रविवार पर विशेष
-रमेश चंद शर्मा*
तब भटकने में बुरा नहीं लगता था
गाँधी के मानने वालों के साथ सम्पर्क के कारण परमाणु हथियारों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले, इसके खिलाफ चले अभियान से अपना जुड़ाव सहज ही हो गया। जैसी संगत बैठिए तैसों ही फल दीन या खरबूजे को देखकर खरबूजे का रंग बदल जाता है। संगत का प्रभाव जरुर पड़ता है। समझ या नासमझी, जाने या अनजाने भी असर तो होता ही है।
बहुत ही कम कमल की तरह कीचड़ में रहते हुए भी उससे ऊपर उठकर रहना कठिन तो अवश्य है। गाँधी स्मारक निधि और गाँधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव जी. रामचन्द्रन, जिन्हें मामाजी के नाम से भी जानते डॉ. आर आर दिवाकर अध्यक्ष से सम्पर्क के कारण इस अभियान से जुड़ा। आयु जरुर आड़े आती थी, मगर उन वरिष्ठ जनों के व्यवहार, स्वभाव, दूर दृष्टि के कारण वानर सेना के रूप में वे जोड़ लेते थे। इतना ही नहीं बल्कि उत्साहवर्धन करते थे। अपनी बात कहते और सहजता से पूछते कि संभव हो तो जरुर शामिल हो। उस समय के नेताओं में ज्यादातर में यह विशेषता नजर आती थी। जोड़ने की कला में वे माहिर थे। कोई बच्चा किसी कार्यक्रम में शामिल होता तो उन्हें अच्छा लगता, प्रोत्साहन देते।
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उस समय अपनी क्षमता साथ चलने, नारा लगाने, कोई कविता, गीत सुनाने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं थी। अपने पास समय खूब रहता, उसे कहां, कैसे बिताना इसके लिए अपनी पसंद की जगह, कार्यक्रम, स्थान की तलाश रहती। गाँव से आया था, चलने, घूमने फिरने की ताकत, हिम्मत खूब थी। थकान नाम की चीज अपने हिस्से में नहीं के बराबर थी। झूठी शान का ढोंग आसपास ही नहीं था। अकेले आने जाने में डर नहीं लगता था। अकेले कहीं भी पहुँच जाने से कतराता नहीं था। लम्बी दूरी तय करने में आनंद का अनुभव मिलता।
जगह की जानकारी मिलने पर समय से पहले पहुँचने का संकल्प बहुत काम आया। कह सकते है की भटकने में बुरा नहीं लगता था। इन सब बातों के कारण कार्यक्रमों में अपनी छोटी आयु से शामिल होने लगा। समय की पाबंदी तथा किसी से कोई अपेक्षा नहीं होने के कारण सबका स्नेह भी मिलता। उनके साथ छोटे बड़े कई कार्यक्रमों में भागीदारी या उपस्थित रहने का सौभाग्य मिला। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ की बचपन में ही दिल्ली ही नहीं दिल्ली के बाहर के भी वरिष्ठजनों, प्रमुख बड़े लोगों के दर्शन, मिलने, जानने का मौका मिलता । देश विदेश के लोग सहज ही मिल जाते। अपन को अच्छा लगता और समय मन पसंदगी में बीतता।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।