– रमेश चंद शर्मा
सड़क पर बसे गांव
उत्तर भारत की हाड़ कंपा देने वाली ठंड में बच्चे-वृद्ध, महिला-पुरुष, छोटे-बडे सभी दिल्ली के चारों ओर सड़कों पर क्यों उतरने को मजबूर हुए ? इस संवेदनहीन सत्ता, पुलिस-प्रशासन ने सड़कों पर रुकावटें पैदा की, बैरिकेड्स लगाए, सड़कों को खोदकर खाई बनाई, रास्ते रोके, भयंकर ठंड में पानी की बौछार, अश्रुगैस, डंडों से इनका स्वागत किया। दर्जनों का बलिदान भी इन्हें नहीं हिला पाया। दिल्ली की भंयकर ठंड भी इनका मनोबल, हिम्मत नहीं तोड़ पाई। दो देशों की सीमाओं पर भी ऐसा सुरक्षा बलों का जमावड़ा नहीं नजर आता, जैसा यहां देखने को मिला। आश्चर्यजनक, गजब की बात यह है कि इन्हें बदनाम करने के लिए जो जुमले फेंके जा रहे है, झूठी बातें, अफवाह फैलाई जा रही है, तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो दुश्मन के बारे में भी कहते हुए आदमी अनेक बार विचार करेगा, सोचेगा। इन सब विपरीत हालात के बावजूद भी इन लोगों की संख्या दिल्ली के चारों ओर दिनों दिन बढ़ती जा रही है। देश के साथ साथ विदेश में भी इनके समर्थन में लोग खड़े हो रहे हैं।
सड़क पर बसे इन गांवों की ऊर्जा, उत्साह, जोश, हिम्मत देखकर आप भावविभोर हुए बगैर नहीं रह सकते।
कौन है यह लोग? कहां से आए हैं? कहां के निवासी हैं? क्यों आए हैं यहां? क्या चाहते हैं? ऐसा क्या हुआ कि इनको इस सर्दी में अपना काम धंधा, खेती बाड़ी, घर बार, परिवार छोड़कर, लंबी लंबी दूरी की यात्रा तय करके सड़कों पर खुले आसमान तले रहने को मजबूर किया। यह हैं ग्रामवासिनी भारत मां के सच्चे लाल, अन्नदाता, किसान, मजदूर, कारीगर, श्रमिक, कामगार, जागरूक नागरिक शांति सदभावना के साथ, अनुशासित ढंग से अपनी बात कहने के लिए। इस संवेदनहीन सत्ता को समझाने, उनकी भूल, गलती बताने, सुधारने के लिए यह तपस्वी साधना कर रहे हैं।
सरकार बिना संवाद, सलाह, बातचीत के जो तीन कानून लाई है। संसद में जिस धक्कम पेल, शोर शराबे, हंगामे के मध्य जैसे बिल पारित करवाए गए हैं। उनको रद्द करवाने के लिए यह आवाज बुलंद हुई है।
एक माह को पार करता हुआ यह किसान आंदोलन जनता की आवाज बन रहा है, बढ़ता जा रहा है। इतने विस्तार के बावजूद ऐसा शांतिपूर्ण, अहिंसक, अनुशासित, प्यार, अपनेपन, एकता, भाईचारे का संदेश देने वाला आंदोलन हमें अपने जीवन में देखने को नहीं मिला। भारतीय समाज की अद्भुत शक्ति, भक्ति, छवि यहां देखने को मिल रही है। सिंधु बार्डर, टिकरी बार्डर, शाहजहांपुर, पलवल, गाजीपुर जहां भी आप जाएं। ऐसे दृश्य देखकर आप भावविभोर होकर लौटेंगे।
लंगर में जिस स्नेह, आदर, भक्ति, सेवा भाव से बुला बुला कर सबको भोजन करवाया जा रहा है। सभी आओ, सभी खाओ। कोई आओ, कोई खाओ। ऐसा तो है ही, बल्कि इधर से आते जाते सभी को प्रेमाग्रहपूर्वक लंगर खाने के लिए आमंत्रित करना। चाय पानी, छाछ, भोजन सब सहजता से उपलब्ध है। साझा रहना, साझा खाना एकता, प्रेम बढ़ाता है। परस्पर सहयोग, सहकार, सदभावना, सौह्रार्द, साझापन, समझदारी विकसित करता है।
एक ओर हरियाणावी हुक्का गुड़गुड़ाते नजर आते हैं तो दूसरी ओर बगल में ही सिखों का जमावड़ा लगा हुआ है। भय, भेद, भूख, हिंसा, द्वैष, नफरत, अलगाव, दूरी को कम किया है इस आंदोलन ने। यह आंदोलन की बड़ी सफलता है। सतलुज-यमुना जल बंटवारे जैसे प्रश्नों का हल, समाधान ऐसे भाईचारे, परस्पर प्रेम से दोनों प्रदेशों की जनता कर सकती हैं। इस आंदोलन ने इस संभावना के द्वार खोले हैं।
एक ओर अनेक बार सत्ता, दल, पुलिस, प्रशासन जिस काम को बिगाड़ते, उलझाते, लटकाते,भटकाते, अटकाते है। उसमें से स्वार्थ, लोभ, अपना फायदा देखते है। लोगों में भय, भेद, द्वैष, कड़वाहट, अलगाव, दूरी को बढ़ाते है। दूसरी ओर ऐसे मुद्दों को अगर जनता, समाज, जन समुदाय, समूह के हवाले कर दिया जाए तो उसे स्वयं वे बहुत ही अच्छे प्रकार से संवाद, संपर्क, संवेदना, प्रेम परस्पर विश्वास से सुलझा सकते है।
