लालबहादुर शास्त्री जयंती पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
भारत के द्वितीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती देश 2 अक्टूबर को मनाता है। 2 अक्टूबर को देश में गांधी जी की भी जयंती मनाई जाती है। भले ही शास्त्री जी की राजनीति बापू जैसी नहीं थी लेकिन शास्त्री जी की ईमानदारी अनुकरणीय है। उनके आदर्शों एवं ईमानदारी कि चर्चा लोग आज भी करते हैं और आने वाली पीढ़ी को भी अवगत कराना चाहिए।
भारत – पाक युद्ध 1965 के कुछ ही दिनों के बाद शास्त्री जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में भाषण के दौरान चुटकी ली थी। उन्होंने कहा था ” सदर अयूब ने कहा था कि वह दिल्ली तक चहल कदमी करते हुए पहुंच जाएंगे। तब मैंने सोचा था कि अयूब को क्यों तकलीफ दी जाए हम ही लाहौर की तरफ बढ़ जाएं। ये वही शास्त्री जी थे जिनके पांच फीट दो इंच के कद और आवाज़ का अयूब ने मज़ाक उड़ाया था।
शास्त्री जी बहुत सरल स्वभाव के थे लेकिन स्वाभिमानी थे। 1965 की युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री जी को धमकी दी थी कि अगर आपने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको पीएल के तहत जो लाल गेहूं भेजते हैं उसे बंद कर देंगे। उस समय भारत गेहूं के उत्पादन में आत्म निर्भर नहीं था। शास्त्री जी को ये बात बहुत चुभी क्योंकि वह स्वाभिमानी व्यक्ति थे। उन्होंने देशवासियों को कहा कि हम सप्ताह में एक वक़्त भोजन नहीं करेंगे। ऐसा कहने के पहले उन्होंने अपनी पत्नी से चर्चा किया था। उनकी एक पुकार पर लाखों भारतीयों ने छोड़ दिया था एक वक़्त का खाना।
एक और घटना का जिक्र करना ज़रूरी है। एक बार अमेरिकी राजदूत चेस्टर बोल्स ने शास्त्री जी से मिलकर अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन का अमेरिका आने का न्योता दिया। लेकिन पाकिस्तान के दवाब पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपना न्योता वापस ले लिया था। यह बात शास्त्री जी को अच्छी नहीं लगी। कुछ दिनों बाद वही राष्ट्रपति ने जब उन्हें कनाडा जाते हुए वॉशिंगटन में रुकने का न्योता दिया तो शास्त्री जी ने उसे ठुकरा दिया।
शास्त्री जी की ईमानदारी की चर्चा आज भी होती है। 1963 में शास्त्री जी जब गृह मंत्री थे तो उन्हें किसी कारण इस्तीफा देना पड़ा था। इस्तीफे के बाद वह अपने घर के खर्च अखबारों में लिख कर चलाते थे। जाने माने पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक में जिक्र किया था कि वे बेवजह बिजली खर्च नहीं करते थे। जिस कमरे में अगर कोई नहीं होता था तो कमरा में अंधेरा ही रहता था।
एक बार उनके बेटे उनकी सरकारी गाड़ी इंपाला ले कर घूमने के लिए गए। जब शास्त्री जी को इस बात का पता लगा तो उन्होंने ड्राइवर से कहा कि इसे निजी इस्तेमाल के मद में लिखे और अपनी पत्नी को निर्देश दिया कि प्रति कि.मी. के हिसाब से जितना पैसा बनता है उसे सरकारी खाते में जमा कराए। आज के नेता लाव लश्कर के साथ सड़कों पर निकलते है। उनके बच्चे विदेशी गाड़ियों में घूमते हैं और विदेशों में पढ़ते हैं। आज के सभी नेता आलीशान घरों में रहते हैं और महंगे कपड़े पहनते हैं।
शास्त्री जी कार्य शैली भी अदुभूत थी। उनमें शासन की सूझ बुझ थी। उनकी कार्य शैली नेहरू जी से अलग थी। नेहरू जी बड़े उद्यम सरकारी नियंत्रण में लगाना चाहते थे। यही नहीं पूरे देश का आर्थिक विकास भी सरकारी नियंत्रण से करना चाहते थे। जबकि शास्त्री जी उद्योगों में निवेश कम कर के खाद्य तथा खेती में निवेश बढ़ाने के पक्षधर थे। नेहरू निजी उद्दमों और निर्यात को ज़रूरी नहीं समझते थे जबकि शास्त्री ने इसे बढ़ावा दिया। नेहरू के कार्यकाल में निर्यात को बढ़ावा नहीं देने की वजह से ” भुगतान संतुलन ” की स्थिति बुरी हो गई थी लेकिन शास्त्री जी ने विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देकर, निर्यात को बढ़ा कर एवं खेती में निवेश बढ़ाकर भारत की आर्थिक स्थिति को मजबूती दी। उन्होंने भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाया।
उनकी मृत्यु जल्दी ही गई । अगर कुछ दिन और जीवित होते और प्रधान मंत्री बने रहे होते तब भारत सत्तर के दशक में ही तरक्की कर लिया होता। यही नहीं वंशवाद भी खत्म हो गया होता।
Great… pl keep on writing
Great article, go ahead 🌹🌹
माननीय , पुर्व प्रधानमंत्री शास्त्री जी सभी के लिये थे और हैं परन्तु विड्मना है कि इनको ऐक समुदाय में हीं रखा जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिये। हम सभी का प्रयास होना चाहिये कि इनको सभी समुदायों के बीच में पहुचाना।