श्रद्धांजलि
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
हम अरुण त्यागी को अरुण व ध्रुव देव परिहार को ध्रुव भाई कह कर बोलते थे। इन दोनों ने अपना पूरा जीवन भारत भर में भ्रमण करके देश सेवा में समर्पित किया है। इस दुःख को सहन करना कठिन हो रहा है कि वे समय से पूर्व ही चले गये हैं। वे जब मेरे साथ दिल्ली में यमुना सत्याग्रह आन्दोलन में काम कर रहे थे, तब मैंने उनकी कुशलता और सामाजिक दक्षता देखी थी। वे सक्षम, गहरे समझदार और प्रतिबद्ध समर्पित कार्यकर्ता थे। उनके अंदर संगठन बनाने और नेतृत्व प्रदान करने की अपार क्षमताएँ थीं। उनका अचानक हमारे बीच से जाना चिन्तित कर गया है। आत्मा अमर और सनातन है। दोनों की आत्माएँ जहाँ भी रहेंगी वे अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं से प्रकृति और मानवता की सेवा और पोषण करेंगी। अरुण व ध्रुव सतना के ही सपूत नहीं थे, पूरे देश व समाज सपूत थे। वे जीवन भर भारत में समता और सादगी से प्रकृति और मानवता के लिए प्रतिबद्ध और समर्पित होकर सामाजिक काम करते हुए अचानक से जल्दी ही हमारे बीच से चले गये। वे बहुत कुछ करके गये। देश दुनिया उन्हें स्मरण रखेगी। वे दोनों ही अमर रहेंगे।
शायद भगवान जी को अच्छे काम करने वालों की जल्दी जरूरत होती है। इन दोनों की ही भारत भूमि को भी जरूरत थी। फिर भी भगवान ने उन्हें हमारे साथ से क्यों हटाया? ये दोनों ही आदिवासियों, गरीबों के लिए काम करने हेतु उन्हीं के साथ जंगल में रहे थे। अरुण त्यागी सीधे ही जिले के आदिवासियों के साथ जल, जंगल, जमीन संरक्षण कार्य में लगे थे। मुझे वहाँ के आदिवासियों का काम दिखाने एवं उनसे बातचीत करने बुलाया था। वे स्वयं रेल्वे स्टेशन लेने पहुँचे। छः घण्टे जीप से यात्रा करके जंगल पहुँचाया था। मैंने रास्ते मैं कहा आप काम छोड़कर क्यों आये? आज आपने लोग बुलाए हैं। लोगों से आपको काम की बातें करनी होंगी। बोले मैं तो उन्हीं के साथ रात दिन जंगल में ही रहकर काम करता हूँ। आज तो मैं और लोग केवल आपके साथ ही बातचीत करेंगे। वे ही आपको स्वयं अपना काम दिखाएँगे। वही हुआ। आदिवासियों को उन्होंने सबल, सक्षम और श्रमदक्ष बना दिया था।
आदिवासी महिलाओं ने ही सभा का संचालन किया। उन्होंने ही अपनी जल संरचनाएँ दिखाईं। यह देखकर मैं बहुत आनन्दित हुआ था। अरुण और ध्रुवभाई में समाज को संगठित करने की कुशलता थी। समता, सादगी, सदाचार उनके व्यवहार से उनका संस्कार बन गया था। ये दोनों ही अर्जुन सिंह को प्रिय थे। लेकिन उनका इन्होंने कभी उपयोग नहीं किया था। इन दोनों को ही पद, प्रतिष्ठा और पैसे की चाह नहीं थी, इसलिए उनसे कभी कुछ लिया नहीं। यह बात दिल्ली में स्वयं अर्जुन सिंह ने 2006 में दिल्ली के उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री आदि को बुलाकर हमारे साथ बैठक करने के बाद कही थी। दोनों ही पूरे मध्य प्रदेश में जल बिरादरी का संगठन खड़ा करने के काम में लगे रहे, तब भी कभी संगठन से पैसा नहीं लिया था। इस संगठन के पास पैसा भी नहीं था, बिना पैसा लिए स्वयं सेवी बनकर कैसे काम करना है? यह सीख इन दोनों से ले सकते हैं।
इन दोनों ने ही कभी अपने परिवार की चिंता नहीं की। आज बहुत बुरा काल है। जब कोई अपना जीवन देश-दुनिया की और अपने समाज की सेवा में लगाते हैं, तब वह भी चिंता नहीं करता है। इसलिए आज समाज सेवकों का परिवार अपना जीवन कष्ट से जीता है। इन दोनों का परिवार स्वयं ही आगे बढ़ेगा। कष्ट नहीं उठाना पड़े, ऐसी भगवान से प्रार्थना है। अब वह काल है जब सेवा के बदले गालियाँ ही खानी पड़ती हैं। खास विचार धारा के लोगों ने ये परिस्थितियाँ बनाई हैं। हमें ऐसी परिस्थिति का सामना करते हुए भी अरुण और ध्रुव जैसा काम करते ही रहना है। ये दोनों आज के युवाओं के लिए चुनौतियाँ स्वीकार करके भी सेवा करते रहना ही सिखाते हैं। युवा काल में जो ध्रुव व अरुण की तरह काम करेगा, वह अपना जीवन जरूर सफल बनायेगा। मैं अरुण-ध्रुव का जीवन सफल मानता हूँ। इन्होंने जीवन भर अपनी सेवा किसी से भी नहीं कराई। केवल दूसरों की सेवा करके अपना जीवन दान कर दिया।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं।