– ज्ञानेन्द्र रावत*
कोरोना वायरस आये दिन हजारों निरीह बालकों, युवाओं और वृद्धों को अपने आगोश में ले मौत के मुंह में धकेल रहा है। इसमें जीवन रक्षक दवाइयों, प्राण वायु आक्सीजन का अभाव अहम है। इसके पीछे शासन तंत्र द्वारा समय रहते जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था कर पाने में नाकामी, चिकित्सा, स्वास्थ्य व दैनिक जीवनोपयोगी वस्तुओं की कालाबाजारी, मुनाफाखोरी की लिप्सा की अहम भूमिका रही है। इसका दुष्परिणाम है कि लोग दवाइयों, इंजैक्शन, आक्सीजन, वैंटीलेटर, अस्पताल, अस्पताल में बैड आदि के अभाव में रोजाना हजारों की तादाद में मौत के मुंह में जा रहे हैं और अच्छे दिन का वादा करने वाली सरकार चुनावी प्रचार को ही तवज़्ज़ो देती रही है और इस वजह संक्रमण के विस्तार को नज़रअंदाज करती रही है और समय रहते समुचित व्यवस्था न कर पाने, इन व्यवस्थाओं को नजरंदाज करने में ही व्यस्त रही है, तो कुछ गलत नहीं होगा। जबकि यह सच है कि स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधाओं के मामले यें हमारा देश हमसे छोटे देशों तक से बहुत पीछे हैं। संयुक्त राष्ट्र और समय समय पर किये गये शोध-अध्ययन इसके ज्वलंत प्रमाण हैं कि हमारे यहां हरेक राज्य में हजारों डाक्टरों, लाखों स्वास्थ्य कर्मियों यथा-नर्स, वार्ड व्याय, फार्मेसिस्ट, कंपाउंडर्स, सफाई कर्मी, मिडवाइफ्स के पद रिक्त हैं और इनके सहित चिकित्सा उपकरणों, बैड, वैंटीलेटर्स व आक्सीजन का अभाव है।
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दुखदायी तो यह है कि ऐसे भीषण संकट और महामारी के इस दौर में भी लोग जीवनरक्षक दवाइयों, आक्सीजन, चिकित्सकीय उपकरणों, खाद्य पदार्थों, फल आदि की जमाखोरी कर रहे हैं,कालाबाजारी कर रहे हैं और दोगुनी, चौगुनी कीमत पर बेच रहे हैं। आक्सीजन के सिलेंडर में रिफिलिंग तक के लिए पांच गुना कीमत वसूल कर रहे हैं। हालत यह है कि इन हालात में मरीज के तीमारदार दर दर भटक रहे हैं। उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। ऐसे नराधम, निकृष्ठ लोगों पर कोई कार्यवाही का न होना यह जाहिर करता है कि इस सबमें सरकारी तंत्र की भी मिलीभगत है।
इनमें सूरत के एक प्रि प्रा जनरल अस्पताल के निकृष्ठ बर्ताव को आप क्या कहेंगे जिसने अस्सी हजार न मिलने पर शव को बीच सड़क पर फैंक दिया जबकि वह पहले ही से एक लाख रुपया जमा करवा चुका था और डाक्टर केवल पच्चीस हजार में ही मरीज को ठीक कर देने का दावा कर रहे थे। दुख की बात यह कि जब शव का मुंह खोला गया तो वह खून से लथपथ था। गाजियाबाद का उदाहरण भी कम चौंकाने वाला नहीं है। यहां अस्पताल के बाहर लिखा था कि यहां बैड उपलब्ध नहीं हैं और जब वहां जीएमसी कमिश्नर महेंद्र सिंह तंवर ने छापा मारा तो अस्पताल की कलई खुलकर सामने आ गयी। जबकि हकीकत में अस्पताल में बैड खाली थे और बाहर बैड के इंतजार में मरीज पडे़ हुए थे। गोरखपुर का मामला भी कम शर्मनाक नहीं है जहां बीआरडी के पूछताछ केन्द्र के सामने भर्ती के इंतजार में मरीज ने दम तोड़ दिया। ऐसे संवेदनहीन लोगों के खिलाफ रासुका के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए और उन्हें जेल भेजना चाहिए। विडम्वना यह कि ऐसा करने वाले यह नहीं सोचते कि कब कौन इस महामारी का शिकार हो जाये और उस समय ना पैसा काम आयेगा और ना प्रतिष्ठा। क्योंकि शमशान तक में चौबीस चौबीस घंटे की वेटिंग है और मरने वाले का चेहरा तक देखने को नसीब नहीं हो रहा है।
