विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
सोमनाथ मंदिर में भारत का सबसे पुराना ज्योर्तिलिंग है। जो समुद्र के किनारे पर स्थित है, इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, इसके रास्ते से हम धरती को छुए बिना ही दक्षिण ध्रुव पर पहुँच सकते है। प्राचीन काल में भारत की इस खोज को मैं भारत की विरासत मानता हूँ । मैं मानता हूँ कि, सोमनाथ ऐसे स्थान पर बना है, जहाँ हम उत्तर से दक्षिण की यात्रा, धरती को बिना छुए कर सकते है। यह स्थान कभी भारत की समृद्धि का स्थान था। यहाँ का मंदिर बहुत ही समृद्ध था, इसलिए बार-बार इस मंदिर को लूटने की कोशिशें होती रही है। लेकिन यह मंदिर दोबारा से भारत की समृद्धि का संदेश दे रहा है। इस स्थान पर एक तरफ मंदिर की भव्यता और दूसरी तरफ यहाँ के समाज की नदियाँ, पानी, खेती सब बड़ी समृद्धि से बहती है। यहाँ की नदियाँ शुद्ध-सदानीरा दिखती है, लेकिन है नहीं? क्योंकि यहाँ ऊपरी सफाई का काम जारी है, अंदर की सफाई अभी बाकी है। यहाँ का सोमनाथ मंदिर हमारे मन के अंदर के दोषों की सफाई करता है। सोमनाथ मंदिर में जाकर वहाँ के समुदाय से बात की और दर्शन किए।
सोमनाथ मंदिर के बाद यात्रा जूनागढ़ के लिए रवाना हुए । आप जानते है कि जूनागढ़ सफेद शेरों के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। जहाँ सफेद शेर बचे हुए हैं, उसे गिरनार का जंगल कहते हैं। यह सफेद शेरों की संरक्षण स्थली है और नरसिंह मेहता का स्थान भी है। नरसिंह मेहता 15वीं शताब्दी के ऐसे संत थे, जिन्होंने जीवन भर अहिंसा और सत्य को धारण किया था। वह सत्य को धारण करके, अपने वचनों में सदैव निर्भय होकर, एक संत की तरह अहिंसक बातें समाज को सिखाते रहे। इसलिए उन्होंने उस काल में जो वैष्णव जन प्रार्थना शुरु की थी, उसकी अभी 21वीं शताब्दी में ज्यादा जरुरत है।
यह भी पढ़ें : भावनगर में जल उपयोग दक्षता बढ़ाना सबसे ज्यादा आवश्यक है
जूनागढ़ हिन्दू-मुस्लिम एकता का गढ़ है। यहाँ दोनों ही एकता, समता और सादगी से रहते है। जूनागढ़ के सफेद शेर हमारी पर्यावरणीय व प्राकृतिक विरासत है और नरसिंह मेहता हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक को जीवित रखने की विरासत के प्रतीक हैं । नरसिंह मेहता से गांधी तक की यात्रा, इस विरासत को दोबारा जानने, समझने और आगे ले जाने के लिए हो रही है। इस यात्रा में नरसिंह मेहता से लेकर गांधी की विरासत को जानना, समझना और ऐसी मंगल कामना, जिसमें सभी की सद्भावना, वह इस विरासत यात्रा में सामने आ रही है। इसलिए हम सब जहाँ एक तरफ विनोबा का जय जगत और दूसरी तरफ हमारी मंगल कामना, सद्भावना को भी पहचानेंगे।
इसके बाद हम जूनागढ़ के रुपायतन विद्यालय में पहुंचे । यह संस्था यहाँ के सामाजिक, सांस्कृति लोगों ने मिलकर बनाई है। इस संस्था में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते है। यहाँ मुरारी बापू बहुत बार आते हैं। यहाँ मैंने विद्यार्थियों, शिक्षकों और संचालकों के साथ बैठक की। यहां कश्मीरी कलाकारों द्वारा संगीत का गायन भी हुआ। इस सभा में मैंने कहा कि गुजरात और कश्मीरी लोगों का यह मेल सद्भावना और एक दूसरे को सम्मान से जीवन जीना सिखाता है। आगे कहा कि यह संगीत की विरासत हो या सूफी संत परम्परा हो दोनों समानता का भाव सिखाती है। इस सूफी संत परम्परा की सर्वोच्च नायिका भारत की मीरा बाई है। मीरा बाई पूरी आजादी के साथ साधना से अपने भगवान से मिलने के लिए किसी से भी नहीं डरती थी। ऐसी परम्परा जहाँ स्त्री को इतनी आजादी थी, यह परम्परा आज कैसे समझी जा सकती है? हमारी आजादी तो संयम, साहस और गहराई की है। हमारे आजाद जीवन में जब अनुशासन की सिद्धी होती है, तब हम किसी से नहीं डरते।
जूनागढ़ में जहाँ एक तरफ नरसिंह मेहता और दूसरी तरफ सूफी परम्परा, इन दोनों सभ्यता के लोग रहते है। तब भी सूफी परम्परा का एहसास किया जा रहा है, तो यह वो परम्परा है, जो मानव को मानव बनाती है। यह मानव को प्रकृति के साथ प्रेम करना सिखाती है। यह दूसरों पर शोषण, अतिक्रमण करके राज करने वाली परम्परा नहीं है। यह तो त्याग, समता, सहजता और सरलता के साथ जीने का रास्ता सिखाती है।महावीर स्वामी जी ने जो कहा था कि जियो और जाने दो की परम्परा, सूफी परम्परा बहुत अच्छे से निभाती है। इसलिए सूफी संत परम्परा की विरासत को बचाना जरुरी है। यदि यह नहीं बची तो फिर पूरी दुनिया में मंगलकामना, सबकी हो सद्भावना की कल्पना करना संभव नहीं होगा। यदि हमें ऐसी कल्पना करनी है तो हमें समाज को सद्भावना के साथ जीना सीखाना होगा और सत्य-अहिंसा के रास्ते पर चलना होगा। हम पूरी दुनिया में मंगलकामना और सद्भावना के साथ जीने का संदेश मेरी इस यात्रा का लक्ष्य है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।