– प्रशांत सिन्हा
आज देश में कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली और गुरु नानक देव की जयंती मनाई जा रही है। गुरु पर्व का सिख धर्म में बहुत महत्व है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरुनानक जयंती मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू ओर सिख धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन को गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है तो वहीं इस दिन ही प्रकाश पर्व भी मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने के बाद दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है एवं पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने इस दिन देवलोक पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था और उसके वध के खुशी में देवताओं ने इस दिन दीपावली मनाई थी।
त्योहारों, उत्सवों के माह कार्तिक की अंतिम तिथि देव दीपावली है। कार्तिक माह के प्रारंभ से ही दीप दान एवं आकाशदीप प्रज्वलित करने की व्यवस्था के पीछे गायत्री मंत्र में आवाहित प्रकाश से धरती को आलोकित करने का भाव रहा है क्योंकि शरद ऋतु से भगवान भास्कर की गति में परिवर्तन होता है। इसके चलते दिन छोटा होने लगता है और रात बड़ी यानी अंधेरे का प्रभाव बढ़ने लगता है। इसलिए इससे लड़ने का उद्यम भी है दीप जलाना।
सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव की जयंती पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन सभाओं में गुरु नानक देव के द्वारा दी गई शिक्षाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और लंगर का आयोजन किया जाता है। श्री गुरु नानक जी ने सम्पूर्ण विश्व का अन्याय, अत्याचार एवं शोषण के विरूद्ध एक जुट होने का मार्ग दिखाया है। गुरु नानक जी ने ” किरत करो, वंड छको ” जैसे उपदेश देकर समाज को स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खड़ा होने में समर्थ किया। गुरुनानक जी ने स्वयं खेती कर युवाओं को बहुत बड़ा संदेश दिया था सामाजिक सरसता के लिए गुरु जी का जाति धर्म की संकुचित दीवारें तोड़ने के लिए संगत पंगत का आह्वान, काम की प्रतिष्ठा बढ़ाने और बांट कर खाने का सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है। गुरुनानक जी का जीवन, चिंतन व दर्शन काल की सीमा से परे है।
प्रकाश पर्व अंधकार से लड़ने का संदेश देता है लेकिन केवल अंधेरे से नहीं बल्कि उस तमस से भी जो हमारे मन मस्तिष्क में घर लेता है। कोई भी समाज हो उसे भौतिक समृद्धि के साथ आत्मिक शान्ति भी चाहिए होती है। इसकी प्राप्ति तब होती है जब मन के कलुष को दूर करने की चेष्टा की जाती है। हमें अपने सामाजिक परिवेश की भी चिंता करनी है और बिगड़ते हुए पर्यावरण की भी। वास्तव में पर्यावरण को बचाकर ही हम देव दीपावली को ऋतु परिवर्तन के पर्व के रूप में मनाते रह सकते हैं।