– स्मिता बाजपेयी
कल दोपहर का खाना बहुत दिनों के बाद खाने वाली टेबल पर बच्चों के साथ खाने का मौक़ा मिला था, बाते पढ़ाई पर ही केंद्रित थी ।
इस बार परीक्षा स्कूल में ही होगी पर मैं परीक्षा स्कूल जाकर नही दूँगी, बच्ची ने विरोध किया ।
पर तुमने तो सारी आनलाइन क्लासेज़ की है फिर क्या समस्या है ?
आता तो मुझे सब है, मैं बोलकर सारे विषयों के बारे में बता भी सकती हूँ पर इतना सारा लिखकर बिल्कुल भी नहीं, बच्ची अपनी ज़िद पर अड़ी थी।
अच्छा ठीक है सांइस में ब्लैक होल और व्हाइट होल की थ्योरी समझाओ वह भी उदाहरण के साथ, फिर देखते हैं क्या करना है मैंने जवाब दिया ।
बच्ची ने बिना साँस रोके सब समझा दिया वो भी उदाहरण के साथ ।
अब क्या समस्या है .. आता तो सब है तुमको , मैंने कहा ।
अरे…मम्मी परीक्षा में तो सब इंग्लिश मे लिखना होगा, और में इतनी सारी इंग्लिश नही लिख सकती हूँ, बच्ची ने परेशान होकर कहा।
कोई बात नही तुम हिंदी में लिख देना, बेटे ने मज़ाक़ में चिढ़ाया .. वैसे भी तो तुम्हारी मैम हिंदी में ही तो समझाती है ।
पर परीक्षा में हिंदी में लिखना मना होता है ना .. भैय्या ..बच्ची बोली ।
मम्मी हिंदी मीडियम स्कूल में तो हिंदी में ही लिखना होता है ना और सारी किताबें भी हिंदी में ही होती है फिर आप मुझे हिंदी वाले स्कूल में क्यों नही पढ़ाते हो ?
मैं वहीँ पढ़ूँगी .. हम घर में भी तो हिंदी बोलते है फिर इंग्लिश स्कूल में ही क्यो पढ़ने जाते हैं ? वैसे भी मुझे इतनी सारी स्पेलिंग याद ही नहीं होती है ।
बुद्धू फिर तुमको कोई नौकरी पर नही रखेगा .. जब तुम घर से बाहर जाओगी तो सबसे हिंदी में बात करोगी और हवाई जहाज़ में तुमको अंग्रेज़ी समझ में नहीं आयेगी तब क्या करोगी और सारे बच्चे और बड़े तो सब बोलेंगे कि इसको तो इंग्लिश आती ही नहीं …सब तुम्हारा और मम्मी पापा का मज़ाक़ बनायेंगे। बेटे ने अपनी बेहतरीन अंग्रेज़ी का हवाला देते हुए हेय दृष्टि से अपनी बहन को देखकर एक ही साँस में पूरे आत्मविश्वास से बोला कि मम्मी की शाबाशी ज़रूर मिलेगी।
पर भैय्या जापानियों को भी तो इंग्लिश नही आती है उनका तो कोई मज़ाक़ नहीं बनाता बल्कि आप भी जापानी सीख रहे हो जिससे आप जापान में जा कर जापानी में ही पढ़ाई कर सको ना कि अंग्रेज़ी में।
बच्ची के इस हाज़िर जबाब का हम में से किसी के पास भी कोई उत्तर नही था।
अच्छा चलो खाना जल्दी ख़त्म करो … मैंने भी कन्नी काटते हुए जवाब दिया।
पर सच तो यही है कि हम अपनी ही भाषा में पढ़ना -पढ़ाना पसंद नही करते और अंग्रेज़ी को अहमियत सरकार के साथ-साथ हम खुद भी देते हैं .. कभी सोसायटी में स्टेटस के लिये तो कभी बहुराष्ट्रीय कंपनी मे नौकरी के लिये तो कभी अपने ही लोगों को नीचा दिखाने के लिये भी हिंदी की जगह इंग्लिश का उपयोग करते है तथा ग़लत इंग्लिश बोलने वालो का जी भर कर मज़ाक़ भी बनाते हैं ।
पर आने वाले समय के लिये बच्ची ने वादा ले ही लिया कि वह हिंदी मीडियम में ही पढ़ेगी और हमें भी उसकी बात माननी पड़ी …अब हम केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन करवाने की सोच रहे हैं जिससे बच्ची हिंदी और अंग्रेज़ी जिसमें परीक्षा देना चाहे दे सके।