के उस सवाल का जबाब देने के लिए जिसमें सरकार यह पूछती है कि कानूनों में काला क्या है, संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से एक प्रपत्र जारी किया गया है जिसमें बताया गया है कि किसान की जमीन किस तरह से जाएगी। “कानूनों से ली गई धाराओं के हवाले से हमने यह बताने का प्रयास किया है। सरकार झूठा दावा करती है कि इन कानूनों से किसान की जमीन नहीं जाएगी। यह प्रपत्र बताएगा कि जमीन कैसे जाएगी। इसकी प्रतियां यूपी और उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में भी वितरित कराई जाएंगी,” मित्तल ने कहा।
मित्तल ने कहा कि प्रधानमंत्री के एमएसपी है और रहेगी के दावे के विपरीत उनके कानून बताते हैं कि किसान की फसल का रेट ऑनलाइन बोली के हिसाब से तय होगा। इतना ही नहीं इन कानूनों में व्यापारी को इस बात की छूट भी दी जाएगी कि वह किसान से अनाज खरीदने के बाद तब तक उसका भुगतान करने के लिए समय पा सकेगा जब तक उस अनाज को आगे बेचकर भुगतान प्राप्त हो, यानी किसान से अनाज उधार पर ही जाएगा। मित्तल के अनुसार गन्ना सोसायटियां भी अब मंडियां चलाने में लगाई जाएंगी। “मतलब साफ है कि इन कानूनों के लागू होने के बाद न तो देश में एमएमपी रहेगी और किसान के पास जमीन। यह बात तो किसान की रही, अब देश के आम जन के लिए जो सबसे बड़ा खतरा आने वाला है, वह है खाद्य सुरक्षा का। नए कृषि कानून आने के बाद सरकार पीडीएस बंद कर देगी तो खाद्य सुरक्षा बचेगी कैसे? खाद्य सुरक्षा के नाम पर अनाज नहीं पैसा मिलेगा और अनाज का रेट कारपोरेट तय करेगा,” उन्होंने कहा।
मोर्चा ने कहा कि सरकार यूनिफार्म फ़्रॉडुलेंट ट्रांसफर्स एक्ट (यूएफटीए) पर साइन करने जा रही है और किसान तीन नए कृषि कानूनों की ही तरह यूएफटीए का भी विरोध करेगा। “यूएफटीए हमारे डेयरी उद्योग पर बड़ा खतरा है और पहले से ही हमारे एजेंडे में है। किसान तीन नए कृषि कानूनों की ही तरह यूएफटीए का भी विरोध करेगा। यूएफटीए के माध्यम से डेन्मार्क जैसे देश में दूध आयात किया जाएगा और किसान से कृषि के साथ दुग्ध उत्पादन का काम भी छीनने की तैयारी है,” उन्होंने कहा।
गाजीपुर आंदोलन कमेटी के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने प्रेसवार्ता के दौरान बताया कि उत्तराखंड के बाजपुर और खटीमा जनपदों में उत्तराखंड सरकार 20 गांवों की जमीन छीन रही है। खटीमा में सवा सौ एकड़ और बाजपुर में 5800 एकड़ जमीन बचाने के लिए किसान दस माह से आंदोलन कर रहे हैं। गुरूवार को दस माह पूरे होने पर गाजीपुर बार्डर पर किसान दोपहर 12 से 1 बजे तक एक घंटे का सांकेतिक उपवास कर उत्तराखंड सरकार को बताने का प्रयास करेंगे कि सरकार दस माह से आंदोलनरत किसानों की सुध ले। बाजवा ने बताया कि वह दस माह से उत्तराखंड में चल रहे आंदोलन के संयोजक भी हैं। “इसी बीच नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू होने पर दिल्ली बार्डर पर आ गए पर उत्तराखंड सरकार को बता देना चाहते हैं कि बाजपुर और खटीमा की पीड़ा हम भूले नहीं हैं और जरूरत पड़ी तो उत्तराखंड सरकार के खिलाफ भी आंदोलन तेज करेंगे,” उन्होंने कहा।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो