आयुर्वेद और कोरोना -5
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
वायरस सार्स क्राइसिस -1 से सार्स क्राइसिस -2 बिल्कुल अलग नहीं, मिलते-जुलते है; दोंनो ही बहुरूपिया है। इसका जेनेटिक मटेरियल जो प्रौटीन और लिपिड कवर के अंदर होता है। जब यह मानव शरीर से बाहर रहता है, तो वह निर्जीव होता है। यह जब मानवीय शरीर की कोशिकाओं पर आक्रमण करता है, तो उनके मेटाबोलिज्म को हाईजेक कर अपने को सजीव बना लेता है। कोरोना (कोविड -19, सार्स -2) अपने जैसे ही असंख्य वायरसों का निर्माण करके, अपनी तादाद बढ़ाता रहता है। इसलिए इसको मानव शरीर से बाहर रहने पर, जीव कहना ठीक नही है; बल्कि यह एक निर्जीव पदार्थ के जैविक रसायन से बनता है। इसकी विशिष्टता है कि यह अपने जैसे करोड़ों वायरसों को बहुत ही कम समय में ही बनवा लेता है।
यह छोटी जीन वाला है। फेंफड़ो के संवेदनशील क्षेत्र जहाँ पर जहरीली गैसों CO2 को O2 प्राण वायु में बदलने वाली झिल्ली होती है, वहाँ जब यह प्रवेश कर जाता है; तब मानवीय कोशिकाओं द्वारा मिलकर हल्ला बोलने से झिल्ली में सूजन आज जाती है। प्राण वायु बनना रुक जाता है। श्वांस क्रिया बंद होने लगती है। यह मृत्यु काल के बहुत करीब होता है। यह जीवन का तूफान होता है। यह ‘‘देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर‘‘ वाला वायरस है।
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यह कोरोना वायरस (सार्स -2, कोविड – 19) पृथ्वी पर जीव बनने से पहले का, प्रारंभिक चरण का वायरस है। इसके इतिहास को समझने के लिए हमें जानना होगा कि 2002 में जब चाईना में कोरोना वायरस-1 पहली बार प्रभावी हुआ था; वहाँ से सबसे पहले यह कनाडा और अमेरिका पहुँचा था। कनाडा के उस काल में स्वास्थ्य मंत्रालय के अध्यक्ष एवं मंत्री माउंट सिनाई अस्पताल के संचालक डॉ. डोन लो ने निर्णय किया था कि, इसे कनाडा से बाहर नहीं जाने देंगे। उस समय कोरोना वायरस नं-1 को सार्स क्राइसिस-1 नाम से जाना जाता था। उन्होंने वायरस को अपने देश से बाहर नहीं निकलने दिया था और इसके लिए वैक्सीन भी नही बनने दी थी। क्योंकि इन्हें इसके बहुरुपियापन (म्यूटिड़) होने का पता था। यह दुनिया के लिए भयानक होता है। इन्होंने दोनों का 18 वर्ष पहले चीन से आकर कनाडा में प्रभावी हुआ सार्स क्राइसिस-1 , को डोन लो ने अपने देश से बाहर नही निकलने दिया था। उनके प्रयासों से सार्स क्राइसिस-1 कनाडा में ही सिमित हो गया था। उस समय कनाडा ने दिखा दिया कि ऐसी परिस्थिति को कैसे काबू करना है। अब यही भारत का आयुर्वेद दिखा सकता हैं। पर कोविड-19 सार्स क्राइसिस-2 के मामले में ऐसा नहीं हुआ और यह दुनिया भर में फैल रहा है। इसको जहाँ जितनी अनुकूलता मिली, उतनी तेजी से ही यह बढ़ता गया; क्योंकि यह प्राकृतिक अनुकूलन की पालना करना जानता है। इसने अपने आप को चालाकी से फैलाया। इस वायरस ने चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत को भी सिद्ध किया है।
भारत, जो की प्राकृतिक आरोग्य रक्षण की पद्धति में विश्वास रखता है; प्रकृति के साथ अधिक सम्मान से जीता है। भारत के सामने विकट परिस्थिति बनी है किन्तु राष्ट्रहित को देखते हुए भारत में जल्द से जल्द सकारात्मक विचारों के साथ आर्थिक व मानवीय हानि को रोकने का प्रयास आयुर्वेद द्वारा होना था। इस प्रयास में लाभ से अधिक शुभ का ख्याल रखना अच्छा होगा। आयुर्वेद एवं आयुष से कोरोना का इलाज अधिक कारगर हो सकता है। दूसरी पद्धति में इसका इलाज नही है।आज ज़रुरत है कि हम अपनी पद्धति में भी इसके इलाज की खोज करें।
हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ यदि दिसम्बर 2019 में ही इस वायरस के चरित्र के बारे में सरकारों को समझाकर, भारत में बाहर से आने वाले विदेशियों व स्वदेशियों को आने पर रोक लगा देते तो अच्छा होता। ऐसे में भारत में भी कोई डोन लो जैसा स्वास्थ्य विशेषज्ञ खडा होकर सरकार को समझाने में सफल होता। इसी रास्ते से हम इस संकट से बच सकते थे। हमारे स्वास्थ्य सक्षम जीव वैज्ञानिकां को भी इस वायरस की मार को स्वयं समझकर भारत को इससे बचाना चाहिए था। सार्स क्राइसिस-1, सार्स क्राइसिस-2 दोनों ही चीन की उपज है। ये दोनों ही बहुत धोखेबाज हैं। इन पर हमारा अहिंसक आयुर्वेद ही सफल होगा।
भारत के किसान-मजदूर अपना पेट भरने के लिए शहरों से निकलकर वापस गाँव में आने लगे हैं। उन्हें आज भी कोरोना महामारी से बचने के लिए अपने गाँव की हरियाली, पानी, मिट्टी ज्यादा सुरक्षित दिख रही है। इसलिए इस लॉकडाउन से त्रस्त होकर लोग गाँवों की तरफ जैस-तैसे दौड़ रहे है। बहुत सारे लोग रास्ते में मर रहे है, फिर भी अपने गाँव पहुँचना उन्हें ज्यादा सुरक्षित दिख रहा है। भारतीय स्वास्थ्य रक्षण आयुष में सरकार को विश्वास रखकर, अपनी जनता को अपने घरों में पहुँचाने की जल्द से जल्द व्यवस्था करनी चाहिए। गाँवों में जाने से पहले इनका स्वास्थ्य निरीक्षण व जाँच होना अत्यंत आवश्यक है।
भारत देश में एक से एक बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भरमार है। इन सबसे बात करके भारत के स्वास्थ्य रक्षण व प्रतिरक्षण शक्ति को समझकर, जल्द से जल्द भारत की मानवीय और आर्थिक हानि को रोकने का काम तेजी से होना चाहिए। इस समय पूरी दुनिया और भारत संकट में है। सभी राजनैतिक दलों को अपनी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर, कोरोना-2 से होने वाली मानवीय और आर्थिक हानि को रोकने के लिए तत्काल/ संगठित होकर उपाय करना चाहिए ।
हमें दुनिया के हित का काम करने का यह अवसर कोविड – 19 से मिला है। पूरा भारत एक होकर कोरोना से होने वाली सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक व स्वास्थ्य संबंधी हानि को रोकें।
*लेखक पूर्व आयुर्वेदाचार्य हैं तथा जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।