– नरेंद्र मोदी*
मध्य प्रदेश के मेहनती किसान भाइयों -बहनों को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम! आज के इस विशेष कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के कोने-कोने से किसान साथी एकत्रित हुए हैं। रायसेन में एक साथ इतने किसान आए हैं। डिजिटल तरीके से भी हजारों किसान भाई-बहन हमारे साथ जुड़े हैं। मैं सभी का स्वागत करता हूं। बीते समय में ओले गिरने, प्राकृतिक आपदा की वजह से मध्य प्रदेश के किसानों का नुकसान हुआ है। आज इस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के ऐसे 35 लाख किसानों के बैंक खातों में 1600 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए जा रहे हैं। कोई बिचौलिया नहीं, कोई कमीशन नहीं। कोई कट नहीं, कोई कटकी नहीं। सीधे किसानों के बैंक खातों में मदद पहुंच रही है। टेक्नोलॉजी के कारण ही ये संभव हुआ है। और भारत ने बीते 5-6 वर्षों में जो ये आधुनिक व्यवस्था बनाई है, उसकी आज पूरी दुनिया में चर्चा भी हो रही है और उसमें हमारे देश के युवा टेलैंट का बहुत बड़ा योगदान है।
आज यहां इस कार्यक्रम में भी कई किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड सौंपे गए हैं। पहले किसान क्रेडिट कार्ड, हर कोई किसान को नहीं मिलता था। हमारी सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा देश के हर किसान के लिए उपलब्ध कराने के लिए हमने नियमों में भी बदलाव किया है। अब किसानों को खेती से जुड़े कामों के लिए आसानी से आवश्यक पूंजी मिल रही है। इसमें उन्हें दूसरों से ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेने की मजबूरी से भी मुक्ति मिली है।
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आज इस कार्यक्रम में भंडारण-कोल्ड स्टोरेज से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य सुविधाओं का लोकार्पण और शिलान्यास भी हुआ है। ये बात सही है कि किसान कितनी भी मेहनत कर ले, लेकिन फल-सब्जियां-अनाज, उसका अगर सही भंडारण न हो, सही तरीके से न हो, तो उसका बहुत बड़ा नुकसान होता है और ये नुकसान सिर्फ किसान का ही नहीं, ये नुकसान पूरे हिन्दुस्तान का होता है। एक अनुमान है कि करीब-करीब एक लाख करोड़ रुपए के फल-सब्जियां और अनाज हर साल इस वजह से बर्बाद हो जाते हैं। लेकिन पहले इसे लेकर भी बहुत ज्यादा उदासीनता थी। अब हमारी प्राथमिकता भंडारण के नए केंद्र, कोल्ड स्टोरेज का देश में विशाल नेटवर्क और उससे जुड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना ये भी हमारी प्राथमिकता है। मैं देश के व्यापारी जगत को, उद्योग जगत से भी आग्रह करूंगा कि भंडारण की आधुनिक व्यवस्थाएं बनाने में, कोल्ड स्टोरेज बनाने में, फूड प्रोसेसिंग के नए उपक्रम लगाने में हमारे देश के उद्योग और व्यापार जगत के लोगों ने भी आगे आना चाहिए। सारा काम किसानों के सर पर मढ़ देना ये कितना उचित है, हो सकता है आपकी कमाई थोड़ी कम होगी लेकिन देश के किसान का देश के गरीब का देश के गाँव का भला होगा।
भारत की कृषि, भारत का किसान, अब और पिछड़ेपन में नहीं रह सकता। दुनिया के बड़े-बड़े देशों के किसानों को जो आधुनिक सुविधा उपलब्ध है, वो सुविधा भारत के भी किसानों को मिले, इसमें अब और देर नहीं की जा सकती। समय हमारा इंतजार नहीं कर सकता। तेजी से बदलते हुए वैश्विक परिदृष्य में भारत का किसान, सुविधाओं के अभाव में, आधुनिक तौर तरीकों के अभाव में असहाय होता जाए, ये स्थिति स्वीकार नहीं की जा सकती। पहले ही बहुत देर हो चुकी है। जो काम 25-30 साल पहले हो जाने चाहिए थे, वो आज करने की नौबत आई हैं। पिछले 6 साल में हमारी सरकार ने किसानों की एक-एक जरूरत को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसी कड़ी में देश के किसानों की उन मांगों को भी पूरा किया गया है जिन पर बरसों से सिर्फ और सिर्फ मंथन चल रहा था। बीते कई दिनों से देश में किसानों के लिए जो नए कानून बने, आजकल उसकी चर्चा बहुत है। ये कृषि सुधार, ये कानून रातों-रात नहीं आए हैं। पिछले 20-22 साल से इस देश की हर सरकार ने राज्यों की सरकार ने इस पर व्यापक चर्चा की है। कम-अधिक सभी संगठनों ने इन पर विमर्श किया है।
देश के किसान, किसानों के संगठन, कृषि एक्सपर्ट, कृषि अर्थशास्त्री, कृषि वैज्ञानिक, हमारे यहां के प्रोग्रेसिव किसान भी लगातार कृषि क्षेत्र में सुधार की मांग करते आए हैं। सचमुच में तो देश के किसानों को उन लोगों से जवाब मांगना चाहिए जो पहले अपने घोषणा पत्र में इन सुधारों की सुधार करने की बात लिखते थे, वकालत करते थे और बड़ी बड़ी बाते करके किसानों के वोट बटोरते रहे, लेकिन अपने घोषणा पत्र में लिखे गए वादों को भी पूरा नहीं किया। सिर्फ इन मांगों को टालते रहे। क्योंकि किसानों की प्राथमिकता नहीं था। और देश का किसान, इंतजार ही करता रहा। अगर आज देश के सभी राजनीतिक दलों के पुराने घोषणापत्र देखे जाएं, तो उनके पुराने बयान सुने जाएं, पहले जो देश की कृषि व्यवस्था संभाल रहे थे ऐसे महानुभावों की चिट्ठियां देखीं जाएं, तो आज जो कृषि सुधार हुए हैं, वो उनसे अलग नहीं हैं। वो जिन चीजों का वादा करते थे, वही बातें इन कृषि सुधारों में की गई हैं। मुझे लगता है, उनको पीड़ा इस बात से नहीं है कि कृषि कानूनों में सुधार क्यों हुआ। उनको तकलीफ इस बात में है कि जो काम हम कहते थे लेकिन कर नही पाते थे वो मोदी ने कैसे किया, मोदी ने क्यों किया। मोदी को इसका क्रेडिट कैसे मिल जाए? मैं सभी राजनीतिक दलों को हाथ जोड़कर कहना चाहता हूं- आप सारा क्रेडिट अपने पास रख लीजिए, आपके सारे पुराने घोषणा पत्रों को ही में क्रेडिट देता हूं। मुझे क्रेडिट नहीं चाहिए।मुझे किसान के जीवन में आसानी चाहिए, समृद्धि चाहिए, किसानी में आधुनिकता चाहिए। आप कृपा करके देश के किसानों को बरगलाना छोड़ दीजिए, उन्हें भ्रमित करना छोड़ दीजिए।
ये कानून लागू हुए 6-7 महीने से ज्यादा समय हो चुका है। लेकिन अब अचानक भ्रम और झूठ का जाल बिछाकर, अपनी राजनीतिक जमीन जोतने के खेल खेले जा रहे हैं। किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर वार किए जा रहे हैं। आपने देखा होगा, सरकार बार-बार पूछ रही है, मीटिंग में भी पूछ रही है, पब्लिकली पूछ रही है हमारे कृषि मंत्री टीवी इन्टरव्यू में कह रहे हैं, मैं खुद बोल रहा हूं कि आपको कानून में किस क्लॉज में क्या दिक्कत है बताइए? जो भी दिक्कत है वो आप बताइए, तो इन राजनीतिक दलों के पास कोई ठोस जवाब नहीं होता, और यही इन दलों की सच्चाई है।
जिनकी खुद की राजनीतिक जमीन खिसक गई है, वो किसानों की जमीन चली जाएगी, किसानों की जमीन चली जाएगी का डर दिखाकर, अपनी राजनीतिक जमीन खोज रहे हैं। आज जो किसानों के नाम पर आंदोलन चलाने निकले हैं, जब उनको सरकार चलाने का या सरकार का हिस्सा बनने का मौका मिला था, उस समय इन लोगों ने क्या किया, ये देश को याद रखना जरूरी है। मैं आज देशवासियों के सामने, देश के किसानों के सामने, इन लोगों का कच्चा-चिट्ठा भी देश के लोगों के सामने, मेरे किसान भाईयों – बहनों के सामने आज मैं खुला करना चाहता हूं, मैं बताना चाहता हूं।
किसानों की बातें करने वाले लोग आज झूठे आसूं बहाने वाले लोग कितने निर्दयी हैं इसका बहुत बड़ा सबूत है। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट आई, लेकिन ये लोग स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को आठ साल तक दबाकर बैठे रहे। किसान आंदोलन करते थे, प्रदर्शन करते थे लेकिन इन लोगों के पेट का पानी नहीं हिला। इन लोगों ने ये सुनिश्चित किया कि इनकी सरकार को किसान पर ज्यादा खर्च न करना पड़े। इसलिए इस रिपोर्ट को दबा दो। इनके लिए किसान देश की शान नहीं, इन्होंने अपनी राजनीति बढ़ाने के लिए किसान का समय – समय पर इस्तेमाल किया है। जबकि किसानों के लिए संवेदनशील, किसानों के लिए समर्पित हमारी सरकार किसानों को अन्नदाता मानती है। हमने फाइलों के ढेर में फेंक दी गई स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट बाहर निकाला और उसकी सिफारिशें लागू कीं, किसानों को लागत का डेढ़ गुना MSP हमने दिया।
हमारे देश में किसानों के साथ धोखाधड़ी का एक बहुत ही बड़ा उदाहरण है कांग्रेस सरकारों के द्वारा की गई कर्जमाफी। जब दो साल पहले मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले थे तो कर्जमाफी का वायदा किया गया था। कहा गया था कि सरकार बनने के 10 दिन के भीतर सारे किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। कितने किसानों का कर्ज माफ हुआ, सरकार बनने के बाद क्या-क्या बहाने बताए गए, ये मध्य प्रदेश के किसान मुझसे ज्यादा भी अच्छी तरह जानते हैं। राजस्थान के लाखों किसान भी आज तक कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं। किसानों को इतना बड़ा धोखा देने वालों को जब मैं किसान हित की बात करते देखता हूं तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि कैसे लोग हैं, क्या राजनीति इस हद तक जाती है। क्या कोई इस हद तक छल-कपट कैसे कर सकता है? और वो भी भोले-भाले किसानों के नाम पर। किसानों को और कितना धोखा देंगे ये लोग?
