– ओम प्रकाश भट्ट*
चमोली में बीते महीने आयी भीषण आपदा ने 2013 की केदारनाथ की त्रासदी की याद ताजा कर दी। पैंग गांव से लेकर तपोवन के एन टी पी सी के बैराज के आसपास कमोवेश केदारनाथ जैसे हालात नजर आ रहे थे। यहां भी केदारनाथ की तरह ही नदी की बाढ़ में लोग लापता हो गए। केदारनाथ में मंदाकिनी की एक छोटी धारा की तरह यहां भी ऋषि गंगा नदी की इस पूरी त्रासदी की वाहक बनी।
ऋषि गंगा नदी भी मंदाकिनी नदी की तरह ही हिमाच्छादित पर्वत और उनसे निकले ग्लेशियरों से रिसे पानी को संग्रह करते हुए नदी का स्वरूप पाती है। ऋषि गंगा के जलग्रहण में मंदाकिनी नदी से ज्यादा ग्लेशियर और हिमशिखर हैं मोटे रूप से देखे तो इसमें देश की सबसे ऊंची चोटियों में शुमार नन्दादेवी से लेकर मृगथूनी, कालका, द्रौणागिरी, त्रिसूल और देवस्थानम जैसी लगभग एक दर्जन से ज्यादा नामी बर्फीली चोटियों है और उससे निकली लगभग इतनी ही बड़ी-बड़ी हिमानियों हैं जिनके जल के प्रवाह से ऋषि गंगा का प्रवाह बनता है। आमतौर पर इस नदी में भी अन्य बर्फीली नदियों की तरह सर्दियों में पानी का प्रवाह काफी कम रहता है तथा आसानी से आर पार भी कर लिया जाता है।
एक बात स्पष्ट है ऋषि गंगा के उपरी जलागम क्षेत्र में मौजूद हिमशिखर और ग्लेशियरों में कुछ न कुछ हलचल हुई है जिसने नदी को इस रूप में आने पर मजबूर किया। जिनसे इन सवालों के उत्तर भी मिलेंगे कि यह किस रूप में हुई? कैसे हुई? जिससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं को आपदा को आपदा बनने से रोकने में मदद मिलेगी। यह इस बारे में ज्यादा विज्ञान सम्मत जानकारी के बाद ही हो पायेगा।
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स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार भी इस घटना के लिए ग्लेशियरों का टूटने को बड़ा कारण बता रही है। लेकिन केवल ग्लेशियर ही टूटे ? या ग्लेशियरों में मौजूद स्नो लेक का भी इसमें योगदान है? और क्या इनके टूटने से कोई लेक बनी? जिसके टूटने से नदी में यह तूफान आया। प्रसिद्ध भूगर्भविद् और इस क्षेत्र नन्दा देवी और ऊपरी हिमालय में ग्लेशियरों की हलचल पर शोध कर रहे विज्ञानी डा. नवीन जुयाल का कहना है कि यह आपदा ऋषि गंगा के जलग्रहण क्षेत्र में त्रिसूली पर्वत से निकल रहे नाले से शुरू हुई। डा. जुयाल इस घटना के लिए ऋषि गंगा घाटी में रैणी से दो किलोमीटर आगे मिल रहे त्रिसूली नाले के ऊपरी इलाके के ग्लेशियरों में हुई हलचलों को कारण मानते हैं। त्रासदी के एक हफ्ते पहले ही इस क्षेत्र के अध्ययन से लौटे डा. जुयाल का कहना है कि पिछले पांच फरवरी से इस इलाके के ऊपरी क्षेत्र में जो ताजी बर्फ गिरी थी जिसकी मात्रा बहुत ही कम थी पिघलनी शुरू हुई। इससे त्रिसूली नाले की बनावट और कमजोर मिट्टी इस बर्फ के पानी के साथ फिसली होगी जिससे कई स्थानों पर छोटी-छोटी झील बनी होगी जो ऋषि गंगा तक पहुंचते पहुंचते उग्र रूप धारण कर चुकी होगी और फिर निचले इलाके में बनी परियोजनाएं भी इस प्रवाह के अवरोधक बने। जिसने इसकी मारक क्षमता को बढ़ाने का कार्य किया। कई स्थानों पर अवरोध के कारण इनका प्रवाह में साद और मलबे की मात्रा बढ़ने से इस छोटी नदी ने बाढ़ का रूप ले लिया।
