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– साक्षी पटवाल
30 वर्षीय सुनील जॉन और 32 वर्षीय शत्रुघ्न शर्मा दोनों ही साथी हैं और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते है। दोनों ही गाजियाबाद के निवासी है। पर जहां सुनील गाजियाबाद के ही एक आवासीय सोसाइटी में नौकरी करते थे , शत्रुघ्न की नौकरी दिल्ली में थी। उन्हें थोड़ा भी अंदेशा नहीं था कि किस कदर लॉक डाउन उन्हें एक विषम परिस्थिति में भी डाल देगा जहां उनके हिम्मत की ही परीक्षा होती थी।
जहां एक ओर सुनील जॉन इस महामारी के दौरान भी अपनी सुरक्षा ना सोचते हुए उन्होंने पहले अपनी ड्यूटी और लोगों की सुरक्षा को आगे रखा, शत्रुघ्न शर्मा का बॉर्डर सील होने की वजह से उनका ना चाहते हुए भी नौकरी के लिए जाना बंद हो गया। नौकरी पर ना जाने की वजह से उन्हें खाने के लाले पड़ गए। उनके साथी सुनील का नौकरी पर जाना इतना मुश्किल नहीं था। परन्तु ईश्वर तो इस मुश्किल घड़ी में मानों सभी का इम्तेहान ले रहा था।
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सुनील जहां रहते हैं वहां कुछ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए, जिसके बाद उनके एरिया को सील कर दिया गया। इस कारण सुनील भी अपने घर से नहीं निकल पा रहे थे। 10 दिन के लिए मार्केट बँद हो जाने के कारण उन्हें राशन का सामान लाने में दिक्कत आने लगी। वैसे तो सरकार ने सभी के लिए राशन कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई परन्तु आधार कार्ड ना होने की वजह से वह इन सभी सुविधाओं से वंचित थे और अपना घर चलाने में असमर्थ महसूस कर रहे थे। अपने घर का मुखिया होने के कारण उसे ही अपने घर की आर्थिक स्थिति को देखना होता था क्योंकि उनके साथ उनकी बीवी और बूढ़े माँ-बाप भी रहते हैं, जिनको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
इसलिए अपने परिवार का ख्याल करते हुए सारा रिस्क मोल लेकर सुनील अपने काम के लिए निकले परँतु ग्रीन पास ना होने के कारण उन्हें पुलिस ऑफिसर ने जाने नहीं दिया। लेकिन उनके पास सिक्योरिटी कार्ड होने की वजह से उन्हें जाने की अनुमति मिल गई परन्तु ऑफिसर ने उन्हें सलाह दी कि वे जल्द से जल्द अपना ग्रीन कार्ड बनवाले ताकि उन्हें आगे चलकर ऐसी दिक्कत का सामना ना करना पड़े। लेकिन समय ना मिल पाने के कारण वे ग्रीन कार्ड बनवाने में असमर्थ रहे परँतु सिक्योरिटी कार्ड होने के कारण उन्हें जाने की अनुमति मिल जाती थी।
इस लॉकडाउन में भी सुनील 12 घंटे की नौकरी करने के लिए रोज सुबह 8:00 बजे पैदल चलकर सोसाइटी समय पर पहुँच जाया करते थे। सोसाइटी वालों ने इनकी परेशानियों को देखते हुए उन्हें आटा, दाल और चावल दिए जिससे वे कुछ वक्त तक अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधार सकें। सोसाइटी वालों ने गार्ड को कोई दिक्कत ना हो काम करने में इसलिए उनके लिए वाटर टैंक की सुविधा रखी और साथ ही गर्मी बढ़ जाने के कारण उनके लिए कूलर की सुविधा भी उपलब्ध कराई। लॉकडाउन होने के बावजूद भी उन्हें अपनी सैलरी समय पर मिलती रही। पहले और अब में बस इतना फर्क आया है कि पहले वह आते ही गार्ड रूम में बैठ जाया करते थे लेकिन अब आते ही उनके हाथों को सेनीटाइज किया जाता है फिर उन्हें नया मास्क दिया जाता है और साथ ही उन्हें यह भी बताया जाता है कि वह सोसाइटी में किसी भी अनजान व्यक्ति को प्रवेश करने की अनुमति ना दें।
परन्तु सुनील के साथी शत्रुघ्न इतने भाग्यशाली नहीं थे। इस लॉकडाउन के दौरान उन्हें कुछ ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जिन दिक्कतों का सामना उन्होंने इससे पहले कभी नहीं किया था। उनके पास नौकरी नहीं थी। क्योंकि वह पहले दिल्ली में किसी के यहाँ काम करते थे , लॉकडाउन होने पर और बॉर्डर बँद हो जाने के कारण वह ढाई महीने तक गाज़ियाबाद में घर में ही रह गए। जितनी उनके पास जमा पूँजी थी वह भी धीरे-धीरे समाप्त होने लगी थी जिसकी वजह से आर्थिक समस्याएँ बढ़ने लगी थी। शत्रुघ्न ने बताया कि घर खर्च चलाने के लिए उन्हें लोगों से उधार लेना पड़ा क्योंकि आधार कार्ड ना होने की वजह से उनका राशन कार्ड और जनधन खाता नहीं बना है जिस कारण सरकार के द्वारा दी गई सभी सुविधाओं से वह वंचित हैं और इसी कारण उन्हें अपना घर चलाने के लिए उधार लेना पड़ रहा था। आर्थिक तंगी को देखते हुए घर में रोज़ उनके और उनकी पत्नी के मध्य बहस होती थी और घर का माहौल भी ठीक नहीं रहता था। फिर इस परेशानी को देखते हुए उन्होंने गाज़ियाबाद में ही नौकरी ढूँढना शुरू कर दिया था और उन्हें ढ़ाई महीने के बाद सुनील की सोसाइटी में ही गार्ड की नौकरी मिली। इसी के साथ उन्होंने बताया कि इस सोसाइटी में काम करते हुए उन्हें एक हफ्ता हो गया है। सोसाइटी वालों ने भी उनकी काफ़ी मदद की और उन्हें ज़रूरत का सामान उपलब्ध करवाया। उधार वाली बात पर शत्रुघ्न जी ने कहा की “जीवन में तो मुश्किलें आती ही हैं, लेकिन हमें उनका डटकर सामना करना चाहिए और जहाँ तक रही उधार की बात तो वह मेरी नौकरी करने से ही उतर जाएगा”। जहाँ लॉकडाउन के समय लोग अपनी उम्मीदों को खो रहे थे, वहीं शत्रुघ्न जैसे लोग अपनी उम्मीदों का पुल बाँध रहे थे।
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