हर चुनाव से पहले ये लोग कर्जमाफी की बात करते हैं। और कर्जमाफी कितनी होती है? सारे किसान इससे कवर होते हैं क्या? जो छोटा किसान कभी बैंक का दरवाजा नहीं देखा है। जिसने कभी कर्ज नहीं लिया, उसके बारे में क्या कभी एक बार भी सोचा है इन लोगों ने? और नया-पुराना हर अनुभव ये बताता है कि जितनी ये घोषणा करते हैं, उतनी कर्जमाफी कभी नहीं करते। जितने पैसे ये भेजने की बात करते रहे हैं, उतने पैसे किसानों तक कभी पहुंचते ही नहीं हैं। किसान सोचता था कि अब तो पूरा कर्ज माफ होगा। और बदले में उसे मिलता था। बैंकों का नोटिस और गिरफ्तारी का वॉरंट। और इस कर्जमाफी का सबसे बड़ा लाभ किसे मिलता था? इन लोगों के करीबियों को, नाते-रिश्तेदारों को। अगर मेरे मीडिया के मित्र अगर थोड़ा खंगालेंगे तो ये सब 8-10 साल पहले की रिपोर्ट में उन्हें पूरी तरह कच्चा चिटठा मिल जाएगा। ये यही उनका चरित्र रहा है।
किसानों की राजनीति का दम भरने वालों ने कभी इसके लिए आंदोलन नहीं किया, प्रदर्शन नहीं किया। कुछ बड़े किसानों का कर्ज 10 साल में एक बार माफ हो गया, इनकी राजनीतिक रोटी सिक गई, काम पूरा हो गया। फिर गरीब किसान को कौन पूछता है? वोटबैंक की राजनीति करने वाले इन लोगों को देश अब भलीभांति जान गया है, देख रहा है। देश हमारी नीयत में गंगाजल और मां नर्मदा के जल जैसी पवित्रता भी देख रहा है। इन लोगों ने 10 साल में एक बार कर्जमाफी करके लगभग 50 हजार करोड़ रुपए देने की बात कही है। हमारी सरकार ने जो पीएम-किसान सम्मान योजना शुरू की है, उसमें हर साल किसानों को लगभग 75 हजार करोड़ रुपए मिलेंगे। यानि 10 साल में लगभग साढ़े 7 लाख करोड़ रुपया। किसानों के बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर। कोई लीकेज नहीं, किसी को कोई कमीशन नहीं। कट-कल्चर का नामो-निशान नही।
अब मैं देश के किसानों को याद दिलाउंगा यूरिया की। याद करिए, 7-8 साल पहले यूरिया का क्या होता था, क्या हाल था? रात-रात भर किसानों को यूरिया के लिए कतारों में खड़े रहना पड़ता था क्या ये सच नहीं है? कई स्थानों पर, यूरिया के लिए किसानों पर लाठीचार्ज की खबरें आमतौर पर आती रहती थीं। यूरिया की जमकर के कालाबाजारी होती थी। होती थी क्या नहीं होती थी? किसान की फसल, खाद की किल्लत में बर्बाद हो जाती थी लेकिन इन लोगों का दिल नहीं पसीजता था। क्या ये किसानों पर जुल्म नहीं था, अत्याचार नहीं था? आज मैं ये देखकर हैरान हूं कि जिन लोगों की वजह से ये परिस्थितियां पैदा हुईं, वो आज राजनीति के नाम पर खेती करने निकल पड़े हैं।
क्या यूरिया की दिक्कत का पहले कोई समाधान नहीं था? अगर किसानों के दुख दर्द, उनकी तकलीफों के प्रति जरा भी संवेदना होती तो यूरिया की दिक्कत होती ही नहीं। हमने ऐसा क्या किया कि सारी परेशानी खत्म हो गई है? आज यूरिया की किल्लत की खबरें नहीं आतीं, यूरिया के लिए किसानों को लाठी नहीं खानी पड़तीं। हमने किसानों की इस तकलीफ को दूर करने के लिए पूरी ईमानदारी से काम किया। हमने कालाबाजारी रोकी, सख्त कदम उठाए, भ्रष्टाचार पर नकेल कसी। हमने सुनिश्चित किया कि यूरिया किसान के खेत में ही जाए। इन लोगों के समय में सब्सीडी तो किसान के नाम पर चढ़ाई जाती थी लेकिन उसका लाभ कोई ओर लेता था। हमने भ्रष्टाचार की इस जुगलबंदी को भी बंद कर दिया। हमने यूरिया की सौ प्रतिशत नीम कोटिंग की। देश के बड़े-बड़े खाद कारखाने जो तकनीक पुरानी होने के नाम पर बंद कर दिए गए थे, उन्हें हम फिर से शुरू करवा रहे हैं। अगले कुछ साल में यूपी के गोरखपुर में, बिहार के बरौनी में, झारखंड के सिंदरी में, ओडिशा के तालचेर में, तेलंगाना के रामागुंदम में आधुनिक फर्टिलाइजर प्लांट्स शुरू हो जाएंगे। 