आंदोलन में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड के साथ साथ दूरदराज कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, गुजरात आदि प्रदेशों की उपस्थिति राष्ट्रीय एकता के संदेश के साथ साथ देश भर के समर्थन को भी उजागर करती है। विभिन्न स्थानों से आए साथियों से मिलकर अच्छा लगा।
आंदोलन के समर्थन में देश भर में जगह-जगह कार्यक्रम, बैठक, सभा, सम्मेलन, धरना, प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। सामूहिकता का दर्शन अनेक स्तर पर साफ दिखाई दे रहा है, जो अच्छा लक्षण है। इसे किसी दल, धर्म, संप्रदाय, जाति, प्रदेश, समूह विशेष का आंदोलन, आयोजन नहीं माना जा सकता है। लोकतांत्रिक ढंग से जमीनी स्तर से उठा यह कदम है। देश, जनता की आवाज को दबाने का प्रयास उचित नहीं है। खतरनाक साबित हो सकता है।
यह हक, अधिकार, न्याय प्राप्ति का आंदोलन है। जो हिम्मत, दृढ़ता, ऊर्जा, सहकार, सद्भावना, सामूहिकता, त्याग, साधना, ग्राम संस्कृति के बल पर लड़ा जा रहा है। आंदोलन में स्वानुशासन का दर्शन हुआ। मीलों दूर तक फैला आंदोलन अपने अपने ट्रैक्टर, ट्राली के अंदर, ट्राली के नीचे, वाहनों, सड़क पर टैंट, तिरपाल, कपड़ा, प्लास्टिक आदि बांधकर जहां जो भी व्यवस्था बनी बनाकर रह रहे हैं।
साफ सफाई अच्छी है। कार सेवा का प्रभाव यहां साफ दिखाई देता है। स्वयं सेवक खुद ही आगे बढ़कर काम को संभालते हैं। पानी पिलाना, लंगर में काम करना, साफ सफाई करना, बर्तन मांजना, सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना, किसी की मदद करने की तैयारी। किसी काम को छोटा नहीं समझते। छोटा-मोटा सभी काम करने की तैयारी। श्रम निष्ठा, संस्कार।
इस आंदोलन में मात्र व्यक्ति, कार्यकर्ता नहीं जुड़ा बल्कि बाल-बच्चे, बेटा-बेटी, मां-बाप, दादा-दादी, जवान- बूढ़े, नाते-रिश्तेदार, मित्र साथियों सहित पूरा परिवार जुड़ा हुआ है। यह आंदोलन की व्यापकता, गहराई, सघनता है। आंदोलन की गहरी पैठ, जड़ों को दर्शाता है। आंदोलन की पारदर्शिता, स्पष्टता, सच्चाई, क्षमता, शक्ति को प्रकट करता है। सभी पीढ़ियां किसी भाव, हिम्मत, ऊर्जा, क्षमता, शक्ति से भरपूर है। यह आंदोलन किसी विश्वविद्यालय से अधिक शिक्षण प्रदान करने की क्षमता से भरा है। चाहत रखने वालों के लिए बड़ा व्यापक क्षेत्र है सीखने, समझने-बूझने, जानने के लिए। ऐसे आंदोलन जीवन, जीवनशैली को प्रभावित कर सकते हैं।
इसे मात्र किसानों का आंदोलन कहने की भूल नहीं करनी चाहिए। प्रारंभ किसानों ने अवश्य किया है मगर यह सभी नागरिकों से जुड़ा है। समस्त नागरिकों के सवालों का सामना कर रहा है। पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला है। इससे मूलभूत सिद्धांत, विचार, राह की झलक मिल सकती है। भय मुक्त, भूख मुक्त, भेद मुक्त, हिंसा मुक्त भारत की दशा और दिशा तय करने में मददगार बन सकता है, यह आंदोलन। इससे समता, स्वदेशी, ग्राम कृषि संस्कृति को मजबूती मिल सकने की संभावना है।
आजादी के बाद ऐसा आंदोलन इतनी व्यापकता के साथ पहली बार सामने आया है जिसने भारत के ग्राम कृषि संस्कृति को आधार बनाकर कदम उठाए हैं। सड़कों पर गांव समाज बस गया है। सड़कों पर गांव बसे हैं।
सत्ता, सरकार, प्रशासन, अधिकारी को पद का मद, अहंकार, जिद, स्वार्थ, दबाव त्याग कर खुले दिलो-दिमाग से संवाद कर समाधान निकालना देश हित में होगा।
I do not agree with this article It is not a good trend by opposition parties when the Government have conceded all their demands then why are you pleading for withdrawing the bill further these people are not only Kisans The rests are seeing benefit in it To my mind it is a rehearsal for withdrawing Article 370Bill and also for creating Khalistan Sensible people should not support it Specially media should not No body has asked them to come in this picnic. They are all enjoying with modern amenities at Delhi borders.