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एक सहयोगी को श्रद्धांजलि
–ज्ञानेन्द्र रावत*
देश के लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार, हिन्दुस्तान टाइम्स के डिप्टी एडीटर, उत्तर प्रदेश के विधान परिषद् सदस्य, आगरा से सांसद, राजा विश्व नाथ प्रताप सिंह सरकार में केन्द्रीय रेल उप मंत्री एवं फिजी में उच्चायुक्त रहे अजय सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। 70 वर्षीय अजय सिंह ने गत दिवस प्रातः गुरूग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। श्री सिंह सोमवार को मेदांता अस्पताल में नियमित जांच कराने गये थे, जहां उनको भर्ती कर लिया गया। मंगलवार अल सुबह उनकी अचानक तबियत खराब हो गयी और लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
उनके निधन से देश ने एक प्रखर लेखक, विचारक और ईमानदार नेता खो दिया है।
मृदुभाषी अजय सिंह की कार्यक्षमता-प्रतिभा और पत्रकारिता में उनकी प्रभावी भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए ही पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह ने उनको किसान ट्रस्ट का प्रबंध न्यासी बनाया और हिन्दी, अंग्रेजी में प्रकाशित असली भारत साप्ताहिक के संपादन का दायित्व सौंपा। गौरतलब है इस साप्ताहिक को ग्रामीण भारत खासकर किसानों की आवाज के लिए जाना जाता था। मधु लिमये की पुस्तक के संपादन में भी उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
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अजय सिंह ने चौधरी चरण सिंह द्वारा लिखित पुस्तकों के अलावा उनके लिखे लेखों को संकलित कर “चौधरी चरण सिंह : विशिष्ट रचनाएं” नामक पुस्तक का संपादन भी किया। गौरतलब है कि इस पुस्तक का विमोचन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने किया था।
राजनीति में ईमानदार और सच्चरित्रता के प्रतीक नेताओं के दर्शन दुर्लभ होते हैं। अजय सिंह इस बात के ज्वलंत प्रमाण थे। उनको कभी किसी ने किसी से नाराज होते नहीं देखा। उन्होंने लम्बे समय तक किसान ट्रस्ट के अध्यक्ष का दायित्व संभाला। बाद में वह अखिल भारतीय सर्व जाट महासभा के अध्यक्ष भी रहे।
मुझे गर्व है कि सिंह के साथ सहयोगी के रूप में लम्बे समय तक कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। सिंह का जन्म 15 अगस्त 1950 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ जहां इनके पिता कैप्टन भगवान सिंह कलेक्टर थे। बुलंदशहर में जन्म होने के कारण इनको प्यार से बुलंदा के नाम से जाना जाने लगा। इनके पिता मूर्धन्य साहित्यकार और लेखक थे। वह फिजी में भारत के हाई कमिश्नर भी रहे। वह जाट महासभा के लम्बे समय तक अध्यक्ष रहे। यह मूलतः आगरा के फतेहपुर सीकरी तहसील के किरावली क्षेत्र के जैंगारा कस्बे के रहने वाले थे। इन्होंने न्यूज़ीलैंड की कैंटनवरी यूनिवर्सिटी से स्नातक और पत्रकारिता में डिग्री प्राप्त की। इनका विवाह भारतीय मूल के फिजी के जाने-माने उद्योगपति पंडित श्रीधर महाराज की पुत्री शिरोमणि सिंह से हुआ जिन्होंने लम्बे समय तक नयी दिल्ली स्थित ब्रिटिश दूतावास में अपनी सेवायें दीं। दो वर्ष पूर्व बीमारी के चलते शिरोमणि सिंह का निधन हो गया था। तब से सिंह गुरूग्राम स्थित आवास में अकेले ही रह रहे थे। आगरा और वहां के ग्रामीण अंचल के लोगों से सिंह का जुड़ाव अंत समय तक बना रहा।
उनके राजनीतिक कौशल की बात करें तो उस समय के राजनीति के महापुरोधा भी उनका लोहा मानते थे। यही वह अहम कारण रहा जिसके चलते उन्हें बिहार के गौरव पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा और राजस्थान के शीर्ष नेता चौधरी कुंभाराम आर्य और नाथूराम मिर्धा व राजा विश्व नाथ प्रताप सिंह का तरल स्नेह मिला। असलियत में उन्होंने नेताओं के मध्य सेतु की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया।
*वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद
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