50-60 हजार करोड़ रुपए सिर्फ इस काम में खर्च किए जा रहे हैं। ये आधुनिक फर्टिलाइजर प्लांट्स, रोजगार के लाखों नए अवसर पैदा करेंगे, भारत को यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेंगे। दूसरे देशों से यूरिया मंगवाने पर भारत के जो हजारों करोड़ रुपए खर्च होते हैं, उन्हें कम करेंगे।
इन खाद कारखानों को शुरू करने से इन लोगों को पहले कभी किसी ने नहीं रोका था। किसी ने मना नहीं किया था कि नई टेक्नोलॉजी मत लगाओ। लेकिन ये नीयत नहीं थी, नीति नहीं थी, किसानों के प्रति निष्ठा नहीं थी। किसान से झूठे वायदे करने वाले सत्ता में आते रहो, झूठे वादे करते रहो, मलाई खाते रहो, यही इन लोगों का काम रहा है।
अगर पुरानी सरकारों को चिंता होती तो देश में 100 के करीब बड़े सिंचाई प्रोजेक्ट दशकों तक नहीं लटकते। बांध बनना शुरू हुआ तो पच्चीसों साल तक बन ही रहा है। बांध बन गया तो नहरें नहीं बनीं। नहरें बन गईं तो नहरों को आपस में जोड़ा नहीं गया। और इसमें भी समय और पैसे, दोनों की जमकर के बर्बादी की गई। अब हमारी सरकार हजारों करोड़ रुपए खर्च करके इन सिंचाई परियोजनाओं को मिशन मोड में पूरा करने में जुटी है। ताकि किसान के हर खेत तक पानी पहुंचाने की हमारी इच्छा पूरी हो जाये।
किसानों की इनपुट कॉस्ट कम हो, लागत कम हो, खेती पर होने वाली लागत कम हो इसके लिए भी सरकार ने निरंतर प्रयास किए हैं। किसानों को सोलर पंप बहुत ही कम कीमत पर देने के लिए देश भर में बहुत बड़ा अभियान चलाया जा रहा है।हम अपने अन्नदाता को ऊर्जादाता भी बनाने के लिए काम कर रहे हैं।इसके अलावा हमारी सरकार अनाज पैदा करने वाले किसानों के साथ ही मधुमक्खी पालन, पशुपालन और मछली पालन को भी उतना ही बढ़ावा दे रही है। पहले की सरकार के समय देश में शहद का उत्पादन करीब 76 हजार मिट्रिक टन होता था। अब देश में 1 लाख 20 हजार मिट्रिक टन से भी ज्यादा शहद का उत्पादन हो रहा है। देश का किसान जितना शहद पहले की सरकार के समय निर्यात करता था, आज उससे दोगुना शहद निर्यात कर रहा है।
एक्सपर्ट कहते हैं कि एग्रीकल्चर में मछलीपालन वो सेक्टर है जिसमें कम लागत में सबसे ज्यादा मुनाफा होता है। मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकार ब्लू रिवॉल्यूशन स्कीम चला रही है। कुछ समय पहले ही 20 हजार करोड़ रुपए की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना भी शुरू की गई है। इन्हीं प्रयासों का ही नतीजा है कि देश में मछली उत्पादन के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट चूके हैं। अब देश, अगले तीन-चार साल में मछली निर्यात को एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है।
हमारी सरकार ने जो कदम उठाए, हमारी राज्य सरकारों ने जो कदम उठाए, और आज देख रहें हैं मध्यप्रदेश में किस प्रकार से किसानों की भलाई के लिए काम हो रहे हैं। वो पूरी तरह किसानों को समर्पित हैं। अगर मैं वो सारे कदम गिनाने जाऊं तो शायद समय कम पड़ जाएगा। लेकिन मैंने कुछ उदाहरण इसलिए दिए ताकि आप हमारी सरकार की नीयत को परख सकें, हमारे ट्रैक रिकॉर्ड को देख सकें, हमारे नेक इरादों को समझ सकें। और इसी आधार पर मैं विश्वास से कहता हूं कि हमने हाल में जो कृषि सुधार किए हैं, उसमें अविश्वास का कारण ही नहीं है, झूठ के