– रमेश चंद शर्मा*
शंकाएं बढती जा रही थी
पंजाब एक निराला प्रदेश, पांच आब, पानी की शान रखने वाला पांच पांच नदियों का क्षेत्र, गुरुओं की पावन धरती, वीरों का क्षेत्र, खुले दिलो-दिमाग के लोगों वाला शानदार इलाका। कितने ही संकटों का डटकर सामना करने वाला मजबूत पंजाब। अध्ययन शिक्षण में अग्रणी लाहौर के शिक्षण संस्थान। जिसने लाहौर नहीं देखा वह जन्मा ही नहीं को जीने वाला पंजाब। इसका अनेक बार विभाजन हुआ। बंटवारे की भेंट चढ़ा पाकिस्तान बनने पर, हरियाणा अलग हुआ, हिमाचल बना। इसमें सत्ता, राजनीति, अहम्, स्वार्थ, भाषा भेद, मजहब, अलगाव, क्षेत्रवाद जैसे अनेक संकुचित विचारों की भूमिका रही। इसके लिए अनेक आंदोलन भी चले। तरह-तरह की आवाज उठी। पंजाब को अनेक झटके सहने पड़े। बाहर और भीतर दोनों तरफ से।
पंजाब अशांत था, हिंसा की घटनाएं व्यापक स्तर पर हो रही थी। दहशत, भय, डर पूरे समाज में छाया हुआ था। ब्लू स्टार ने एक अलग ही माहौल खड़ा कर दिया था। गांधी शांति प्रतिष्ठान की ओर से अपन पंजाब में शांति, सद्भाव, सौह्रार्द, एकता, भाई चारे के लिए नौजवानों के दल ले जाने के काम में सक्रियता से लगे हुए थे। पंजाब से लोगों को देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाकर लोगों से बातचीत करवाना जारी था। देश के विभिन्न प्रदेशों के विशेषकर नौजवानों को शांति कार्य के लिए पंजाब ले जाना। अक्तूबर, 1984 के महीने में भी नौजवान साथियों को लेकर पंजाब के अलग अलग हिस्से में भेजा था। अपन खुद ने अपने को पाकिस्तान सीमा के समीप फतेहगढ़ चूडियाँ में रखा था।
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इस टीम में राजेन्द्र सिंह राणा, आज जो जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्ससे पुरस्कार प्राप्त करता है, को श्री प्यारेलाल शर्मा के पास सुनाम में भेजा था। इसी प्रकार अन्य प्रदेशों के साथियों को भी अलग अलग स्थानों पर भेजकर, अपन फतेहगढ़ चूडियाँ पहुंचे तथा सब साथियों को एक सप्ताह बाद एक स्थान पर आकर मिलने का तय किया। सभी साथी अपने अपने निश्चित किये गए क्षेत्र में पहुंचकर सक्रिय हो गए। 31 अक्तूबर, 1984 अपन को स्थानीय साथियों ने सूचना दी कि पाकिस्तान रेडियो से समाचार आ रहा है की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हो गई है। कैसे विश्वास करते, समाचार पर विश्वास नहीं हो रहा था। कहीं यह पाकिस्तान की कोई शरारत तो नहीं है।
समाचार कितना सच है, इसका प्रमाण नहीं मिल रहा था। सच जानने को उतावलेपन में अलग-अलग प्रयास किए जा रहे थे। साथियों से पंजाब के विभिन्न हिस्सों में भी संपर्क नहीं हो पा रहा था। शंकाएं बढती जा रही थी। दिल्ली से भी संपर्क, संवाद नहीं सध पा रहा था। इस स्थिति में साथियों से कैसे संपर्क, संवाद साधा जाए, यह बड़ी समस्या सामने थी। उस समय अपने पास क्या, अच्छे अच्छे के पास ना मोबाइल, ना नेट होता था। समाचार सही पाया गया। प्रधान मंत्री निवास पर उन्हीं के सुरक्षा कर्मी ने गोली चलाकर हत्या की थी। पंजाब से सम्पर्क, संवाद कट चुका था। अपनी अपनी जगह बिना किसी के संपर्क के एक दूसरे के लिए चिंता बनी हुई थी। अफवाहें भी जोरों पर थी। कोई कुछ तो कोई कुछ कहता। अफवाहों से तनाव भी फ़ैल रहा था। ऐसे में आना जाना भी आसन नहीं था। जैसे भी, जो भी संभव