-डा. रक्षपालसिंह चौहान*
बीते दिनों इंडियन एकोनोमिक्स एसोसिएशन द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं आत्मनिर्भर भारत पर आयोजित वेबिननार में देश के विद्वानों ने नई शिक्षा नीति-20 को 5 सिद्धांतों पर आधारित बताया है। उनका कहना है कि समानता,सुलभता,सुगमता,स्वायत्तता एवं जवाबदेही के मामले में यह पूरी तरह खरी उतरी है। जहां तक मेरा सवाल है और मैं अपने लगभग चार दशक के अनुभव के आधार पर कहता हूं और मेरा दृढ़ मत भी है कि इस बारे में सिद्धांतों से ज्यादा प्रैक्टीकल एप्रोच पर अधिक विश्वास करना चाहिए।
मेरा स्पष्ट मानना है कि इक्कीसवीं सदी में भारतवर्ष में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने वाले लगभग 15 फीसदी शिक्षण संस्थानों में तो एक सीमा तक सिद्धांतों का अनुपालन हो सकता है, लेकिन शेष में से अधिकांश में यह सम्भव नहीं होगा। नई शिक्षा नीति-1986/92 के क्रियान्वयन में पैदा हुई गम्भीर विक्रतियों को लगभग 13 साल के शासन काल में भारतीय जनता पार्टी सरकार नहीं सुधार पाई जबकि देश के लोगों को इस सरकार से बहुत उम्मीद थी ।अफसोस है कि उन गम्भीर विकृतियों की ओर नई शिक्षा नीति-20 में उल्लेख तक नहीं किया गया है। सबसे बड़ी बात यह कि उन विकृतियों के रहते इस शिक्षा नीति की सफलता की उम्मीद तो स्वार्थी विद्वान या वर्तमान सरकार से कुछ फायदा उठाने की जुगत में लगे लोग ही कर सकते हैं ।
नई शिक्षा नीति-20 के विस्त्तृत ड्राफ्ट को देखते हुये इसको लागू करना बहुत कठिन होगा क्योंकि इसके क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाने हेतु ईमानदार,निष्ठावान एवं समर्पित नौकरशाहों, कुलपतियों, कुलसचिवों, प्रोफेसरों, शिक्षाधिकारियों एवं अन्य सम्बंधित लोगों की ज़रूरत होगी जिनकी आज देश में भारी कमी है। असलियत यह है कि 80 फीसदी निजी विश्विद्यालयों, निजी महाविद्यालयों,निजी माध्यमिक विद्यालयों(स्टेट बोर्डोँ से सम्बद्ध) तथा सरकारी बेसिक स्कूलों में जो पठन पाठन के हालात हैं ,उनसे देश के लोग भली-भांति परिचित हैं। जिन 5 सिद्धांतों के जाये इसकी कामयाबी की बात की जा रही है, उनमें एक महत्वपूर्ण सिद्धांत जवाबदेही भी शामिल है जो मेरी दृष्टि में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । खेद है कि उसकी ओर से तो वर्तमान सरकार ने आंखें ही मूँद रखी हैं ।काश! सरकार ने इस सिद्धांत को क्रियान्वित करने की कोशिश की होती तो शिक्षा व्यवस्था की इतनी दुर्गति न होती। मैंने उक्त सदर्भ में वर्ष 2015 में भी माननीय प्रधानमंत्रीजी व शिक्षा मन्त्री जी को 21 पत्र लिखकर इस ओर उनका ध्यान खींचने का प्रयास किया था । मुझे प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री को भेजे पत्रों की प्राप्तियां भी मिली थीं, लेकिन खेद है कि कार्रवाई के मामले में वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुयी।
विडम्बना यह है कि जिस तरह का आजकल शिक्षा का माहौल है और नीति को लागू करने में शामिल होने वाले लोगों की संभावनाएं है ,उसे देखते हुए शिक्षा नीति 20 की सफलता संदिग्ध ही प्रतीत हो रही है। प्रथम आवश्यकता इस बात की थी कि 2014 के बाद भाजपा सरकार शिक्षा नीति-1986/92 की खामियों को दुरुस्त करके नई शिक्षा नीति 20 को लागू करती । जबकि इस नीति को लागू करने में पिछली नीति की खामियां ही इसकी कामयाबी में सबसे बड़ी बाधा होंगी। फिर भी देश के लोगों को वर्तमान सरकार से अभी भी आशायें हैं कि सरकार अब तक शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्याप्त खामियों को यथाशीघ्र दुरुस्त करने के भगीरथ प्रयास करेगी और उसके बाद ही नई शिक्षा नीति-20 के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करेगी।
*लेखक प्रख्यात शिक्षाविद और डा. बी. आर. अम्बेडकर विश्व विद्यालय, आगरा शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।