लिए कोई जगह ही नहीं है। मैं अब आपसे कृषि सुधारों के बाद बोले जा रहे सबसे बड़े झूठ के बारे में बात करूंगा। बार-बार उस झूठ को दोहराया जा रहा है जोर – जोर से बोला जा रहा है। जहां मौका मिले वहां बोला जा रहा है। बिना सर-पैर बोला जा रहा है। जैसा मैंने पहले कहा था, स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने का काम हमारी ही सरकार ने किया। अगर हमें एमएसपी हटानी ही होती तो स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू ही क्यों करते? आपने भी नहीं की थी, हम भी नहीं करते। हमने तो ऐसा नहीं किया हमने तो लागू किया। दूसरा ये कि हमारी सरकार एमएसपी को लेकर इतनी गंभीर है कि हर बार, बुवाई से पहले MSP की घोषणा करती है। इससे किसान को भी आसानी होती है, उन्हें भी पहले पता चल जाता है कि इस फसल पर इतनी एमएसपी मिलने वाली है। वो कुछ बदलाव करना चाहता है तो उसे सुविधा होती है।
6 महीने से ज्यादा का समय हो गया, जब ये कानून लागू किए गए थे। कानून बनने के बाद भी वैसे ही एमएसपी की घोषणा की गई, जैसे पहले की जाती थी। कोरोना महामारी से लड़ाई के दौरान भी ये काम पहले की तरह किया गया। एमएसपी पर खरीद भी उन्हीं मंडियों में हुई, जिन में कानून बनने से पहले होती थी कानून बनने के बाद भी वहीं हुई। अगर कानून लागू होने के बाद भी एमएसपी की घोषणा हुई, एमएसपी पर सरकारी खरीदी हुई, उन्हीं मंडियों में हुई, तो क्या कोई समझदार इस बात को स्वीकार करेगा कि एमएसपी बंद हो जाएगी? और इसलिए मै कहता हूं, इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता। इससे बड़ा कोई षड़यंत्र नहीं हो सकता। और इसलिए, मैं देश के प्रत्येक किसान को ये विश्वास दिलाता हूं कि पहले जैसे एमएसपी दी जाती थी, वैसे ही दी जाती रहेगी, एमएसपी न बंद होगी, न समाप्त होगी।
अब मैं आपको जो आंकड़े दे रहा हूं, वो दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। पिछली सरकार के समय गेहूं पर एमएसपी थी 1400 रुपए प्रति क्विंटल। हमारी सरकार प्रति क्विंटल गेहूं पर 1975 रुपए एमएसपी दे रही है। पिछली सरकार के समय धान पर एमएसपी थी 1310 रुपए प्रति क्विंटल। हमारी सरकार प्रति क्विंटल धान पर करीब 1870 रुपए एमएसपी दे रही है। पिछली सरकार में ज्वार पर एमएसपी थी 1520 रुपए प्रति क्विंटल। हमारी सरकार ज्वार पर प्रति क्विंटल 2640 रुपए एमएसपी दे रही है। पिछली सरकार के समय मसूर की दाल पर एमएसपी थी 2950 रुपए। हमारी सरकार प्रति क्विंटल मसूर दाल पर 5100 रुपए एमएसपी दे रही है। पिछली सरकार के समय चने पर एमएसपी थी 3100 रुपए। हमारी सरकार अब चने पर प्रति क्विंटल 5100 रुपए एमएसपी दे रही है। पिछली सरकार के समय तूर दाल पर एमएसपी थी 4300 रुपए प्रति क्विंटल। हमारी सरकार तूर दाल पर प्रति क्विंटल 6000 रुपए एमएसपी दे रही है। पिछली सरकार के समय मूंग दाल पर एमएसपी थी 4500 रुपए प्रति क्विंटल।हमारी सरकार मूंग दाल पर करीब 7200 रुपए एमएसपी दे रही है।