लगता उसी माध्यम से साथियों से संपर्क बनाने का प्रयास जारी था। जो कुछ संभव हो रहा था, उस अनुसार संपर्क एवं यात्रा की जा रही थी। साथी भी अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे थे। सप्ताह से ज्यादा लगा हम सभी को एक साथ मिलने पर। अफवाहें अभी भी जारी थी। हम पंजाब से बाहर आए तो जो कुछ सुना उससे शर्म, ग्लानी, लज्जा से सिर झुक गया। अपने ही लोगों के हाथों से अपने सिख भाईयों के साथ जो कुछ हुआ उसको सुनकर रोंगटे खड़े हो जा रहे थे। कत्ल, आगजनी, जिंदा जलाना, लूटना, अत्याचार की हद पार हो गई थी। दिल्ली पहुंचे तो हमें बताया की हम लोगों को लेकर यहाँ भी तरह तरह की कल्पनाएं की जा रही थी, वे जिंदा है, या मर गए है। हमारा क्या हुआ होगा। हमारे साथ क्या व्यवहार हुआ होगा। हम सुरक्षित है या किसी संकट में फंसे हुए है।
हम पंजाब में पूरी तरह सुरक्षित थे। गुरुओं की भूमि के शिष्यों, लालों ने हमारा पूरा पूरा ख्याल रखा। कभी कोई साथी घबराया भी तो जवाब मिलता चिंता ना करो जी गुरु कृपा से सब ठीक होगा। तुसी साढ़े नाल रहो, असी तुहाडा ख्याल रखन वाले है ना। मगर इधर आकर जो सुना वह भयंकर, शर्मनाक, दुखदाई, कष्टकारी रहा। निर्मल भाई ने बताया की जब सप्ताह तक समाचार नहीं मिला तो उन्होंने भारी मन से हमारे लिए शांति प्रार्थना सभा का आयोजन भी कर दिया था। इसे सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। जिन्दे जी अपनी प्रार्थना सभा का समाचार सुनकर जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास तो हुआ, उस समय मजा भी आया। मगर सात दशक पूरे होने पर जिन्दगी अभी भी जारी है, सक्रिय है। जिसको राखे साइयां, मार सकें ना कोय की बात याद आई।
दिल्ली पहुँचते ही हम लोग राहत, शांति, सद्भाव, आंसू पोंछने के काम में लग गए। जो राहत शिविर चल रहे थे, जिन बस्तियों में अमानवीय घटनाएं घटी उन दरो द्वार, घर बार, गली मोहल्लों में जाकर यथा शक्ति कदम उठाने लगे। घाव बहुत गहरे थे, मन पर कुठाराघात हुआ था, दिल पर चोट लगी थी। बहादुर, मजबूत, मेहनती, स्वाभिमानी, अपने दम पर खड़े होने वाले, सेवाभावी, साँझ में विश्वास रखने वाले, बांटकर खाओ बन्दे, कार सेवा को महत्व देने वाले, खुले दिलों के गुरु के सिखों के साथ यह क्या हुआ, क्यों हुआ? कभी माना जाता था कि मोहल्ले में एक सरदारजी है तो चद्दर तानकर सो जाओ, एक शेर ही बहुत है। किसी भी संकट का सामना करने को। अब यह क्या हो गया? सभी साथी राहत, सद्भाव, अपनेपन, शांति, मलहम लगाने, पुनर्वास के काम में तन, मन से जुट गए। यह बड़ा भारी विश्वासघात हुआ। धीरे-धीरे स्वाभिमानी सिख भाई बहन मेहनत कर खड़े हुए। अन्य साथियों ने भी एकजुट होकर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग, सहकार, सद्भावना, एकता, सौह्रार्द, साझापन, समझदारी, स्नेह के कदम उठाए। मन को संतोष मिला कि किसी भी प्रकार के बड़े से बड़े दुःख में भाई के साथ खड़े होने की हिम्मत करने वालों का भी अभाव नहीं हुआ है। अपनी जान पर खेलकर भी बचाने का काम भी हुआ। ऐसे प्रसंग, प्रयासों को सुनकर राहत का अहसास हुआ। मानवीय गुणों, स्नेह, करुणा, सरोकारों का सतत विकास होते रहना चाहिए। यह बहुत जरूरी है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
आभार धन्यवाद शुक्रिया।
रमेश चंद शर्मा