विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
कालीकट, केरल के तुषारगिरी पर्वत पर चालीपुरा नदी का उद्गम स्थल प्रकृतिमय बहुत ही सुन्दर है। यहाँ तीन बड़े जल प्रपात है, जिन्हें देखकर बहुत आनंदित हुआ। इसके पश्चिमी घाट का हिस्सा बहुत ही सुन्दर हरी भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। लेकिन यहाँ का रियल स्टेट इस तीर्थाटन को पर्यटन में बदलने का प्रयास कर रहा है। यह धरती, प्रकृति, पहाड़ों के साथ अन्याय हो रहा है। यहाँ की केरल रिवर प्रोटेशन काउंसिल और के. के. आर. रहमान यह लोग लगभग 22 सालों से इन पहाड़ियाँ को बचाने हेतु आंदोलन करके, अभी बचाकर रखा है।
मैं चालीपुरा नदी के जन्म स्थल तुषार गिरी को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन का समर्थन करता हूँ । इस प्रकृति को हरा-भरा बनाकर रखना है। इस स्थल को तीर्थाटन ही रहन दें, इस हरे-भरे पर्वत को पर्यटन न बनने दें। यह भूमि जंगल विभाग की है, यह जंगल विभाग की ही रहना चाहिए। लेकिन यहाँ के नेता और रियल स्टेट इस जमीन को जंगल विभाग से निकालकर, इसे पर्यटन बनाना चाहते है। इसलिए लोग उसके विरोध में है।
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यहाँ बहुत सारे तीर्थ यात्री यहाँ घूम रहे थे, किसी प्रकार की कोई गंदगी नहीं थी। इसे देखकर आनंदति हुआ। मुझे भी लगा कि, यह तीर्थ बचना चाहिए, इसलिए आंदोलनकारियों का समर्थन किया और कहा कि, यहाँ नदी पाठशाला का आयोजन करिए जो प्रकृति , नदियों और मानवता का सम्मान सिखाए।
कालीकट के बड़े सभागार में आयोजित किसान सम्मलेन में सैंकडों किसान उपस्थित थे। इस किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए मैंने कहा कि केरल विकास का ऐसा नमूना है, जहाँ प्रकृति प्रदत्त अमूल्य विरासत को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। यहाँ के हरे-भरे जंगलों , नदियों के उद्गमों के तीर्थाटन को पर्यटन में बदलने का काम कर रहे है। केरल को यदि समृद्ध राष्ट्र बने रहना है तो अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाना होगा।
इसके उपरांत हम कालीकट में केरल सरकार और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘जमीन के अंदर से रेलवे लाईन बिछाने की योजना’ के विरोध में 419 दिन से चल रहे आंदोलन में, आंदोलनकारियों से मिलने पहुंचे।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।