विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
मेवात में बहुत ही खारा पानी है। आज जब मेवात क्षेत्र के नीमली से होते हुए माडीखेडा, नांगल, घाघस और दादीलूलम मदरसा आदि जगहों पर पहुंचे और हमारे साथ आये भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक संजॉय दत्ता ने जल की गुणवत्ता की जाँच करी तो उन्होंने पाया कि यहाँ के पानी में फ्लोराइड बहुत ज्यादा मात्रा में है। लेकिन जहाँ जल संरक्षण का काम हो रहा है, उसके नीचे की तरफ रिचार्ज होने के कारण पानी की गुणवत्ता अच्छी हुई है। सामान्यतः टीडीएस वैल्यू 2200 से लेकर 800 टीडीएस तक है।
अभी तक जो परिणाम आए हैं 2079 से 1800 व 1200 तक पानी प्रदूषित औैर खारा है। यह आंकड़े डराने वाले हैं।पीने के लायक अच्छे पानी की टीडीएस वैल्यू 100 से नीचे होनी चाहिए। यह वैल्यू मेवात में बहुत ज्यादा है। यहाँ पास में ही स्थित नीमली में कुछ जगह 3 से 30 टीडीएस वैल्यू तक है, जो इस इलाके का सबसे अच्छा पानी है।
आजादी के समय के धार्मिक उन्माद से तो मेवात बचा रहा लेकिन जल के संकट से मेवात कैसे बचेगा? यह मेवात को अब सोचने की जरूरत है।
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जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा जिन्ना की सहमति से हुए हिंदुस्तान विभाजन को बापू ने चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था, ‘‘विभाजन मेरी लाश पर होगा।’’ फिर भी विभाजन हो गया। लेकिन बापू हिम्मत नहीं हारे। दुखी जरूर थे, कहा, ‘‘मेव मुस्लिम जाएँगे, तो मैं भी इनके साथ पाकिस्तान चला जाऊँगा। जहाँ ये रहेंगे, मैं भी इनके साथ वही रहूँगा।’’
महात्मा गांधी जब मेवात में घासेडा आए थे, तब लगभग पांच लाख लोग उनको सुनने के लिए मौजूद थे। यहाँ जब महात्मा गांधी ने कहा कि यह देश आपका है और हम सब साथ हैं, तब मेवों को उन पर यकीन हो गया और मेवों ने फिर भारत छोड़ने का इरादा बदल दिया। इस घटने के 41 दिन बाद महात्मा गांधी की हत्या हो गयी।
मेवात के मेवों का पुनर्वास करने हेतु बापू की आत्मा का शरीर से अलग हो जाने के 61 दिन बाद विनोबा भावे जी उसी कार्य में लगे। बिहार के सत्यम भाई तथा मोहम्मद कुरैशी, एल्हास मोहम्मद आदि बहुत से सर्वोदय कार्यकर्ता मेव पुनर्वास में जुट गए। कांग्रेस के भी कार्यकर्ताओं ने मेव पुनर्वास में बहुत तत्परता से कार्य किया। ताराचंद प्रेमी, शांति स्वरूप डाटा, गंगा डाटा, रणधीर सिंह हुड्डा व बहुत से मेव कांग्रेसी भी इस कार्य में लगे। मेवों का पुनर्वास होने लगा।
पर यदि मेवात जल संकट से उजड़ेगा, तो फिर मेवात को बचाने और बसाने का कोई रास्ता नहीं है। इसलिए अपने मेवात के साथियों को रोज यह कहता हूँ कि धार्मिक उन्माद से तो महात्मा गांधी ने बचा लिया लेकिन जल की कमी के उत्पात-तूफान से मेवात कैसे बचेगा यह विचारना व सोचना का सबसे जरूरी काम है। इसलिए हम सब कभी भी बेपानी ना हो, मेवात सदैव पानीदार बना रहे। इसके लिए हम सक्रिय होकर मेवात को पानीदार बनाए रखने के काम में सबको जुटने की जरूरत है और नीर, नारी और नदी का सम्मान करके सब जुटें तभी हरियाली आएगी, हरियाली से ही धरती का बुखार ठीक होगा और मौसम का मिजाज सुधरेगा।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।