– लता
दिल्ली: जहां एक तरफ तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए 40 किसान यूनियनों का संयुक्त किसान मोर्चा मोर्चे पर डटा हुआ है और उसके समर्थकों ने आज दिन बार का अनशन किया, वहीँ कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आज अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के सदस्यों से मुलाक़ात की और दावा किया कि ये किसान नेता उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, बिहार और हरियाणा से आये थे और इन्होंने कृषि बिल कानून को अपना समर्थन दिया है।
हालांकि संयुक्त किसान मोर्चे ने मंत्री के इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि जिस समिति का सरकार ने ज़िक्र किया है वे किसानों के प्रतिनिधि हैं ही नहीं। इसी विषय में तीखा प्रहार करते हुए भारतीय किसान यूनियन के महासचिव और प्रवक्ता धर्मेंद्र ने ग्लोबलबिहारी.कॉम को कहा कि सरकार से मिलने वाले ये लोग कोई संगठन नहीं है बल्कि ये वो लोग है मंत्री जी के समर्थक लोग हैं जो सरकार से मिले हैं। “अगर इनके नाम पते आपके पास हो तो आप हमारे साथ इनके घर चलिए, कुछ लोग तो काशीपुर से आए थे जो खनन बजरी का काम करते है और मंत्री जी के ऊपर निर्भर है क्योंकि इनके धंधे बंद हो जाएंगे। ये तो सरकार ने जबरदस्ती मंत्री जी को कह के बुलाया की अगर कुर्सी चाहिए तो आप अपने लोगों को बुलाओ और इस क़ानून का समर्थन कराओ। ये तो सरकार के लोग हैं। भारतीय जनता पार्टी के वर्कर्स हैं। ये किसान संगठन नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने दस साल में कहीं आंदोलन किया है और इनकी कहीं फोटो छपी है तो हम इन्हें किसान नेता माने।”
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मलिक के अनुसार ये किसान संगठन सरकार द्वारा अब बनाए जा रहे है। “किसान संगठन वो होता है जो आंदोलन करता है इनके आंदोलन का कोई इतिहास नहीं है ये वो लोग है जो मंत्री जी और विधायक जी के रहम-ओ-करम पर जिंदा है। हमारे किसान आप आकर देखिए कई किलोमीटर की लाइन में यहां है। कई किलोमीटर की लाइन में सिंघू बॉर्डर पर है। ग़ाज़ीपुर, सिंघु और सिकरी बॉर्डर सब बंद पड़ा हुआ है तो ये सब किसान ही हैं असली। किसान तो सड़क पर है खुले आसमान के नीचे है। जो लग्ज़री गाडियों में बैठकर आए है वो किसान थोड़ी हो सकता है उनको तो सरकार ने बढ़िया बस उपलब्ध कराई और आकर बोल दिया कि हम समर्थन में है। वो तो सरकारी किसान आए थे”।
किसानों का अनशन समाप्त होते ही भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने चेतावनी दी कि सरकार को समय रहते चेतना चाहिए अन्यथा नुकसान होगा – “सरकार को किसान बनाना भी जानता है गिराना भी जनता है।” उन्होंने कहा : “किसानों से आप जीत नही सकते। हम किसान है किसानों का मकसद उनकी मांगे है न कि सरकार को अस्थिर करना । हम राजनैतिक दल नही है।सरकार हमारी मांगो का निस्तारण करे। सर्दी के मौसम में खुले आसमान में कोई ऐसे ही नही रुकता है । यह खेती व पेट का सवाल है।”
आज के अनशन को कामयाब बताते हुए टिकैत ने कहा कि आज उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत मे सभी जिला मुख्यालयों पर किसानों ने प्रदर्शन किए थे। “यह अब जनांदोलन का रूप है। सरकार को देरी महंगी पड़ेगी,” उन्होंने कहा।
टिकैत ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर किसानों का उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में किसानों को गिरफ्तार किया जा रहा है और किसानों की ट्राली बंद की जा रही है तथा उत्तराखंड के किसानों को रोके हुए है – “हमारी लड़ाई लंबी है। राज्य सरकार इसमें दखल न दे। भाकियू उत्पीड़न बर्दाश्त नही करेगी। अगर किसानों को रोका तो हम गाजीपुर बॉर्डर रोक देंगे । जिस थाने में किसानो को रोका जाएगा हमारे स्थानीय कार्यकर्ता वही पशुओं को बांधने का काम करेंगे”।
आज संयुक्त किसान मोर्चे के अनशन में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उपवास रखा। केजरीवाल ने मोदी सरकार से ‘‘अहंकार’’ छोड़ने और आंदोलनकारी किसानों की मांग तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की अपील की। दरअसल, सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर कृषि कानून के खिलाफ पिछले 19 दिन से चल रहे किसान प्रदर्शनों में पंजाब और अन्य राज्यों से और किसानों का आना जारी है।
इस बीच कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न राज्यों के पदाधिकारियों ने आज कृषि भवन में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की। इस मौके पर तेलंगाना, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु और बिहार के किसान नेताओं ने कृषि मंत्री से बातचीत की। विज्ञप्ति के अनुसार सभी इस बात से आश्वस्त थे कि हाल में पारित नए कृषि कानूनदेश भर के किसानों के हित में हैं और ये किसानों को उन बिचौलियों के चंगुल से मुक्त कराएंगे जिन्होंने वर्षों तक उनका शोषण किया है।
सरकार ने कहा कि इन कृषि नेताओं का मानना था कि नए कानून किसानों के लिए कृषि उपज की बिक्री और खरीद की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे और इससे कृषि उपज विपणन समितियों के दायरे के बाहर भी उन्हें बाधा मुक्त व्यापार और वाणिज्य का अवसर मिलेगा। उनका कहना था कि किसानों को खरीददारों के साथ करार का अधिकार मिलने से कृषि उत्पादों का पहले से मूल्य निर्धारित किया जा सकेगा जिससे बाजार में किसी तरह के अप्रत्याशित़ उथल-पुथल का जोखिम किसानों की बजाए प्रायोजकों को उठाना पड़ेगा। उनका मानना था कि इन कृषि सुधारों से किसानों के लिए कृषि क्षेत्र में निजी निवेश आकर्षित करने के अलावा आधुनिक तकनीक, बेहतर बीज और अन्य कच्चे माल तक पहुंच भी आसान हो जाएगी।
अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के प्रतिनिधियों ने कृषि मंत्री को आश्वासन दिया कि उनकी समिति के बैनर तले सात हजार से अधिक गैर-सरकारी संगठन काम करते हैं जिनके सदस्य हाल में बनाए गए कृषि कानूनों का समर्थन करने के लिए आगे आ सकते हैं। उन्होंने इन कृषि कानूनों को लागू करने के लिए केंद्र सरकार का आभार व्यक्त किया और इन्हें वापस लेने की आंदोलनकारियों की मांगें नहीं मानने का अनुरोध किया। उन्होंने यह भी अपील की कि सरकार को विज्ञापनों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से इन कानूनों के लाभ के बारे में लोगों को बताना जारी रखना चाहिए।
कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार की मंशा और नीति स्पष्ट है। सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए सुधारों से पहले से ही किसान लाभान्वित हो रहे हैं, यह आगे उनकी आय बढ़ाने में भी मदद करेंगे। सरकार किसानों से बातचीत करने के लिए हमेशा तैयार है।