विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
विरासत बचाने का काम जिस गहनशीलता से करना चाहिए, वो गहनता और समझदारी हम लोगों में बची नहीं है। जल, जंगल, जमीन, मिट्टी, हवा, पानी सब की अनदेखी के कारण बिगाड़ हो रहा है। जो जनजाति, आदिवासी, घुमक्कड़ अपने सुख के लिए प्रकृति की बर्बादी नहीं करते हैं, आज उनका भी सम्मान नहीं बचा है। इस कारण जो भारतीय ज्ञानतंत्र है, उसकी अवहेलना व अपमान हो रहा है। भारतीय ज्ञानतंत्र में व्यक्ति अपने श्रमनिष्ट, अपने पसीने से कमाई करके, सुखी – समृद्ध रहता था। जनजातियों , आदिवासियों, घुमक्कड़ समाज ने अपने जंगलों को बचा के रखा, लेकिन उनको ही, उनकी जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने का काम बहुत तेजी से हो रहा है।
विरासत जीवंत होती है। जीवन ही सबसे बड़ी विरासत है। इसे बनाने वाला केन्द्र बिन्दु भगवान कहलाता है। 13.7 अरब साल पहले महाविस्फोट में वस्तुमान, समय, अंतरिक्ष जब काल-समय तय नहीं था, तब जीवन और विरासत नहीं थी। उसी के बाद काल-चक्र, अणु-परमाणुओं के योग से जल और जीवन बना। लंबे समय के बाद जल निर्माण प्रक्रिया शुरू हुई थी। जल से भूमि बनी इस पर जीवन का आरंभ हो गया था, बस तभी से जीवन की विरासत का निर्माण आरंभ हुआ है।
जीवन को चलाने वाली जीविका और जमीर बनाने वाले साधनों की खोज आरंभ हुई है। इसी से एक तरफ ‘जिओ और जीने दो’ सिद्धांतों के साथ जीने वाले सिद्धांत ने मर्यादा बनाई। ‘जिओ और जीने दो’ भारत की विरासत बन गई है। इसी सिद्धांत के बाद मार कर खाने वालों ने भी अपनी विरासत स्वरूप जीवन जीना स्वीकारना शुरू किया था।
जीव-जंतुओं की खाद्य श्रृंखला प्रकृति का हिस्सा है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक स्वरूप तो मारना-खाना ‘विश्व विरासत’ स्वरुप में आज भी स्वीकार है। इसे कभी गलती से विकास बोला गया था, लेकिन यह विकास नहीं है। भारत में पुनर्जन्म प्राकृतिक प्रक्रिया में सनातन आदि अनंत है। सनातन का अर्थ है जिसका कभी अंत नहीं होता है। सदैव नित्य-नूतन निर्माण ही चलता रहता है। लेकिन यह प्राकृतिक होता है। इसमें खाने के लिए प्राकृतिक पोषण व्यवस्था बनायी है। यह जीने के लिए ही चलाने वाली व्यवस्था है। इसमें लालची संग्रह हेतु कोई किसी को मारता नहीं है। यही हमारी ‘भारतीय आस्था और पर्यावरण रक्षक विरासत है’।
भारतीय और वैश्विक विरासत हमारे जीवन, जीविका और जमीर को बनाये रखने वाले प्रतीक ही प्राणवान जीवंत होते है। इन्हीं से प्ररेणा लेते है अर्थात् दो प्रकार की विरासत है। पहली जीवन, जीविका और जमीर दूसरी प्रेरक जैसे गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी, गफ्फार खान, विनोबा भावे, राम-कृष्ण, सीता, पार्वती, लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, शिवाजी, भीमराव अम्बेडकर आदि ऐसे ऐतिहासिक नायक भारत की विरासत है। इसी प्रकार मीनाक्षी मंदिर, केदारनाथ, बद्रीनाथ, सोमनाथ तीर्थ विरासत है। अजमेर सरीफ जहाँ से सूफी संत परम्परा आगे बढ़ी थी। सूफी परम्परा और स्थान अब दोनां ही भारत की विरासत है। इसको बनाने में नरसी मेहता, मीरा बाई का योगदान है। ये निर्भीकता से प्यार करने वाली प्रेरक विरासत है।
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प्रेरक नायक, परम्परा और स्थान तीनों ही विरासत बनते है। आज भारत में इनसे सीखने की बहुत संभावनायें है। यही विरासत दुनिया में भारत को गौरव और सम्मान दिलाती है। विरासत के ऊपर लालची विकास ने संकट पैदा कर दिया है। हमारे लालची विकास की का्रंति ने परिवर्तन किया है। यह बिगाड़ करने वाला परिवर्तन है।
क्रांति, परिवर्तन, विकास से पहले का कदम है। जब तक विकास पुर्नःजनन प्रक्रिया में चलता है, तभी तक वह सनातन और समृद्धि के रास्ते पर चलता है। जब वही विकास मानवीय लालची प्रक्रिया में पड़ता है, तभी विनाश के रास्ते को पकड़ता है। यही विनाशकारी रास्ता विरासत पर संकट पैदा कर देता है। इसकी शुरूआत ज्ञान, परम्पराओं, हरियाली, मानवता का विस्थापन करके बिगाड़ और विनाश होता है।
यह विकास सभी प्रकार की विरासत में आज बिगाड़ पैदा करता है जैसे- यमुना प्रदूषण से आगरा, ताजमहल में बिगाड़ शुरू किया तो, भारत के उच्चतम् न्यायालय को दखल देनी पड़ी। वैसा ही गंगा, यमुना, कृष्णा कावेरी, क्षिप्रा, गोदावरी सभी का प्रदूषण हमारी कुंभ जैसी विरासत और हमारे स्वास्थ्य में बिगाड़ आरंभ कर देता है।
हमारी विरासत में बिगाड़ अब नायकों जैसे गांधी का बाजारू उपयोग करना, वही उनके आश्रम साबरमती को उनकी आत्मा के विपरीत पर्यटन वैश्विक विरासत बनाने के नाम पर मूल स्वरूप के विपरीत स्वरूप प्रदान करने का कार्य करना या करवाना। आज के लालची, विकास और बाजार की ही देन है। बाजार को ध्यान में रखकर जब भी विकास कार्य होता है, तभी बिगाड़ और विनाश आरंभ होता है।
विरासत को उसके मूलरूप में बनाकर रखना एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी और हकदारी है। सरकारें अपनी जिम्मेदारी समझे, विरासत को मूल स्वरूप में रखने हेतु संरक्षण प्रदान करे। विरासत का विकास नहीं होता है। विरासत को केवल संरक्षण प्रदान करना ही सरकार की जिम्मेदारी और हकदारी है। इसे ही सभी सरकारों, राज्य सरकारों, नगरों और पंचायतों को निभाना चाहिए।
विरासत संरक्षण कानून बनाना लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी और हकदारी है। समाज का धर्म-कर्तव्य है। विरासत को समझे, सहेजे, दूसरों को इनका महत्व समझायें। अनुशाषित होकर संरक्षण करें और सरकारों से करवाये। विरासत निजी और साझी होती है। कुछ समय बाद निजी विरासत भी साझी बन जाती है। विरासत सदैव साझी होती है। इसे साझा समृद्ध बनाने की जरूरत है।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।