– रमेश चंद शर्मा*
अकाल बनाम युवा
अकाल बनाम युवा /तरुण, ‘यूथ अगेंस्ट फेमिन‘, कार्यक्रम भारत सरकार के शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा देश भर में आयोजित करने की योजना अनेक स्वैच्छिक, सामाजिक, शैक्षणिक संगठनों, संस्थाओं, समूहों के साथ मिलकर बनाई गई। इसमें विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, गाँधी शांति प्रतिष्ठान, गाँधी स्मारक निधि, सर्व सेवा संघ, शांति सेना, आचार्यकुल आदि गाँधी संस्थाओं के संयुक्त तत्वाधान में आयोजन की योजना बनी। भारत स्काउट एंड गाईड, राष्ट्रीय सेवा योजना, वाईएमसीए, वाईडब्ल्यूसीए संगठन/ संस्थाएं भी शामिल रही। सम्पर्क, संवाद के लिए गाँधी शांति प्रतिष्ठान एक मुख्य केंद्र बना। सभी केंद्र अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय होकर काम में जुट गए।
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देश सूखे, अकाल का सामना कर रहा था। युवा पीढ़ी समाज से जुड़े, समाज की समस्याओं को जाने, समझे, समाधान में अपने ज्ञान का लाभ दे। ग्रामीण जीवन का सीधे तौर पर अनुभव करे। उनके सुख, दुःख में शामिल हो। श्रम संस्कार में भाग लेकर रचना, निर्माण के काम में अपना योगदान करे। कार्यक्रम में गाँधी विचार को एक मुख्य अंग के रूप में रखा गया था। छात्र, शिक्षक, युवा, इस योजना से बड़ी संख्या में शामिल हो, इसका प्रयास किया गया। इस योजना का पूरा खर्च भारत सरकार ने वहन किया, उठाया। जगह जगह स्थान चयन, तय करके शिविरों का आयोजन शुरू हुआ। स्थानीय आवश्यकतानुसार श्रम के कार्य चुने गए। प्रादेशिक, क्षेत्रीय, जिला से लेकर स्थानीय स्तर तक जिम्मेदारी दी गई। संयोजक, समन्वयक बनाए गए।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने तिलपत गाँव में शिविर लगाने का निश्चय किया। राजघाट अहिंसा विद्यालय ने इसके संचालन, आयोजन में पूरा सहयोग किया। हंसराज महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. जयकिशन शर्मा नेतृत्व दल के प्रमुख साथी रहे। यह शिविर एक माह तक चला। काम पूरा करने के लिए कभी कभी सुबह से शाम तक, तो कभी देर रात तक भी श्रम कार्य चला। गाँव का सहयोग एवं शिविरार्थियों के उत्साह के कारण यह संभव हुआ। प्रभात फेरी, सर्व धर्म प्रार्थना, श्रम, चर्चा, गोष्ठी, मनोरंजन, खेल, गीत, भजन, चलचित्र, नाटक आदि के माध्यम से समाज के साथ जुड़ने के प्रयास किये गए। शिविर में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. स्वरूप सिंह पूरे दलबल के साथ पधारे। शिविर का संचालन, कार्य व्यवस्था, श्रम कार्य छात्रों की भागीदारी, उत्साह, रूचि देखकर बहुत खुश हुए।
अगले दिन हिंदुस्तान हिंदी एवं अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र में फोटो प्रकाशित हुए। फोटो में कुलपति जी के साथ अपना फोटो छपा हुआ देखकर अच्छा लगा।
इस शिविर की सफलता के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद सूरदास बाबा किशोरीशरण जी का था। बाबा बार बार शिविर में आए। उनका हर प्रकार का सहयोग खुले दिल से शिविर को मिला। गाँव वालों पर उनका बहुत ही गहरा प्रभाव था। उन्होंने जो कह दिया गाँव उसको दिल से मानकर पूरा करता। श्रम कार्य में एक पक्के मकान का कुछ हिस्सा अड़चन डाल रहा था, इस रुकावट के कारण काम में बाधा आ गई, काम रोकना पड़ा। बाबा आए उनके ध्यान में यह बात आई। सुनते ही बाबा खड़े हुए और कार्य स्थल पर पहुंचकर उस मकान के उस हिस्से को गिराने की बात कही। जो परिवार कह रहा था, इसको कोई हाथ भी नहीं लगा सकता, वह पूरा परिवार उसे उसी समय गिराने लगा। बाबा ने कहा उस हिस्से को हटा दिया जाए। हम लोग उसे गिराने पहुंचे तो आश्चर्यचकित होकर देखते रह गए। पूरा परिवार मिलकर उसे धाराशायी करने में लगा था। हमने सहयोग की बात की तो जवाब मिला, आप लोगों का सुबह हमने समय बर्बाद किया इसलिए आप लोग कुछ और करो। इसे हम ही साफ कर देंगे। बाबा का गाँव पर विशेष प्रभाव, श्रद्धा भाव देखकर सभी चकित रह गए।
बाबा शिविर में आते तो सबको प्रसाद भी मिलता। बाबा जन्म से ही सूरदास थे। गाँव के बड़े लोग भी कहते कि हम बाबा को बचपन से ही ऐसे ही देख रहे है, हलके फुल्के, छोटा कद, सफ़ेद वस्त्र।
बाबा वाद्य यंत्र बजाने में माहिर थे। जो वाद्य यंत्र मिल जाए बजाना शुरू। बंसी तो बहुत ही जोरदार बजाते थे। बाबा की साधना, व्यक्तित्व में दम था। सहजता, सरलता, सादगी की मूर्ति, समाज पर प्रेम से राज करने वाले, सच्चे संत का दर्शन लाभ मिला। आज भी उनकी याद, प्रसंग याद आते है। ऐसे महापुरुष, धर्म पुरुष, संतों की संख्या बढ़ जाए तो समाज में साझापन, प्रेम, बदलाव, सुधार की लहर चल सकती है।
इस शिविर में मिले कुछ साथियों से आज भी सम्पर्क बना हुआ है। कोई बैंक में, कोई व्यापार में, कोई नौकरी में, जो जहाँ भी रहा, परस्पर संबंध बना रहा। इस तरह के कार्यक्रम सही ढंग से आयोजित हो तो उनका असर व्यक्ति, समाज पर जरुर देखने को मिलता है। आजकल कार्यक्रमों में समय के साथ, विचार के अभाव में, ईमानदार, निष्ठावान कार्यकर्ताओं की कमी के कारण बड़ा अंतर आया है। देश भर से जो समाचार आ रहे थे, वे बहुत ही उत्साहवर्द्धक रहे।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
आभार धन्यवाद शुक्रिया