ऐसे लोगों के लिए एक उदाहरण काफी है। यह वाकया किन्हीं सज्जन ने फेसबुक पर शेयर किया है। उनके अनुसार सदी की शुरूआत के समय गुजरात में आये भूकंप के समय जमींदोज हो चुकी बहुमंजिला इमारत के अवशेषों में राहत कर्मियों को तलाश के दौरान सोने के गहनों से लदी एक मृतक महिला का शव मिला। उसकी पहचान हेतु जब राहतकर्मियों ने पास खडे़ लोगों से अनुरोध किया तब जार जार रोते एक वृद्ध ने कहा कि यह मेरी बहू है। राहतकर्मियों ने तब उससे उस महिला के शव से जेवर उतार लेने को कहा। तब फूट फूट कर रोते हुए उसने कहा कि यह जेवर मुझे नहीं चाहिए। इनको मैंने बहुत पहले एक मरी महिला के शव से उतारे थे। यह उदाहरण देने का मेरा एकमात्र मकसद यही है कि इस महामारी में मंत्री भी मर रहे हैं, सांसद-विधायक-पार्षद-नेता भी और पूंजीपति भी और गरीब इंसान भी। सभी को लाख कोशिशें करने के बाद भी शमशान में जगह नहीं मिल रही तो फिर यह लूट-खसोट क्यों, कालाबाजारी, बेईमानी क्यों? क्यों इंजैक्शन, दवाई, आक्सीजन के चौगुने-आठ गुने पैसे वसूल रहे हो? जबकि जानते हो कि कुछ साथ नहीं जायेगा, और तो और हालत यह है कि किसी किसी मरने वाले पर कोई रोने वाला भी नहीं है।
ऐसे माहौल में भी आशा की किरण के रूप में कुछ लोग हैं जिन्हें हम मसीहा ही कहेंगे जो अपना सब कुछ दांव पर लगाकर जनता की सेवा कर रहे हैं। हमें उन पर गर्व है। ऐसे ही महापुरुष हैं नागपुर के 85 साल के नारायण भाऊराव। इन्होंने कोरोना संक्रमित होते हुए मुश्किल से अस्पताल में मिले बैड को एक रोती-बिलखती महिला के चालीस वर्षीय पति को इसलिए दे दिया कि मेरी तो जीवन की पारी पूरी हो चुकी। यदि इस महिला के पति की जान बच जायेगी, यही मेरे लिए बहुत बडी़ बात होगी। यह कह वह अपनी बेटी-दामाद के साथ घर लौट गये जहां शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली।
असलियत यह है कि ऐसे हजारों लोग हैं जो निस्वार्थ भाव से अपना सब कुछ होमकर चौबीसौ घंटे इस महामारी के दौर में अपनी जान की परवाह न कर सेवा कर देश बचाने के यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे हैं। हमें मां भारती के ऐसे सपूतों पर गर्व है। उत्तर प्रदेश में तो सत्ता की चाह का सबूत यह है कि पंचायतों के चुनाव में ड्यूटी देने गये तकरीब एक सौ पैंतीस से भी ज्यादा शिक्षक, शिक्षामित्र और अनुदेशक कोरोना संक्रमित होकर मौत के मुंह में चले गये। पांच राज्यों में हुए चुनावों में एक अप्रैल से चौदह अप्रैल तक चुनावी रैलियों के चलते संक्रमितों की तादाद तो खुद सरकारी आंकडो़ं के अनुसार असम में 537 से 3398, तमिलनाडु में 25,244 से 65,458, केरल में 30,000 से 61,000, पुडुचेरी में 1400 से 3000 और पश्चिम बंगाल में 8062 से 41,927 तक जा पहुंची है। देखना यह है कि चौदह अप्रैल के बाद की रैलियों के बाद कोरोना संक्रमितों का जो विस्फोट सामने आयेगा, वह तस्वीर कितनी भयावह होगी, उसकी कल्पना से ही रोंगटे खडे़ हो जाते हैं।
*वरिष्ठ पत्रकार