इस आपदा को समझने से पहले यहां के भूगोल से वाकिफ होना भी जरूरी है। जहां से यह आपदा शुरू हुई वह घाटी देश के सुन्दरतम राष्ट्रीय उद्यानों में एक नन्दादेवी नेशनल पार्क का हिस्सा है यहीं से यह छोटी सी नदी ऋषि गंगा उद्गमित होती है। नन्दादेवी उद्यान अपनी जैव विविधता के साथ अपने भूगोल और भौगोलिक विशिष्टता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। 628 वर्ग किलोमीटर के ऋषि गंगा नदी के जलागम में फैले इस पार्क की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ऋषि गंगा का मुहाना जो रैणी और पेंग गांव के पास है वह समुद्रतल से लगभग पांच हजार फुट से शुरू होकर नन्दादेवी पीक जो 28 हजार फुट की ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस नदी का प्रवाह भी इसी तरह से है जो लगभग बीस से तीस किलोमीटर के अपने यात्रा पथ में 28 हजार फुट से लेकर सीधे पांच हजार फुट तक चली आती है। नदी के इस यात्रा पथ में छोटी सी भी नकारात्मक हलचल इसे विनाशकारी बनाने का काम कर सकती है।
इस जलागम क्षेत्र में पहले भी भूस्खलन और बाढ़ का इतिहास रहा है। 1970 की अलकनन्दा की बाढ़ के दौरान भी जिन खास छोटी नदियों ने तबाही मचाई थी उसमें ऋषि गंगा भी एक थी। 1970 के बाढ़ से आये सिल्ट के उपर ही यहां पर दो दशक पहले ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट का निर्माण हुआ था। ऋषि गंगा में आयी बाढ़ों और भूस्खलन से यह प्रोजेक्ट पहले भी कई बार क्षतिग्रस्त हो चुका था। लेकिन रविवार को आयी बाढ़ में रैणी गांव में ऋषि गंगा पर बने प्रोजेक्ट का नामोनिशान तो मिटाया ही दिया।
रैणी गांव में रह रहे लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि ऋषि गंगा में जब यह बाढ़ आयी तो पानी और उसके साथ आ रही सिल्ट तूफान की तरह आगे बढ़ रहा था। पानी धुंए के गुबार की तरह बहता हुआ आया। रैणी के प्रधान दीपेन्द्र सिंह राणा ने बताया कि नदी का यह अकल्पनीय रूप था, पहले कभी नहीं देखा था।
ऋषि गंगा नदी रैणी में ही बाहरी दुनिया के सम्पर्क में आती है। इससे पहले वह पेंग मुरण्डा गांवों के बीच से बहुत ही संकरी घाटी से होकर निकलती है। नन्दादेवी पार्क में भी अधिकतर इलाकों में इसी तरह संकरी घाटी से होकर निकलती है। इस इलाके में आठवें दशक से पहले खूब पर्वतारोही आते थे लेकिन ऋषि गंगा गोर्ज के रास्ता इतना दुर्गम था कि पर्वतारोही भी घाटी में प्रवेश के दूसरे लम्बे रास्तों का प्रयोग करते थे। जो इस घाटी में घरासी बुग्याल से होकर गुजरता था।
ऋषि गंगा की संकरी घाटी की बनावट ने इस नदी को वेगवान बनाया है। इस आपदा में नदी में पानी के वॉल्यूम से ज्यादा वेग ने अपना असर दिखाया। जहां जहां ऋषि गंगा तीखी घाटी में थी वहां नदी के असामान्य पानी मलबे के साथ आसपास का मलबा भी इसके परिमाप को बढ़ाता रहा और मुहाने पर खड़े लोग और परिसम्पत्तियों के लिए काल बना। ऋषि गंगा का बाढ़ का पानी रैणी में धौली गंगा में मिलने के बाद भी कई किलोमीटर तक उसी रफ्तार से प्रवाहित होता रहा। रैणी से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर तपोवन में एन टी पी सी के पांच सौ बीस मेगावाट की निर्माणाधीन तपोवन विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के लिए नदी पर बैराज बन रहा है जिसे इस बाढ़ ने तबाह कर दिया। वहां काम कर रहे कई लोग बाढ़ की चपेट में आ गए । रैणी से लेकर तपोवन के बीच कई लोग नदी किनारे घास लकड़ी बीनने और पशुओं को लेकर आये थे वे भी इस बाढ़ की चपेट में आ गए ।
केदारनाथ और फिर ऋषि गंगा की इस त्रासदी के जो शुरूआती सबक है वह नदियों के चरित्र को समझने में हमारी भूलों को फिर से उजागर करते प्रतीत हो रहे हैं। नदी के जलग्रहण इलाकों में विकास योजनाओं में नदी के पारिस्थितिकीय तंत्र और बाढ़ से जुड़े चरित्र को समझ कर योजनाएं बनायी जातीं तो इस तरह की घटनाओं से होने वाले जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है।
*लेखक जाने माने पर्यावरण कार्यकर्ता हैं और विश्व विख्यात पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट के पुत्र हैं।प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।