ये इस बात का सबूत है कि हमारी सरकार एमएसपी समय-समय पर बढ़ाने को कितनी तवज्जो देती है, कितनी गंभीरता दे देती है। एमएसपी बढ़ाने के साथ ही सरकार का जोर इस बात पर भी रहा है कि ज्यादा से ज्यादा अनाज की खरीदारी एमएसपी पर की जाए। पिछली सरकार ने अपने पांच साल में किसानों से लगभग 1700 लाख मिट्रिक टन धान खरीदा था। हमारी सरकार ने अपने पांच साल में 3000 लाख मिट्रिक टन धान किसानों से एमएसपी पर खरीदा, करीब-करीब डबल। पिछली सरकार ने अपने पांच साल में करीब पौने चार लाख मिट्रिक टन तिलहन खरीदा था। हमारी सरकार ने अपने पांच साल में 56 लाख मिट्रिक टन से ज्यादा एमएसपी पर खरीदा है। अब सोचिए, कहां पौने चार लाख और कहां 56 लाख !!! यानि हमारी सरकार ने न सिर्फ एमएसपी में वृद्धि की, बल्कि ज्यादा मात्रा में किसानों से उनकी अपज को MSP पर खरीदा है। इसका सबसे बड़ा लाभ ये हुआ है कि किसानों के खाते में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा पैसा पहुंचा है। पिछली सरकार के पांच साल में किसानों को धान और गेहूं की MSP पर खरीदने के बदले 3 लाख 74 हजार करोड़ रुपए ही मिले थे। हमारी सरकार ने इतने ही साल में गेहूं और धान की खरीद करके किसानों को 8 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा दिए हैं।
राजनीति के लिए किसानों का उपयोग करने वाले लोगों ने किसान के साथ क्या बर्ताव किया, इसका एक और उदाहरण है, दलहन की खेती। 2014 के समय को याद कीजिए, किस प्रकार देश में दालों का संकट था। देश में मचे हाहाकार के बीच दाल विदेशों से मंगाई जाती थी। हर रसोई का खर्च दाल की बढ़ती कीमतों के साथ बढ़ रहा था। जिस देश में दुनिया में सबसे ज्यादा दाल की खपत है, उस देश में दाल पैदा करने वाले किसानों को तबाह करने में इन लोगों ने कोई कोस कसर नहीं रखी थी। किसान परेशान था और वो मौज वो ले रहे थे, जो दूसरे देशों से दाल मंगवाने के काम में ही उनको मजा आता था। ये बात मैं मानता हूं, कभी कभार प्राकृतिक आपदा आ जाए, अचानक कोई संकट आ जाए, तो विदेश से दाल मंगवाई जा सकती है देश के नागरिकों को भूखा नहीं रखा जा सकता लेकिन हमेशा ऐसा क्यों हो?
ये लोग दाल पर ज्यादा एमएसपी भी नहीं देते थे और उसकी खरीद भी नहीं करते थे। हालत ये थी कि 2014 से पहले के 5 साल उनके 5 साल उन्होंने सिर्फ डेढ़ लाख मीट्रिक टन दाल ही किसानों से खरीदी। इस आंकड़े को याद रखिएगा। सिर्फ डेढ़ लाख मिट्रिक टन दाल। जब साल 2014 में हमारी सरकार आई तो हमने नीति भी बदली और बड़े निर्णय भी लिए। हमने किसानों को भी दाल की पैदावार के लिए प्रोत्साहित किया।
हमारी सरकार ने किसानों से पहले की तुलना में 112 लाख मीट्रिक टन दाल एमएसपी पर खरीदी। सोचिए, डेढ़ लाख उनके जमाने में वहां से हम सीधे ले गए 112 लाख मीट्रिक टन !उन लोगों ने अपने 5 सालों में दाल किसानों को, दाल पैदा करने वाले किसानों को कितना रूपया दिया? साढ़े 6 सौ करोड़ रुपए दिए, हमारी सरकार ने क्या किया, हमने करीब-करीब 50 हज़ार करोड़ रुपए दाल पैदा करने वाले किसानों को दिया। आज दाल के किसान को भी ज्यादा पैसा मिल रहा है, दाल की कीमतें भी कम हुई हैं, जिससे गरीब को सीधा फायदा हुआ है। जो लोग किसानों को न एमएसपी दे सके, नएमएसपी पर ढंग से खरीद सके, वो एमएसपी पर किसानों को गुमराह कर रहे हैं।
कृषि सुधारों से जुड़ा एक और झूठ फैलाया जा रहा है APMC यानि हमारी मंडियों को लेकर। हमने कानून में क्या किया है? हमने कानून में किसानों को आजादी दी है, नया विकल्प दिया है। अगर देश में किसी को साबुन बेचना हो तो सरकार ये तय नहीं करती कि सिर्फ इसी दुकान पर बेच सकते हो। अगर किसी को स्कूटर बेचना हो तो सरकार ये तय नहीं करती कि सिर्फ इसी डीलर को बेच सकते हो। लेकिन पिछले 70 साल से सरकार किसान को ये जरूर बताती रही है कि आप सिर्फ इसी मंडी में अपना अनाज बेच सकते हो। मंडी के अलावा किसान चाहकर भी अपनी फसल कहीं और नहीं बेच सकता था। नए कानून में हमने सिर्फ इतना कहा है कि किसान, अगर उसको फायदा नजर आता है तो पहले की तरह जाके मंडी में बेचें और बाहर उसको फायदा होता है, तो मंडी के बाहर जाने का उसको हक मिलना चाहिए। उसकी मर्जी को, क्या लोकतंत्र मेरे किसान भाई को इतना हक नहीं हो सकता है।
