मग्देलेना नदी
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
विस्थापित होता कोलंबिया
कोलंबिया दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक देश है। इस देश की राजधानी बोगोटा है। इस देश के पूर्व में वेनेजुएला और ब्राजील, दक्षिण में इक्केडोर और पेरू उत्तर में केरेबियन सागर, उत्तर पश्चिम में पनामा और पश्चिम में प्रशांत महासागर स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 1141748 वर्ग किलोमीटर है। यह एक बहुसांस्कृतिक देश है। इसकी मुख्य नदी मग्देलेना, कौका गुवाइरे, एत्रातो, मेता, पुतुमायो और जापरा है।
कोलंबिया के उत्तरी इलाकों में एक दशक पहले तक खेती बहुत सरल और फायदे का काम था, चावल किसान साल में दो-तीन फसल उगा सकते थे, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने उनके सामने बड़ी चुनौतियां खडी कर दी है। अब मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए वर्ष में एक फसल लेने के लिए मजबूर हो रहे है।
कोलंबिया में विस्थापन की बहुत बडी समस्या है। यदि विस्थापित लोगों को नहीं बसाया गया तो यह विश्व युद्ध का कारण बनेगा।
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मैं जब कोलंबिया यात्रा पर था, तब बहुत साथियों से मुलाकात हुई थी। उसमें से तीर्थ बचाओ जुड़ाव की सदस्य गिल्डार्डो टयूबरकिया जो विस्थापितों का पुनर्वास करना चाहती है, उन्हीं के लिए काम कर रही है। उन्होंने अपनी बातों को साझा करते हुए कहा था कि 1997 में काम शुरू किया। ये एक साथ आये। इनकी कुल आबादी 5000 थी। इनमें से 3000 लोग लड़कर मर गये।
शांति समुदाय कोलंबिया में लोगों का उजाड़ रोकने के काम के लिए खेती में लगाना गिल्डार्डो टयूबरकिया का स्वप्न है। यह काकाओ, केला आदि की उपज करते हैं। इनकी मिट्टी बहुत उपजाऊ है और इनके पास झरनों का पानी है, समृद्धि है। लेकिन कहीं – कहीं पानी की बहुत कमी हो गई है। ये खेती में बराबर बाँटने का स्वप्न देखते हैं। ये पौधारोपण करना चाहते हैं। यह समुदाय के साथ मिलकर काम करना चाहते है। उन्होंने कहा हमें हमारी संस्कृति का सम्मान करना सीखना चाहिए। 1996-97 में बहुत हिंसा का काम हुआ था। “हमने उसको रोकने व कम करने का प्रयास किया था। समुदाय मार दिये गए, हम अनाथ की तरह घूम रहे थे। हमें कुछ मालूम नहीं था। हमने युद्ध मुक्ति के लिए काम करना शुरू किया। 23 वर्ष पहले हमारे लोग मारे गए थे। हमें अब वापस अपनी जमीन पर जाना है। वापस अपनी जमीन पर पहुँचकर, भोजन आदि की व्यवस्था करना है। राज्य सत्ता, समुदायों को वापस बुलाकर बसाये। हमारा अपनी जगह पर पुनर्वास ही हमारा अब ध्येय है।”
कोलंबिया में बहुत बाजारी करण हो गया है। यहाँ की नदियों पर कब्जा है। इस देश इसके सुधार हेतु धरती का बुखार व मौसम का मिज़ाज ठीक करने के लिए जल संरक्षण व वृक्षारोपण करना बहुत आवश्यक है।
जब मैं वहां गया तो मैंने पाया कि जिस प्रकार भारतीयों को ईस्ट इंडिया कम्पनी को जगह-जगह पर अपराधी घोषित कर दिया था, वैसे ही कोलंबिया सरकार अपने मूल आदिवासियों के साथ कर रही थी। आदिवासियों के सिर्फ चौथी तक ही स्कूल था। यहाँ पारा मिलिट्री इन्हें मार-मार कर भगा रही थी। कुछ को बहुत सुविधाएँ देकर गुलाम बनाकर रख रही थी । यहाँ बोलने व रहने की आजादी नहीं थी। इनकी आजादी की लड़ाई चल रही थी।
इस लड़ाई में शामिल लोगों ने मुझसे कहा कि कोलंबिया की विस्थापक सरकार लोगों को बाहर नहीं आने दे रही है। पुलिस बहुत अन्याय कर रही है। सरकार सिर्फ पैसा देने वालों को ही बुला रही है। 800 सामुदायिक नेता मार दिये गए थे।
कोलंबिया उजड़ रहा है । जमीन और घर छीनकर उजाड़ा जा रहा है। यह जल-जंगल-जमीन को जहरीला करके मार रहे हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।