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तकनीकी की अद्भुत माया
– रमेश चंद शर्मा
साठ साल पहले दूरदर्शन ने चौंकाया था
समझ कुछ नहीं आया था
दूर से दर्शन करते थे
न मिलने पर आहें भरते थे
रोशनदान, खिड़कियों से झांकते थे,
पास आता देख भागते थे
हुआ क्या कमाल था
मचा नया धमाल था
कहीं कहीं इसका वास था
सबकी नई आस था
गीली डंडा, ताश था
दूर होकर भी पास था
नई पीढ़ी की आंखों का तारा
बुढ़ापे ने तब खूब मारा
आज बना यह बड़ा सहारा
जीवन को मिला किनारा
आज सभी की जेब में आया
तकनीकी की अद्भुत माया
बड़ी छोटी हो गई काया
मोबाईल में घुस गया भाया
अब नहीं दूर, सबसे पास
जुड़ी हुई हर शख्स की सांस
कैसे बचें समझ न पाएं,
दूर इससे कैसे जाएं।।
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