टिपण्णी
-डा. रक्षपालसिंह चौहान*
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 51 राजकीय एवं 40 इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (आई टी आई) का संचालन पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर निजी क्षेत्र को सौंपे जाने के निर्णय से योगी सरकार की यू पी में शिक्षा व्यवस्था के प्रति घोर संवेदनहीनता, लापरवाही और उनकी अक्षमता पर सवाल उठ खड़े हुए हैं ।
कैसी विडम्बना है कि सरकारी एवं निजी क्षेत्र में सैकड़ों पोलीटैकनिक व आई टी आई को मान्यतायें सरकार द्वारा दी गई हैं, लेकिन उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक में मानकों के अनुरूप शिक्षक एवं गैर शिक्षक कर्मचारियों की नियुक्तियां तक नहीं हैं। पठन पाठन का माहौल तो है ही नहीं । प्रयोगशालाओं में आवश्यक साजो – सामान तक नहीं है। विद्यार्थियों की कक्षाओं में उपस्थिति नहीं है, फिर भी इन शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थी उच्च प्रतिशत प्राप्तांक का डिप्लोमा/सर्टिफिकेट प्राप्त करने का कारनामा करते हैं।
अफसोस इस बात का है कि सरकार इन विषम स्थितियों को संभालने व संवारने के बजाय अपनी नाकामियों पर भी पीठ थपथपाती रहती है ।इन डिप्लोमा/सर्टिफिकेट धारियों की अपने डिप्लोमा/सर्टिफिकेट के अनुरूप ज्ञानशून्यता की स्थिति में वे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और यहां तक कि सफाई कर्मचारी पद के लिये आवेदन करते हैं। आश्चर्य ये है कि यू पी सरकार अपने शिक्षण संस्थानों की धरातलीय जानकारी से पूरी तरह अनभिज्ञ है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह हकीकत से रूबरू भी नहीं होना चाहती है।
इन विषम परिस्थितियों में आवश्यकता नये पोलीटैकनिक व आई टी आई खोलने की नहीं है बल्कि आवश्यकता है मौज़ूदा इन शिक्षण संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने हेतु वातावरण बनाने की है जिसको वर्तमान सरकार पूरी तरह नज़रंदाज़ कर सरकारी खज़ाने की अरबों रु की धनराशि से उक्त शिक्षण संस्थानों का अनौचित्यपूर्ण निर्माण करा रही है । सच्चाई ये है कि 21वीं सदी में जितने माध्यमिक/तकनीकी/उच्च शिक्षण संस्थान खुल चुके हैं ,यदि उनमें से 50 प्रतिशत में भी डिप्लोमा/सर्टिफिकेट हेतु योग्य विद्यार्थियों का प्रवेश हो तथा सभी आवश्यक सुविधायें जुटा कर सुचारू रूप से उनका संचालन हो तो नये शिक्षण संस्थान खोलने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी।
असलियत में उत्तर प्रदेश में शिक्षण संस्थानों की कोई कमी नहीं है ,यदि कमी है तो गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों की है। योगी सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रदेश के माध्यमिक/ तकनीकी /उच्च शिक्षा की बदहाल स्थिति को पहले सुधार कर उनमें गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान कराने हेतु वातावरण सृजित करें और उसके बाद आवश्यकता हो तो नये शिक्षण संस्थानों के निर्माण के बारे में सोचें ।
*लेखक प्रख्यात शिक्षाविद एवं डा. बी आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ आगरा के पूर्व अध्यक्ष हैं।