अब जहां किसान को लाभ मिलेगा, वहां वो अपनी उपज बेचेगा। मंडी भी चालू है मंडी मे जाकर के बेच सकता है, जो पहले था वो भी कर सकता है। किसान की मर्जी पर करेगा। बल्कि नए कानून के बाद तो किसान ने अपना लाभ देखकर अपनी उपज को बेचना शुरू भी कर दिया है। हाल ही में एक जगह पर धान पैदा करने वाले किसानों ने मिलकर एक चावल कंपनी के साथ समझौता किया है। इससे उनकी आमदनी 20 प्रतिशत बढ़ी है। एक और जगह पर आलू के एक हजार किसानों ने मिलकर एक कंपनी से समझौता किया है। इस कंपनी ने उन्हें लागत से 35 प्रतिशत ज्यादा की गारंटी दी है। एक और जगह की खबर में पढ़ रहा था जहां एक किसान ने खेत में लगी मिर्च और केला, सीधे बाजार में बेचा तो उसे पहले से दोगुनी कीमत मिली। आप मुझे बताइए, देश के प्रत्येक किसान को ये लाभ, ये हक मिलना चाहिए या नहीं मिलना चाहिए? किसानों को सिर्फ मंडियों से बांधकर बीते दशकों में जो पाप किया गया है, ये कृषि सुधार कानून उसका प्रायश्चित कर रहे हैं। और मैं फिर दोहराता हूं। नए कानून के बाद, छह महीने हो गये कानून लागू हो गया, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में कहीं पर भी एक भी मंडी बंद नहीं हुई है। फिर क्यों ये झूठ फैलाया जा रहा है? सच्चाई तो ये है कि हमारी सरकार एपीएमसी को आधुनिक बनाने पर, उनके कंप्यूटरीकरण पर 500 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर रही है। फिर ये एपीएमसी बंद किए जाने की बात कहां से आ गई? बिना सर-पैर बस झूठ फैलाओं, बार बार बोलो।
नए कृषि सुधारों को लेकर तीसरा बहुत बड़ा झूठ चल रहा है फार्मिंग एग्रीमेंट को लेकर। देश में फार्मिंग एग्रीमेंट कोई नई चीज नहीं है? क्या कोई नया कानून बनाकर हम अचानक फार्मिंग एग्रीमेंट को लागू कर रहे हैं? जी नहीं। हमारे देश में बरसों से फार्मिंग एग्रीमेंट की व्यवस्था चल रही है। एक दो नहीं बल्कि अनेक राज्यों में पहले से फार्मिंग एग्रीमेंट होते रहे हैं। अभी किसी ने मुझे एक अखबार की रिपोर्ट भेजी 8 मार्च 2019 की। इसमें पंजाब की कांग्रेस सरकार, किसानों और एक मल्टीनेशनल कंपनी के बीच 800 करोड़ रुपए के फार्मिंग एग्रीमेंट का जश्न मना रही है, इसका स्वागत कर रही है। पंजाब के मेरे किसान भाई-बहनों की खेती में ज्यादा से ज्यादा निवेश हो, ये हमारी सरकार के लिए भी खुशी की ही बात है।
देश में फार्मिंग एग्रीमेंट से जुड़े पहले जो भी तौर-तरीके चल रहे थे, उसमें किसानों को बहुत जोखिम था, बहुत रिस्क था। नए कानून में हमारी सरकार ने फार्मिंग एग्रीमेंट के दौरान किसान को सुरक्षा देने के लिए कानूनी प्रावधान किए। हमने तय किया है कि फार्मिंग एग्रीमेंट में सबसे बड़ा हित अगर देखा जाएगा तो वो किसान का देखा जाएगा। हमने कानूनन तय किया है कि किसान से एग्रीमेंट करने वाला अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं पाएगा। जो किसान को उसने वादा किया होगा, वो स्पॉन्सर करने वाले को, वो भागीदार को उसे पूरा करना ही होगा। अगर नए किसान कानून लागू होने के बाद कितने ही उदाहरण सामने आ रहे हैं जहां किसानों ने अपने इलाके के एसडीएम से शिकायत की और शिकायत के कुछ ही दिन के भीतर, किसानों को अपना बकाया मिल गया।
फार्मिंग एग्रीमेंट में सिर्फ फसलों या उपज का समझौता होता है। जमीन किसान के ही पास रहती है, एग्रीमेंट और जमीन का कोई लेना-देना ही नहीं है। प्राकृतिक आपदा आ जाए, तो भी एग्रीमेंट के अनूसार किसान को पूरे पैसे मिलते हैं। नए कानूनों के अनुसार, अगर अचानक, यानि जो एग्रीमेंट तय हुआ है लेकिन जो भागीदार है, जो पूंजी लगा रहा है और अचानक मुनाफा बढ़ गया तो इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि जो बढ़ा हुआ मुनाफा है किसान को उसमें से भी कुछ हिस्सा देना पड़ेगा।
एग्रीमेंट करना है या नहीं करना है, ये कोई कंपल्सरी नहीं है। ये किसान की मर्जी है। किसान चाहेगा तो करेगा, नहीं चाहेगा तो नहीं करेगा लेकिन कोई किसान के साथ बेईमानी न कर दे, किसान के भोलेपन का फायदा उठा ना ले इसके लिए कानून की व्यवस्था की गई है। नए कानून में जो सख्ती दिखाई गई है, वो स्पॉन्सर करने वाले के लिए है किसान के लिए नहीं है। स्पॉन्सर करने वाले को एग्रीमेंट खत्म करने का अधिकार नहीं है। अगर वो एग्रीमेंट खत्म करेगा तो उसे भारी जुर्माना किसान को देना होगा। लेकिन वही एग्रीमेंट, किसान समाप्त करना चाहे, तो किसी भी समय बिना जुर्माने के वो किसान अपना फैसला ले सकता है। राज्य सरकारों को मेरा सुझाव है कि आसान भाषा में, आसान तरीके से समझ में आने वाले फार्मिंग एग्रीमेंट उसका एक खाका बनाकर के किसानों को देके रखना चाहिए ताकि कोई किसान से चीटिंग ना कर सके।
मुझे खुशी है कि देश भर में किसानों ने नए कृषि सुधारों को न सिर्फ गले लगाया है बल्कि भ्रम फैलाने वालों को भी सिरे से नकार रहे हैं। जिन किसानों में अभी थोड़ी सी भी आशंका बची है उनसे मैं फिर कहूंगा कि आप एक बार फिर सोचिए। जो हुआ ही नहीं, जो होने वाला ही नहीं है, उसका भ्रम और डर फैलाने वाली जमात से आप सतर्क रहिए, ऐसे लोगों को मेरे किसान भाईयो – बहनों पहचानिए। इन लोगों ने हमेशा किसानों से धोखा दिया है, उनकों धोखा दिया है। उनका इस्तेमाल किया है और आज भी यही कर रहे हैं। मेरी इस बातों के बाद भी, सरकार के इन प्रयासों के बाद भी, अगर किसी को कोई आशंका है तो हम सिर झुकाकर, किसान भाईयों के सामने हाथ जोड़कर, बहुत ही विनम्रता के साथ, देश के किसान के हित में, उनकी चिंता का निराकरण करने के लिए, हर मुददे पर बात करने के लिए तैयार हैं। देश का किसान, देश के किसानों का हित, हमारे लिए सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।
आज मैंने कई बातों पर विस्तार से बात की है। कई विषयों पर सच्चाई देश के सामने रखी है। अभी 25 दिसंबर को, श्रद्धेय अटल जी की जन्मजयंती पर एक बार फिर मैं इस विषय पर देशभर के किसानों के साथ विस्तार से बात करने वाला हूं। उस दिन पीएम किसान सम्मान निधि की एक और किस्त करोड़ों किसानों के बैंक खातों में एक साथ ट्रांसफर की जाएगी। भारत का किसान बदलते समय के साथ चलने के लिए, आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए मेरे देश का किसान चल पड़ा है।
नए संकल्पों के साथ, नए रास्तों पर हम चलेंगे और यह देश सफल होगा इस देश का किसान भी सफल होगा। इसी विश्वास के साथ मैं फिर एक बार मध्यप्रदेश सरकार का अभिनन्दन करते हुए, आज मध्यप्रदेश के लाखों- लाखों किसानों के साथ मुझे अपनी बाते बताने का मौका मिला इसके लिए सबका आभार व्यक्त करते हुए मैं फिर एक बार आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।
*प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज मध्य प्रदेश किसान सम्मलेन में दिए गए भाषण का अंश